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शबरी : फिल्म समीक्षा

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निर्माता : रामगोपाल वर्मा
निर्देशक : ललित मराठे
कलाकार : ईशा कोप्पिकर, मनीष वाधवान, प्रदीप रावत, राज अर्जुन, जाकिर हुसैन

महिला गैंगस्टर पर भारत में ज्यादा फिल्में देखने को नहीं मिली हैं इसलिए हम इसे शबरी की विशेषता मान सकते हैं। ललित मराठे द्वारा निर्देशित यह फिल्म ऐसी महिला की है जो गंदी बस्ती में रहती है और हालात उसे गैंगस्टर बनने के लिए मजबूर कर देते हैं।

‘शबरी’ के साथ दिक्कत यह है कि यह फिल्म वर्षों बाद रिलीज हुई है। ठीक समय पर रिलीज होती तो इस फिल्म ताजगी होती क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में गैंगस्टर आधारित कई फिल्में हम देख चुके हैं।

ललित के निर्देशन में रामगोपाल वर्मा की छाप नजर आती है। वैसा ही शॉट कम्पोजिशन और फिल्म का मूड जैसा कि आरजीवी की फिल्मों में होता है। कुछ सीक्वेंस उन्होंने अच्छे फिल्माए हैं, खासतौर पर पहले घंटे में।

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दूसरे घंटे में फिल्म पर से उनकी पकड़ छूट जाती है। पुलिस कॉप बने जाकिर हुसैन जब अपनी जांच शुरू करता है तो फिल्म की गति बहुत धीमी हो जाती है। यह किरदार कुछ नहीं करता हुआ महसूस होता है और फिल्म किसी भी दिशा में आगे नहीं बढ़ती।

ईशा कोप्पिकर का दुर्भाग्य कहा जाएगा कि यह फिल्म तब रिलीज हुई जब उनका करियर लगभग खत्म हो गया है। सही समय पर फिल्म आती तो उन्हें अपने शानदार अभिनय का कुछ फायदा मिलता। उनका काम शानदार है। प्रदीप रावत अपनी उपस्थिति से डर पैदा करने में कामयाब रहे हैं। जाकिर हुसैन का रोल ठीक से नहीं लिखा गया।

कुल मिलाकर ‘शबरी’ में कोई नई बात नहीं है।

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