निर्माता : रोनी स्क्रूवाला
निर्देशक : निशिकांत कामत
कलाकार : केके मेनन, परेश रावल, इरफान खान, सोहा अली खान, माधवन
सन् 2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए बम धमाकों की याद से आज भी मुंबईकर सिरह उठते हैं। ‘मुंबई मेरी जान’ इसी त्रासदी पर बनी फिल्म है, लेकिन फिल्म में धमाकों के बाद के हालात पर नजर डाली गई है। बताया गया है कि किस प्रकार मुंबई के लोगों के दिलों में उस आतंकी वारदात के जख्म हरे हैं। फिल्म में पाँच लोगों की जिंदगी को पाँच अलग कहानियों के माध्यम से पर्दे पर उतारा गया है, लेकिन सभी की जिंदगी के तार कहीं-न-कहीं जुड़े हैं।
दरअसल, यह एक भावनात्मक कहानी है। निर्देशक ने पाँच लोगों की कहानियों को दो घंटे में सराहनीय तरह से समेटा है। निशिकांत कामत की यह पहली हिंदी फिल्म उन फिल्मों में गिनी जाएगी, जो कभी अपने लक्ष्य से नहीं भटकी। कहानी लिखने में कुछ कमियाँ दिखाई पड़ती है, लेकिन शानदार निर्देशन ने उन्हें पूरी तरह से ढँक दिया।
फिल्म में एक ही त्रासदी के शिकार अलग-अलग लोगों की पाँच भिन्न कहानियों को बाँट कर परोसा गया है। सभी कहानियाँ और पात्र आपस में जुड़े हैं। यदि आपने ऐसे लोगों को देखा नहीं है, तो उनके बारे में पढ़ा और सुना जरूर होगा। फिल्म के कला निर्देशक को भी दाद दी जानी चाहिए, जिन्होंने इतनी वास्तविक फिल्म बनाने में सहयोग किया।
फिल्म की पाँचों कहानियाँ दमदार हैं, लेकिन परेश रावल-विजय मौर्य, इरफान खान और के.के. मेनन की कहानियाँ बाकी से अधिक असरदार रही हैं। सोहा और माधवन की कहानियाँ इनके सामने कुछ फीकी रहीं।
फिल्म में हर पात्र का अभिनय तारीफ के काबिल है। परेश रावल ने शानदार अभिनय किया है। उनका यह प्रदर्शन इस साल के श्रेष्ठ अभिनय में शामिल किया जाना चाहिए। सशक्त अभिनेता साबित हो चुके इरफान भी बेजोड़ रहे। बड़े शॉपिंग मॉल में प्रताड़ित होने के बाद वे परर्फ्यूम की खुशबू से नफरत करते हैं। वह सीन लाजवाब है।
सोहा का भी एक भावनात्मक सीन बहुत प्रभावी रहा। इससे साबित होता है कि वे फिल्म-दर-फिल्म बेहतरीन अदाकारा बनती जा रही हैं। विजय मौर्य और परेश की जुगलबंदी भी गजब की रही।
कुल मिलाकर ‘मुंबई मेरी जान’ मुंबई में बसने वाले एक आम आदमी की कहानी है और हर एक नागरिक के देखने लायक है।