Festival Posters

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

हरि पुत्तर : पैसे और समय की बर्बादी

Advertiesment
हमें फॉलो करें हरी पु्त्तर पैसे समय बर्बादी

समय ताम्रकर

IFM
निर्माता : लकी कोहली, मुनीष पुरी, ए पी पारिगी
निर्देशक : लकी कोहली, राजेश बजाज
संगीत : आदेश श्रीवास्तव, गुरु शर्मा
कलाकार : ज़ैन खान, सारिका, जैकी श्रॉफ़ सौरभ शुक्ला, विजय राज, स्विनी खारा, शमिता शेट्टी (विशेष भूमिका)
रेटिंग : 0.5/5

लंबे-चौड़े सिनेमाघर में ‘हरि पुत्तर’ देखने की हिम्मत पंद्रह-बीस लोग जुटा पाए थे। पहले पाँच मिनट में ही समझ में आ गया कि कितनी घटिया फिल्म आगे झेलना पड़ेगी। थोड़ी देर बाद कुछ दर्शक पैसा बर्बाद होने का रोना रोने लगे थे।

इंटरवल होते ही एक दर्शक चिल्लाया इंटरवल हो गया। अरे, भई सबको पता है, इसमें चिल्लाने वाली क्या बात है। लेकिन वह शायद इसलिए खुश था कि थोड़ी देर के लिए वह इस कैद से छूट गया।

पॉपकॉर्न लेकर मैं फिर फिल्म देखने के लिए बैठा। फिल्म शुरू हुई तो आधे से ज्यादा दर्शक गायब हो चुके थे। वे समझदार थे। जो बैठे थे उनकी अपनी कुछ मजबूरी होगी।

बात की जाए फिल्म की। इस फिल्म से जुड़े लोगों ने अपनी अकल बिलकुल भी खर्च नहीं की। ‘हैरी पॉटर’ से नाम कॉपी कर उसका देशी संस्करण ‘हरि पुत्तर’ कर दिया। कहानी ‘होम अलोन’ नामक फिल्म से उठा ली, लेकिन नकल में भी अकल चाहिए, जो निर्देशकों में नहीं थी।

webdunia
IFM
एक नहीं बल्कि दो लोगों (लकी और राजेश) ने इसे निर्देशित किया, पता नहीं एक बनाता तो क्या हाल होता। लगता है कि उन्होंने आज के बच्चों को भी अपने जैसा ही समझ लिया है और ‘हरि पुत्तर’ नामक घटिया फिल्म बना डाली। इस तरह की फिल्म को आज के बच्चे पसंद करेंगे, पता नहीं उन्होंने यह कैसे सोच लिया। हैरत होती है फिल्म पर पैसा लगाने वालों की समझ पर।

हरिप्रसाद (ज़ैन खान) उर्फ हरि पुत्तर दस वर्ष का समझदार लड़का है। हाल ही में वह भारत से यूके रहने आया है। उसके पिता प्रोफेसर ढूंडा एक सीक्रेट मिशन पर हैं और उन्होंने घर पर एक चिप में कुछ गोपनीय जानकारी रखी है। उस चिप की तलाश में कुछ भाई किस्म के लोग हैं।

हरि के घर पर उसकी आंटी (लिलेट दुबे) और अंकल (जैकी श्रॉफ) ढेर सारे बच्चों के साथ आते हैं। वे बच्चे न केवल ‍हरि को सताते हैं, बल्कि हरि को अपने कमरे से भी हाथ धोना पड़ता है।

पूरा परिवार छुट्टियों के लिए दूसरे शहर जाता है, लेकिन वे घर पर हरि पुत्तर और टुकटुक (स्विनी खारा) को भूल जाते हैं। उस चिप की तलाश में दो गुंडे (सौरभ शुक्ला और विजय राज) हरि के घर में घुसते हैं। हरि और टुकटुक उनसे मुकाबला कर उस चिप को बचाते हैं।

फिल्म का एक भी पक्ष ऐसा नहीं है जिसे अच्छा कहा जा सके। फिल्म की पटकथा इतनी बुरी लिखी गई है कि एक दृश्य दूसरे से मेल नहीं खाता। ऐसा लगता है कि कुछ दृश्यों को फिल्माकर आपस में जोड़ दिया गया है।

कई घटनाक्रम ऐसे हैं, जो क्यों रखे गए हैं, समझ के बाहर है। जब भाई के आदमी (सौरभ और विजय) चिप चुराने हैरी के घर जाते हैं तो रास्ते में वे एक दुकान पर महिला से पूछते हैं कि घर में कोई है या नहीं, जबकि उस महिला का उस घर से कोई संबंध नहीं है।

webdunia
IFM
निर्देशन नामक कोई चीज है, फिल्म देखकर महसूस नहीं होता। फिल्म की फोटोग्राफी धुँधली है। सौरभ शुक्ला, विजय राज, जैकी श्रॉफ और सारिका ने अपने घटिया अभिनय से खूब बोर किया। ज़ैन खान का काम ठीक-ठाक है, जबकि स्विनी को ज्यादा अवसर नहीं मिला।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ‘हरि पुत्तर’ समय और पैसे की बर्बादी है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi