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शॉर्टकट

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समय ताम्रकर

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निर्माता : अनिल कपूर
निर्देशक : नीरज वोरा
संगीत : शंकर-अहसान-लॉय
कलाकार : अक्षय खन्ना, अमृता राव, अरशद वारसी, चंकी पांडे, संजय दत्त (विशेष भूमिका), अनिल कपूर (विशेष भूमिका)
रेटिंग : 2.5/5

‘शॉर्टकट’ एक मलयालम फिल्म का रीमेक है। अनीस बज्मी (लेखक) और नीरज वोरा (निर्देशक) जैसे लोग इस फिल्म से जुड़े हैं, इससे अपेक्षा बढ़ना स्वाभाविक है, लेकिन फिल्म उन अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरती और एक औसत फिल्म बनकर रह जाती है। फिल्म देखते समय मनोरंजन बनाम बोरियत का ग्राफ लगातार ऊपर-नीचे होता रहता है।

शेखर (अक्षय खन्ना) सहायक निर्देशक है और बतौर निर्देशक अपनी फिल्म शुरू करना चाहता है। वह स्क्रिप्ट लिखता है, जिस पर एक निर्माता फिल्म बनाने के लिए तैयार हो जाता है। राजू (अरशद वारसी) बहुत खराब अभिनेता है, लेकिन सुपरस्टार बनने का ख्वाब सँजोए है।

राजू को एक निर्माता कहता है कि यदि वह अच्छी स्क्रिप्ट लाए तो उसे वह हीरो बना देगा। राजू अपने ही दोस्त शेखर की स्क्रिप्ट चुरा लेता है। फिल्म बनती है। हिट होती है और राजू सुपरस्टार बन जाता है। राजू के इस कदम से शेखर को बहुत ठेस पहुँचती है।

मानसी (अमृता राव) सुपरस्टार है और शेखर को चाहती है। दोनों शादी कर लेते हैं। शादी के बाद शेखर को सभी मानसी के पति के रूप में जानते हैं और उसे यह बात बुरी लगती है। खफा होकर शेखर अपनी पत्नी से झगड़ लेता है और दोनों अलग हो जाते है।

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नाकामियों से परेशान शेखर को एक निर्माता मिलता है और अपनी फिल्म निर्देशित करने को कहता है। उसकी शर्त है कि हीरो राजू रहेगा। फिल्म शुरू हो उसके पहले निर्माता की मौत हो जाती है। शेखर अपने पड़ोसियों की मदद से फिल्म शुरू करता है, लेकिन उसका और राजू का ईगो आड़े आता है। किस तरह से शेखर फिल्म पूरी करता है और मानसी को फिर पाता है, ये फिल्म का सार है।

फिल्म की शुरुआत अच्छी है और उम्मीद जगाती है कि एक उम्दा फिल्म देखने को मिलेगी। राजू के स्क्रिप्ट चुराने तक फिल्म में पकड़ हैं। इसके बाद शेखर और मानसी की प्रेम कहानी और उनका झगड़ा फिल्म को बोझिल बना देता है और ‘अभिमान’ की याद दिलाता है। शेखर जब फिल्म बनाना शुरू करता है, तब फिल्म में फिर पकड़ आती है, लेकिन क्लायमैक्स में मामला फिर बिगड़ जाता है।

खुद्दार शेखर पहले राजू के साथ फिल्म बनाने से इंकार कर देता है। इस बात पर अपनी पत्नी से झगड़ लेता है, लेकिन बाद में क्यों राजी हो जाता है, ये स्पष्ट नहीं किया गया है। मानसी और शेखर के झगड़े और फिर सुलह बनावटी लगते हैं। कुंठित होकर शेखर का वेटर के रूप में काम करने वाला दृश्य इमोशन पैदा करने करने के लिए रखा गया है, लेकिन बचकाना लगता है। इस फिल्म में यह बताने की कोशिश की गई है कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता है और मेहनत के जरिये ही मंजिल तक पहुँचा जा सकता है। लेकिन कहानी इस संदेश के साथ न्याय नहीं कर पाती।

सकारात्मक पहलू की बात की जाए तो कहानी में कमियाँ होने के बावजूद फिल्म का स्क्रीनप्ले अच्छा है। इस वजह से दिलचस्पी बनी रहती है। फिल्म में कुछ मनोरंजक दृश्य भी हैं, जो हँसाते हैं। लेकिन ज्यादातर फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं। जो लोग बॉलीवुड को नजदीक से जानते हैं, उन्हें ये ज्यादा मजा देंगे।

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अक्षय खन्ना ने अपना रोल पूरी गंभीरता से निभाया है। अमृता राव के हिस्से में थोड़े-बहुत गाने और दृश्य आएँ। हर फिल्म में अरशद वारसी एक जैसा अभिनय कर रहे हैं, लेकिन फिर भी वे हँसाते हैं। चंकी पांडे ने अभिनय के नाम पर तरह-तरह के मुँह बनाए हैं। संजय दत्त और ‍अनिल कपूर एक गाने में नजर आएँ, लेकिन बात नहीं बनी।

शंकर-अहसान-लॉय का संगीत उनके प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं है। केवल एक गीत ‘निकल भी जा’ याद रहता है।

कुल मिलाकर ‘शॉर्टकट : द कॉन इज़ ऑन’ एक औसत फिल्म है।

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