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वन टू थ्री : नाम का चक्कर

हमें फॉलो करें वन टू थ्री : नाम का चक्कर

समय ताम्रकर

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निर्माता : कुमार मंगत - सुनील लुल्ला
निर्देशक : अश्वनी धीर
संगीत : राघव
कलाकार : तुषार कपूर, ईशा देओल, सुनील शेट्टी, समीरा रेड्डी, परेश रावल, नीतू चन्द्रा, उपेन पटेल, तनीषा, संजय मिश्रा, मुकेश तिवारी, मनोज पाहवा
रेटिंग : 2.5/5

शेक्सपीयर द्वारा लिखित नाटक ‘कॉमेडी ऑफ एरर्स’ पर आधारित दो फिल्में ‘दो दूनी चार’ और ‘अंगूर’ बॉलीवुड में बन चुकी हैं। इसी को आधार बनाते हुए निर्देशक अश्विनी धीर ने ‘वन टू थ्री’ का निर्माण किया है। इसमें थोड़ा परिवर्तन करते हुए उन्होंने तीन पात्र रखे हैं, जिनके नाम मिलते हैं, परंतु शक्ल नहीं।

तीन लक्ष्मीनारायण (तुषार कपूर, सुनील शेट्टी और परेश रावल) परिस्थितिवश पाँडि में स्थित ब्लू डायमंड होटल में ठहरते हैं। तीनों अलग-अलग काम से आए हुए हैं। तीनों को एक-एक खत मिलता है जो संयोग से बदल जाता है। इससे हास्य की स्थितियाँ निर्मित होती हैं और अंत में उलझन सुलझती है।

हास्य फिल्म में अगर उम्दा संवाद और दृश्यों के साथ कहानी सशक्त हो तो फिल्म देखने का मजा बढ़ जाता है, लेकिन ‘वन टू थ्री’ में बजाय कहानी के संवादों पर ज्यादा ध्यान दिया गया है। नि:संदेह संवाद इस फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष है और वे कई बार मुस्कान लाने में कामयाब होते हैं, लेकिन संवादों के बलबूते पर ज्यादा देर हँसा नहीं जा सकता।

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‘वन टू थ्री’ के निर्देशक का उद्देश्य है दर्शकों को किसी भी तरह से हँसाना इसलिए उन्होंने फूहड़ता से भी परहेज नहीं रखा है। परेश रावल का चरित्र अंडरगारमेंट्स का व्यापार करता है और इसके जरिये उन्हें खूब अवसर मिल गया है।

निर्देशक अश्व‍िनी धीर को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने कलाकारों का चयन पात्र के अनुरूप किया है। चरित्रों पर उन्होंने बहुत ज्यादा ध्यान दिया और हर चरित्र को एक खास अंदाज में प्रस्तुत किया है। संजय मिश्रा को उन्होंने हिंदी फिल्मों के पुराने खलनायक ‘जीवन’ की तरह पेश किया।

फिल्म की लंबाई और संगीत इसके नकारात्मक पहलू हैं। फिल्म की लंबाई बहुत ज्यादा है और कम से कम आधा घंटा इसे छोटा क‍िया जाना चाहिए था। कई जगह फिल्म ठहरी हुई लगती है। सुनील शेट्टी के ‘लेफ्ट-राइट’ वाले संवाद भी जरूरत से ज्यादा बार रखे गए हैं, एक सीमा के बाद ये बोर करने लगते हैं।

फिल्म में गाने अगर नहीं भी होते तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता। गानों के लिए बेवजह सिचुएशन बनाई गई। साथ ही गाने सुनने या देखने लायक भी नहीं हैं।

अभिनय की बात की जाए, तो तुषार कपूर हर फिल्म और दृश्य में एक जैसे रहते हैं। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि दृश्य रोमांटिक है या हास्य। परेश रावल ने सड़क पर अंडरगारमेंट्स बेचने वाले व्यक्ति को बेहद सूक्ष्मता के साथ निभाया। उसकी चाल-ढाल और हाव-भाव को उन्होंने बखूबी परदे पर पेश किया। सुनील शेट्टी ने अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है।

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नायिकाओं के लिए फिल्म में ज्यादा अवसर नहीं थे। ईशा देओल का मेकअप बेहद खराब था। समीरा को भी ज्यादा मौके नहीं मिले। इन दोनों नायिकाओं के मुकाबले पुलिस इंस्पेक्टर के रूप में नीतू चंद्रा बाजी मार ले जाती हैं। उनका अभिनय एकदम बिंदास है। तनीषा और उपेन पटेल भीड़ में खड़े चेहरे की तरह हैं। संजय मिश्रा, मनोज पाहवा, ब्रजेश हीरजी और मुकेश तिवारी हँसाने में कामयाब रहे।

तकनीकी रूप से फिल्म मजबूत नहीं है, खासतौर पर संपादन बेहद ढीला है। यदि आप थोड़ा रिलैक्स होनया हँसना-हँसाना चाहते हैं तो ‘वन टू थ्री’ एक अच्छा टाइमपास है।

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