फिल्म की कहानी पिछले वर्ष प्रदर्शित फिल्म ‘शादी से पहले’ (अक्षय खन्ना, आयशा टाकिया, मल्लिका शेरावत) की याद दिलाती है। ‘वेलकम’ में छोटी-सी कहानी को खूब घुमाकर पेश किया गया है। इससे फिल्म जरूरत से ज्यादा लंबी हो गई और कई बार बोरियत होने लगती है। कई दृश्य एक जैसे लगते हैं। निर्देशक अनीस बज्मी का उद्देश्य है कि दर्शकों को हँसाया जाएँ और इसके लिए उन्होंने कई हास्य दृश्य रचे और उनको जोड़कर पेश किया। कुछ दृश्य (श्मशान वाले दृश्य और नाना पाटेकर का घोड़े पर बैठकर फिल्म की शूटिंग करना) हँसाते हैं, लेकिन उनकी संख्या बेहद कम है। फिल्म के अंत में घर टूटने वाले दृश्य को भी लंबा फुटेज दिया गया है, लेकिन सभी को इसमें शायद ही मजा आएँ। इस तरह के दृश्य पहले भी कई फिल्मों में आ चुके हैं। अनीस ने कहानी के बजाय चरित्रों को गढ़ने में ज्यादा जोर दिया है। हर चरित्र की अपनी-अपनी खूबियाँ हैं। खासकर नाना पाटेकर और उनके चमचों के बीच कुछ दृश्य अच्छे हैं। अनीस की इस बात की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने अपनी फिल्म को फूहड़ता से बचाए रखा।अक्षय कुमार का चरित्र दब्बू किस्म का है और दर्शक उन्हें चलता-पुर्जा टाइप किरदार में देखना ज्यादा पसंद करते हैं। अक्षय अब टाइप्ड होते जा रहे हैं और उन्हें कुछ अलग हटकर करना चाहिए।
नाना पाटेकर इस फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष हैं। अनिल कपूर ‘झकास’ वाली स्टाइल में नजर आएँ। नाना-अनिल की जोड़ी अच्छी लगती है। फिरोज खान डॉन का भी बाप बने। कैटरीना कैफ सिर्फ सुंदर लगी। मल्लिका शेरावत की भूमिका लंबी नहीं थी, लेकिन उन्होंने आत्मविश्वास के साथ अभिनय किया। परेश रावल अब बोर करने लगे हैं। मलाइका अरोरा ने एक गाने में सेक्सी नृत्य किया है।
तीन संगीतकार (हिमेश रेशमिया, आनंद राज आनंद और साजिद-वाजिद) होने के बावजूद केवल दो गाने ‘ऊँचा लंबा कद’ और ‘तेरा सराफा’ ही सुनने लायक बन पाएँ। कुल मिलाकर ‘वेलकम’ एक फीका स्वागत है।