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लुटेरा : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

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’उड़ान’ से विक्रमादित्य मोटवाने ने अच्छे सिनेमा की उम्मीद जगाई थी और ‘लुटेरा’ में उन्होंने उम्मीदों को पूरा किया। एक बेहतरीन प्रेम कहानी लंबे समय बाद परदे पर आई है। ओ हेनरी की कहानी ‘द लास्ट लीफ’ को आधार बनाकर उसे गुजरे जमाने का टच दिया और अपने शानदार प्रस्तुति के बल पर विक्रम ने ‍’लुटेरे’ को देखने लायक बनाया है।

पूरी फिल्म में निर्देशक का दबदबा है। उन्होंने दूसरी चीजों को हावी नहीं होने दिया और अपनी पकड़ बनाए रखी है। कई बार कहानी हिचकोले खाती है, लेकिन विक्रमादित्य ने इन झटकों को भी अच्छी तरह संभाल लिया है।

कहानी पचास के दशक में सेट है। माणिकपुर का जमींदार उदास है। वह एक आम आदमी से कहता है कि आजादी तुम्हारे लिए खुशियां लाई हैं, लेकिन हमारी जिंदगी खराब हो गई है। सरकार ने जमींदारों से जमीन और कीमती सामान लेना शुरू कर दिए हैं। उनके दबदबे को खत्म किया जा रहा है। इस बात का फायदा कई लोग उठा रहे हैं और सरकारी ऑफिसर बन जमींदारों के माल पर हाथ साफ कर रहे हैं।
मनिकपुर में पुरातन विभाग का अधिकारी वरुण श्रीवास्तव आता है। जमींदार के मंदिर के आसपास खुदाई की इजाजत लेता है। उसका कहना है कि यहां कोई सभ्यता दफन है। युवा वरुण से जमींदार बाबू प्रभावित हो जाते हैं। भरोसा करते हुए इजाजत भी देते हैं।

जमींदार बाबू की जान अपनी बेटी पाखी में रहती है। वरुण का जादू पाखी पर भी चल जाता है। पेंटिंग सीखने-सीखाने के बहाने दोनों का मेल-जोल बढ़ता है और वे करीब आ जाते हैं। लेकिन वरूण का असली चेहरा और नाम वो नहीं है जो पाखी और जमींदार बाबू समझ रहे थे। यही पर एक ट्विस्ट आता है। पाखी और जमींदार बाबू के होश उड़ जाते हैं।

‘लुटेरा’ एक धीमी गति की फिल्म है। उसमें एक किस्म का ठहराव है। शुरुआत के कुछ मिनट सुस्ती भरे लगते हैं, लेकिन जैसे ही आप फिल्म की गति से तालमेल बिठाते हैं, फिल्म अच्छीम लगने लगती है।

फिल्म दूसरे हाफ में डलहौजी में शिफ्ट होती है, यहां पर जरूर थोड़ी लंबी प्रतीत होती है, लेकिन एक शानदार क्लाइमेक्स के जरिये इसे संभाल लिया गया है। दूसरे हाफ में सोनाक्षी सिन्हा का रोल बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।

वह वरुण से इतना प्रेम करती है कि अपने साथ किए गए धोखे और इससे पिता की हुई मौत के बावजूद उसे पुलिस के सुपुर्द नहीं करती है। वह समझ नहीं पाती कि वह ऐसा क्यों कर रही है। दरअसल वह प्रेम में इतनी ऊंचाई तक पहुंच जाती है कि हर अपराध के लिए अपने प्रेमी को क्षमा कर देती है।

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विक्रमादित्य ने ‘लुटेरा’ में पचास के दशक के माहौल को ‍बहुत ही खूबी के साथ पेश किया है। समय जैसा ठहरा हुआ लगता है। उस दौर के सुकून को महसूस किया जा सकता है। इसके लिए बंगाल से बेहतरीन जगह नहीं हो सकती थी। लंबी-चौड़ी‍ हवेली जमींदार के ठाठ-बाट को अच्छी तरह से पेश करती है।

