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सिंघम रिटर्न्स : फिल्म समीक्षा

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ज्यादातर सीकवल्स अपनी पिछली की तुलना में कमजोर साबित होते हैं। इसकी एक वजह है। ब्रांड नेम को भुनाने के चक्कर में निर्माता-निर्देशक कुछ भी परोस देते हैं। यमला पगला दीवाना, मर्डर, राज सीरिज के कमजोर सीक्वल इसके उदाहरण हैं। सिंघम रिटर्न्स का नाम भी इस लिस्ट में शामिल किया जा सकता है।

वर्ष 2011 में अजय देवगन को लेकर बनाई गई 'सिंघम' कमर्शियल फॉर्मेट को ध्यान में रखकर बनाई गई शानदार फिल्म थी। पुलिस ऑफिसर बाजीराव सिंघम की फिल्म को रियल पुलिस ऑफिसर्स को दिखाया गया था ताकि वे उससे कुछ सीख सके। एक आदर्श पुलिस ऑफिसर कैसा होता है इसका उदाहरण है बाजीराव सिंघम।

सिंघम को देख सिंघम रिटर्न्स से उम्मीद कुछ ज्यादा की रहती हैं, लेकिन सिंघम रिटर्न्स को देख लगता है कि सिंघम की कामयाबी का लाभ लेने की कोशिश की गई है।

सिंघम दक्षिण भारतीय फिल्म का रिमेक थी जबकि सिंघम रिटर्न्स की कहानी रोहित शेट्टी ने लिखी है। रोहित ने एक अत्यंत साधारण कहानी लिखी है। बाजीराव सिंघम अब डीसीपी बन गया है। मुंबई आ गया है। सिंघम का एक साथी एक एंबुलेंस में मृत पाया जाता है। एंबुलेंस में दस करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम मिलती है। आरोप लगता है कि सिंघम का साथी 'चोर' था।

सिंघम जानता है कि उसका कलिग ईमानदार है। वह इस मामले की तहकीकात करता है तो पता चलता है कि इसके पीछे धूर्त बाबा (अमोल गुप्ते) और एक भ्रष्ट नेता (जाकिर हुसैन) का हाथ है। वे इतने ताकतवर हैं कि सिंघम की पकड़ से हर बार छूट जाते हैं। किस तरह से सिंघम इन दोनों को सजा देता है, ये फिल्म का सार है।

रोहित शेट्टी की कहानी बिलकुल सीधी है। अच्छाई बनाम बुराई कि इस कहानी में कोई उतार-चढ़ाव नहीं देखने को मिलता, लेकिन रोहित ने खूबी के साथ ढेर सारे पंच इस कहानी में इस तरह गूंथे हैं जिन पर सिनेमाहॉल में बैठी जनता तालियां पीटती हैं। कुछ सीन अच्छे बन भी पड़े हैं जैसे हताश सिंघम जब गरीब बस्तियों में रहने वाले लड़कों को चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार से पैसे लेने के बदले पीटता है तब उनकी मां आकर सिंघम को लताड़ लगाती है कि उसे अपनी मर्दानगी उन पर दिखानी चाहिए जिनकी राजनीतिक पार्टी ऐसा कर रही है।

अल्ताफ नामक गुंडे को उसकी मिल में पकड़ने का एक्शन दृश्य भी बेहद उम्दा है और अजय उसमें गुंडों की वैसी ही धुलाई करते हैं जैसा कि जनता देखना चाहती है।

क्लाइमेक्स में एक और सीन ऐसा है जिस पर खूब तालियां बजती हैं। सिंघम और अन्य ऑफिसर्स जब भ्रष्ट सिस्टम के कारण अपराधियों को सजा दिलाने में नाकामयाब रहते हैं तो वे सब अपनी वर्दी निकाल कर सड़क पर उतर आते हैं और कानून हाथ में लेकर अपराधियों को सबक सीखाते हैं। इस सीन पर कई प्रश्न भी उठते हैं कि क्या ये सही है?

