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साहब बीवी और गैंगस्टर : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

बैनर : तिग्मांशु धुलिया फिल्म्स, ब्रैंडस्मिथ मोशन पिक्चर्स, बोहरा ब्रदर्स प्रा.लि.
निर्माता : तिग्मांशु धुलिया, राहुल मित्रा
निर्देशक : तिग्मांश धुलिया
कलाकार : जिमी शेरगिल, माही गिल, रणदीप हुडा, दीपल शॉ, विपिन शर्मा
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 2 घंटे 3 मिनट
रेटिंग : 3.5/5

कहानी में एक नवाब है आदित्य प्रताप सिंह (जिमी शेरगिल) जिन्हें लोग साहब कहकर पुकारते हैं। साहब के पास रुतबा है, लेकिन रुपया नहीं है। अपना खर्च चलाने के लिए उन्हें टुच्चे लोगों का सामना करना होता है। एक टुच्चा बोलता है कि आप हम जैसे लोगों से लड़ते हैं तो साहब कहते हैं कि लड़ने के लिए अब राजा नहीं बचे हैं इसलिए टुच्चों का सामना करने के लिए उन्हें भी टुच्चा बनना पड़ रहा है।

बीवी का नाम है माधवी (माही गिल), जिन पर साहब बिलकुल ध्यान नहीं देते हैं। बीवी को जब वे पूछते हैं कि शहर जा रहा हूं, क्या लाऊं तो वह कहती है कि मुझे मेरी रातें लौटा दो। दरअसल साहब की मुहआ नामक रखैल है जो उन्हें मजा देने के साथ-साथ सुकून भी देती है।

उपेक्षा से मायूस बीवी को प्यार दिखता है अपने ड्राइवर बबलू (रणदीप हुडा) में जो हाल ही में उनके यहां नौकरी करने आया है। दरअसल बबलू को साहब के दुश्मन गेंदा सिंह (विपिन शर्मा) ने भेजा है। बबलू जासूसी के लिए आया है ताकि गेंदा सिंह उन्हें रास्ते से हटा सके।

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इसके बाद शुरू होता है प्यार, वफादारी, गद्दारी, दुश्मनी, राजनीति, षड्यंत्र का खूनी खेल जिसमें हर किरदार अपने स्वार्थ के मुता‍बिक पल-पल बदलता रहता है। स्क्रिप्ट में कुछ कमियां है, खासतौर पर फिल्म का क्लाइमेक्स जल्दबाजी में लिखा गया है, लेकिन साथ ही इतने ज्यादा उतार-चढ़ाव और गति है कि दर्शक फिल्म से बंधा रहता है। उसे उत्सुकता रहती है कि अगले पल क्या होने वाला है।

फिल्म के कैरेक्टर इतने डिटेल के साथ लिखे गए हैं कि कमियों को नजरअंदाज किया जा सकता है। साहब, बीवी और गैंगस्टर के किरदार बेहद मजबूती के साथ उभर कर आते हैं। इन तीनों किरदारों के साथ वर्तमान में राजनीति की हालत और गुंडागर्दी का आइना भी फिल्म दिखाती है। ‘मकबूल’ और ‘ओंकारा’ जैसी फिल्में भी इस फिल्म को देख याद आती हैं। संवाद किरदारों को धार प्रदान करता है। अच्छे संवाद इन दिनों बहुत कम सुनने को मिलते हैं।

निर्देशक तिग्मांशु धुलिया ने फिल्म के विषय के साथ पूरा न्याय किया है। एक चुके हुए नवाब, उपेक्षित स्त्री और मौकापरस्त आम आदमी को उन्होंने बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत किया है। फिल्म का आर्ट डायरेक्शन की तारीफ के काबिल है। लोकेशन का चुनाव सराहनीय है और हर शॉट पर तिगमांशु की मेहनत नजर आती है।

इस फिल्म का अभिनय पक्ष भी इसे देखने की एक वजह है। जिमी शेरगिल ने साहब के किरदार को बेहतरीन तरीके से जिया है। जहां एक ओर उनके चेहरे पर रुतबा दिखता है तो दूसरी ओर खोखली शानो-शौकत के कारण पैदा हुई उदासी भी नजर आती है।

माही गिल न केवल तब्बू जैसी दिखती है बल्कि अभिनय के मामले में भी उनके जैसी हैं। पति द्वारा बाहर रात गुजारने को वह अपनी बेइज्जती मानती है और यह बात उनके चेहरे पर नजर आती है। बोल्ड दृश्यों से भी माही ने परहेज नहीं किया है।

रणदीप हुडा का अभिनय भी सराहनीय है और एक अतिमहत्वाकांक्षी युवक की भूमिका उन्होंने अच्छे से निभाई है, लेकिन उनकी अभिनय प्रतिभा सीमित है। एक बेहतर अभिनेता इस रोल में जान डाल सकता था।

महुआ के रूप में श्रेया सरन अपनी छाप छोड़ती है। गेंदा सिंह के रूप में विपिन शर्मा और दीपल शॉ का अभिनय भी उल्लेखनीय है। फिल्म का संगीत मूड के अनुरूप है। असीम मिश्रा का कैमरावर्क बेहतरीन है और लाइट का उन्होंने अच्छा प्रयोग किया है।

साहब बीवी और गैंगस्टर अभिनय, संवाद, कैरेक्टर और कहानी में आने वाले उतार-चढ़ाव की वजह से देखने लायक है।

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