जहां तक खामियों का सवाल है तो एक चीज अखरती है। पाखी को जब पता चल जाता है कि वरुण को गोली लगी है तो एक बार ‍भी वह उससे इस बारे में बात नहीं करती। फिल्म में एक जगह देव आनंद पर कमेंट किया गया है कि वे फिल्म में गुंडों से फाइट करते थे, लेकिन उनका जमे बाल कभी नहीं बिखरते थे। ऐसी ही एक गलती विक्रमादित्य ने भी की है। डलहौजी की संकरी गलियों में एक लंबा चेज सीन फिल्माया गया है। गोलियां चलती है, लेकिन एक इंसान भी खिड़की खोलकर यह नहीं देखता कि बाहर क्या हो रहा है। एक सीन में नए जमाने की माचिस भी नजर आती है। कई बार संवाद किरदार के साथ न्याय नहीं कर पाते। लेकिन ये छोटी-मोटी बातें हैं और इससे फिल्म या कहानी पर ज्यादा असर नहीं होता।

सोनाक्षी सिन्हा और ‍रणवीर सिंह जैसे कलाकारों को लेकर विक्रमादित्य ने जोखिम उठाया है। दोनों ने अब तक ऐसी फिल्म नहीं दी है, जिसको उनके ‍अभिनय के लिए याद किया जाए। अब दोनों कह सकते हैं कि ‘लुटेरा’ उनके करियर की बेहतरीन फिल्म है। नि:संदेह ये दोनों के करियर का अब तक सबसे अच्छा काम है, लेकिन इसके बावजूद दोनों की सीमा नजर आती है। यदि दोनों की जगह और बेहतरीन कलाकार होते तो फिल्म का प्रभाव और गहरा हो जाता है।

जमींदार के रूप में बरुण चंद्रा ने कमाल का अभिनय किया है। अपनी बुलंद आवाज और शख्सियत के कारण वे रौबदार नजर आते हैं। उन्होंने उस जमींदार की भूमिका बेहतरीन तरीके से जिया है जो यह विश्वास ही नहीं कर पाता कि अब उसका समय जा चुका है। रणवीर के दोस्त के रूप में विक्रम मेसै ने भी अच्छा काम किया है।
संगीत फिल्म का प्लस पाइंट है। संगीतकार अमित त्रिवेदी ने क्वांटिटी के बावजूद क्वालिटी मेंटेन कर रखी है। ‘संवार लूं’ तो हिट हो ही चुका है। अनकही, शिकायतें भी सुनने लायक हैं। क्लाइमेक्स में ‘जिंदा’ का बेहतरीन प्रयोग है। अमिताभ भट्टाचार्य ने उम्दा गीत लिखे हैं।

फिल्म का बैकग्राउंड म्युजिक भी जबरदस्त है और इसका विक्रमादित्य ने बहुत अच्छे तरीके से इस्तेमाल किया है। कई दृश्य बिना बैकग्राउंड म्युजिक के कारण प्रभावी बने हैं। महेंद्र शेट्टी की सिनेमाटोग्राफी उन्हें कई अवॉर्ड्स दिला सकती है। कलाकारों के मूड और प्राकृतिक सौंदर्य को उन्होंने बखूबी कैद किया।

‘लुटेरा’ शानदार प्रस्तुतिकरण के कारण देखी जानी चाहिए, बस ये थोड़ा धैर्य मांगती है।

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बैनर : बालाजी मोशन पिक्चर्स, फैंटम प्रोडक्शन्स
निर्माता : एकता कपूर, शोभा कपूर, अनुराग कश्यप, विकास बहल, मधु मटेंना, विक्रमादित्य मोटवाने
निर्देशक : विक्रमादित्य मोटवान
संगीत : अमित त्रिवेदी
कलाकार : रणवीर सिंह, सोनाक्षी सिन्हा, बरुण चंद्रा, विक्रम मेसै, आदिल हुसैन, आरिफ जकारिया
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 22 मिनट 44 सेकंड
रेटिंग : 3.5/5

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