आमतौर पर फिल्मों में पुलिस को भ्रष्ट दिखाया जाता है, लेकिन सिंघम रिटर्न्स इसकी छवि को उज्जवल बनाती है। किस मुश्किल हालातों में पुलिस वाले काम करते हैं। उन पर कितना दबाव रहता है। किस तरह से उनके घर वालों को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। '47 हजार पुलिस वाले दिन रात काम करते हैं तब दो करोड़ मुंबई वाले चैन की नींद सोते हैं' इस संवाद के जरिये सिंघम पुलिस की प्रशंसा करता है।

इन खूबियों साथ-साथ कुछ कमजोरियां भी हैं। निर्देशक के रूप में रोहित शेट्टी के काम में जल्दबाजी नजर आती है। उन्हें किसी भी तरह फिल्म को पूरा कर स्वतंत्रता दिवस पर रिलीज करना थी, लिहाजा उन्होंने हड़बड़ी में काम किया है। कुछ दृश्यों में नजर आता है कि कलाकार ने ठीक से काम नहीं किया है और इसका रिटेक जरूरी है, लेकिन समय बचाने के चक्कर में ऐसा नहीं किया गया है।

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एक्शन सीन रोहित की फिल्मों की प्रमुख आकर्षण होते हैं, लेकिन अल्ताफ वाला फाइटिंग सीन छोड़ दिया जाए तो बाकी दोहराव का शिकार नजर आते हैं। कॉमेडी में रोहित की मास्टरी है, लेकिन इस फिल्म में कॉमेडी बेहूदा है। करीना की खाने की आदत को लेकर हास्य पैदा करने की फिजूल कोशिश की गई है। इसी तरह कॉमेडी के नाम पर एक और सीन ठूंसा गया है जिसमें करीना एक रिपोर्टर की पिटाई करती है।

युनूस सेजवाल की स्क्रिप्ट कुछ भी नया ऑफर नहीं करती। सिंघम का बहुत ज्यादा प्रभाव सिंघम रिटर्न्स पर नजर आता है। रोमांस और कॉमेडी के मामले में‍ स्क्रिप्ट बेहद ढीली है। कई जगह लॉजिक की अवेहलना की गई है। एक पुलिस ऑफिसर बड़ी आसानी से अपनी गर्लफ्रेंड को ऐसी बात बता देता है जो सीधी राज्य की सुरक्षा से जुड़ी रहती है।

युवाओं को सही राह पर लाने की कोशिश, राजनीतिक पार्टियों से युवा को जोड़ने की कोशिश, महिलाओं को सशक्त बनाने वाली बातें बेहद सतही प्रतीत होती हैं। फिल्म में करीना का एकमात्र प्रमुख महिला पात्र को बेहद ही बचकाना दिखाया गया है। 'ब्लैक मनी' वाला मुद्दा भी उभर कर नहीं आता।

फरहाद-साजिद के संवाद जरूर उम्दा है। 'शेर आतंक मचाता है और घायल शेर तबाही', 'पुलिस में सही गलत का कोई बैरोमीटर नहीं होता है', 'जब एक के बाद एक दरवाजे बंद होने लगे तो खिड़की खोल देना चाहिए', जैसे संवाद जरूर पसंद किए जाएंगे। इसके अलावा 'अता माज़ी सटकली' जैसा सदाबहर संवाद दर्शकों में जोश पैदा करने के लिए काफी है।

गाने फिल्म की गति में रूकावट पैदा करते हैं और म्युजिक फिल्म का माइनस पाइंट है।

अजय देवगन ने सिंघम के किरदार को पूरी ईमानदारी और गंभीरता से निभाया है। वे एक 'सिंह' की भांति दहाड़ते हैं और गुंडों पर झपट्टा मारते हैं। उनका दमदार अभिनय स्क्रिप्ट से उठकर है और वे अपने अभिनय से दर्शकों को बांध कर रखते हैं। करीना कपूर का किरदार बहुत ही लचर तरीके से लिखा गया है और बेबो को ऐसे रोल में देखना उनके फैंस भी नापसंद करेंगे।

अमोल गुप्ते ने ओवर एक्टिंग की है और ये उनके किरदार की डिमांड भी है। जाकिर हुसैन, अनुपम खेर और महेश मांजरेकर का अभिनय औसत दर्जे का रहा। फिल्म में एक दमदार विलेन की कमी भी खलती है।

सिंघम की तुलना में सिंघम रिटर्न्स उन्नीस है, लेकिन इसमें इतना मसाला तो है जो 'सिंघम' ब्रांड को पसंद करने वालों को अच्छा लगता है।


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बैनर : रिलायंस एंटरटेनमेंट, अजय देवगन फिल्म्स, रोहित शेट्टी प्रोडक्शन्स
निर्माता : अजय देवगन, रोहित शेट्टी
निर्देशक : रोहित शेट्टी
संगीत : अंकित तिवारी, जीत गांगुली, मीत ब्रदर्स
कलाकार : अजय देवगन, करीना कपूर खान, अमोल गुप्ते, अनुपम खेर, जाकिर हुसैन
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 22 मिनट 1 सेकंड
रेटिंग : 2.5/5

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