वेलकम टू सज्जनपुर : आइए चलें ‘सज्जनपुर’
निर्माता : रॉनी स्क्रूवाला निर्देशक : श्याम बेनेगल संगीत : शांतुनु मोइत्राकलाकार : श्रेयस तलपदे, अमृता राव, रवि किशन, ईला अरुण, दिव्या दत्ता, यशपाल शर्मा, राजेश्वरी सचदेव, रवि झांकलरेटिंग : 3/5 शॉपिंग मॉल्स को ही इंडिया की तरक्की समझने वाले ये भूल जाते हैं कि भारत की पचास प्रतिशत से ज्यादा आबादी गाँवों में रहती हैं, जिन्हें कई मूलभूत सुविधाएँ भी नहीं मिल पाती हैं। ईमेल और एसएमएस के जमाने में भी कई लोग अनपढ़ हैं और समस्याओं से जूझ रहे हैं। फिल्मों से भी अब गाँव गायब हो चले हैं। इन गाँव वालों की सुध ली है निर्देशक श्याम बेनेगल ने। सज्जनपुर गाँव के जरिये श्याम ने ग्रामीण जीवन की झलक दिखलाई है और गुदगुदाते हुए अंदाज में अपनी बात सामने रखी है। कहानी है पोस्ट ऑफिस के बाहर बैठे एक पत्र लेखक की और उसके सहारे पृष्ठभूमि में घटनाएँ दिखाई गई हैं। यह पत्र लेखक अनपढ़ लोगों के पत्र लिखता है और उन्हें मिले पत्रों को सुनाता है। श्याम बेनेगल का कहना है कि मुंबई जैसे शहर में भी कुछ माह पूर्व तक ऐसे लोग थे। पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत के भीतरी इलाकों में आज भी इस तरह के पत्र-लेखक रहते हैं। महादेव (श्रेयस तलपदे) लोगों के पत्र लिखता है और पैसा कमाता है। एक दिन उसके पास पत्र लिखवाने कमला (अमृता राव) आती है, जिसे महादेव बचपन में चाहता था। कमला को देख महादेव का पुराना प्यार जाग उठता है, लेकिन उसे यह जानकर दु:ख होता है कि कमला की शादी हो चुकी है और उसका पति मुंबई में है। कमला के पति को महादेव ऐसे खत लिखता है, ताकि वह कमला से नफरत करे।
इस प्रेम कहानी में दूसरी कहानियाँ गूँथी गई हैं। ग्रामीण राजनीति की झलक सरपंच के चुनाव में देखने को मिलती है, जिसमें एक गुंडे की बीवी के खिलाफ किन्नर चुनाव लड़ता है। बाल विधवा और कंपाउंडर का प्रेम और उसका अंजाम। अंधविश्वास की मारी एक माँ जो अपनी मंगली बेटी पर से अशुभ साया उठाने के लिए उसकी शादी कुत्ते से करवाती है। गाँव से शहर पलायन की कहानी कमला के पति के जरिये दिखाई है। शॉपिंग मॉल के लिए किसानों की जमीन का अधिग्रहण और उन खबरों को सनसनीखेज तरीके से बताते टीवी चैनल पर एक नुक्कड़ नाटक के जरिये व्यंग्य किया गया है। निर्देशक और लेखक ने इन समस्याओं का कोई समाधान न दिखाते हुए उन्हें जस का तस पेश कर बताया है कि अभी भी भारत इन समस्याओं से जूझ रहा है। श्याम बेनेगल ने फिल्म का मूड हलका-फुलका रखा है और इन गंभीर बातों को उन्होंने व्यंग्यात्मक तरीके से पेश किया है। फिल्म की कहानी में कुछ कमियाँ हैं, लेकिन इसके उद्देश्य को देखते हुए इन्हें खारिज किया जा सकता है। दो चीज अखरती है। एक तो फिल्म की लंबाई और दूसरा गाने। फिल्म थोड़ी छोटी होती तो कहानी तेजी से आगे बढ़ती, क्योंकि कई जगह फिल्म ठहरी हुई लगती है। फिल्म के गाने थीम के अनुरूप और अर्थपूर्ण हैं, लेकिन वे फिल्म की गति में बाधा डालते हैं। फिल्म के सारे कलाकारों ने उम्दा अभिनय किया है और इसका सारा श्रेय श्याम बेनेगल की पैनी नजर को जाता है। यह श्रेयस तलपदे के यादगार अभिनय में से एक माना जाएगा। महादेव के किरदार को उन्होंने डूबकर निभाया है। उनका चरित्र कई रंग लिए हुए है। दर्शकों को कई बार उनसे हमदर्दी होती है तो कई बार गुस्सा आता है।
अमृता राव का अभिनय ठीक है। यशपाल शर्मा और ईला अरुण का अभिनय जबरदस्त है। ईला जब भी पर्दे पर आतीं दर्शकों को हँसाकर जातीं। साधु बने दयाशंकर और किन्नर बने रवि झांकल ने भी खूब हँसाया है। दिव्या दत्ता और राजेश्वरी सचदेव को उनकी योग्यता के अनुरूप भूमिकाएँ नहीं मिलीं। रविकिशन ने भी अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है। अशोक मिश्रा के संवाद बोली का टच लिए हुए हैं, लेकिन समझने में आसान और चुटीले हैं। फिल्म के अन्य पक्ष साधारण हैं।
कुल मिलाकर ‘वेलकम टू सज्जनपुर’ साधारण लोगों की कहानी है, जिसमें मनोरंजन की आड़ में कुछ संदेश छिपे हुए हैं।