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हे बेबी : बैड से डैड बनने का सफर

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हमें फॉलो करें हे बेबी

समय ताम्रकर

निर्माता : साजिद नाडियाडवाला
निर्देशक : साजिद खान
संगीत : शंकर-अहसान-लॉय
कलाकार : अक्षय कुमार, विद्या बालन, रितेश देशमुख, फरदीन खा
रेटिंग : 2/5

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साजिद खान ने अपने कार्यक्रमों के जरिये फिल्म और उससे जुड़े लोगों का खूब मजाक उड़ाया है। अब खुद साजिद खान ‘हे बेबी’ लेकर आलोचकों के निशाने पर हैं।

‘हे बेबी’ नाम सुनकर ‍और फिल्म के प्रोमो देखकर यह भ्रम होता है कि इस फिल्म में लड़कियों के पीछे भागने वाले मनचले युवकों की कहानी है, लेकिन फिल्म का केन्द्रीय पात्र एक छोटी-सी बच्ची है।

अक्षय, फरदीन और रितेश सिडनी में रहने वाले तीन युवक हैं। इश्क, मोहब्बत और प्यार की बातें इनके लिए बेकार की बातें हैं। मौज-मस्ती करना इनका उद्देश्य है। लड़कियाँ पटाना इनके बाएँ हाथ का खेल है। एक दिन उनके घर के दरवाजे पर उन्हें एक छोटी-सी बालिका मिलती है। वे उसे अपने साथ रख लेते हैं। ये मत पूछिए कि वे पुलिस के पास क्यों नहीं जाते?

उन्हें लगता है कि यह बालिका उनमें से ही किसी एक की बेटी है। जिन लड़कियों के साथ वे सोए हैं, उसकी लिस्ट बनाने वे बैठते हैं तो संख्या सैकड़ों तक पहुँच जाती है। वे तकरीबन हर लड़की से जाकर पूछते हैं कि कहीं वह उनकी बेटी की माँ तो नहीं है।

जब माँ का पता नहीं चलता तो इस बच्ची से वे छुटकारा पाने की सोचते हैं। वे उसे चर्च के बाहर छोड़ देते हैं, पर कहीं न कहीं उन्हें इस बच्ची से मोह हो जाता है। वे उसे वापस ले आते हैं। तीनों बैड बॉय से डैड बन जाते हैं और उसका पालन-पोषण करने लगते हैं।

कहानी में नया मोड़ तब आ जाता है जब बच्ची की माँ उसे वापस ले जाती है। वह तीनों में से एक की गर्लफ्रेंड रहती है। फिर शुरू होती है कोशिशें अपनी प्रेमिका का दिल जीतने की और बेटी को वापस लाने की।

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फिल्म की शुरूआत में कुछ फूहड़ दृश्य और अश्लील संवाद हैं, लेकिन इसके बाद फिल्म अपना ट्रैक बदलती रहती है। कभी भावना प्रधान हो जाती है, तो कभी हास्य प्रधान।

निर्देशक साजिद खान ने चरित्र स्थापना के लिए ज्यादा समय नहीं लिया। फिल्म की शुरूआत एक गाने से होती है और उस गाने को देखकर ही तीनों नायकों के चरि‍त्र का अंदाजा लग जाता है।

इसके बाद सीधे तीनों की जिंदगी में बेबी आ जाती है, लेकिन शुरूआत में तेज गति से चलने वाली फिल्म बीच में बोर करने लगती है। फिल्म में कुछ दृश्य अच्छे हैं, जो दर्शकों को हँसाते हैं वहीं कुछ दृश्य उबाते भी हैं।

फिल्म टुकड़ों-टुकड़ों में अच्छी लगती है। फरदीन खान का ‘परिमल’ (चुपके-चुपके वाला किरदार) बनकर विद्या को रिझाने वाले दृश्य अच्छे हैं वहीं अक्षय और विद्या के शादी में मिलने वाले दृश्य या अक्षय और रितेश के होटल में शेख बनकर जाने वाले दृश्य बोर करते हैं।

साजिद खान का निर्देशन अच्छा है और भविष्य में उनसे और बेहतर फिल्म की उम्मीद की जा सकती है। उन्होंने सभी वर्ग का खयाल रखने की कोशिश की हैं। जहाँ उन्होंने आँसू बहाऊ दृश्य भी रखे हैं, वहीं फूहड़ता से भी परहेज नहीं रखा है।

लेकिन फिल्म न उन लोगों को संतुष्ट कर पाती है जो ‘हे बेबी’ में मसाला की उम्मीद लिए जाते हैं और न ही पारिवारिक फिल्म पसंद करने वालों को। हिंदी शब्दों का खूब मजाक उड़ाया गया है।

हास्य भूमिका निभाने का अक्षय कुमार का अपना अलग ही अंदाज है। वे अपने पूरे शरीर का उपयोग करते हैं और अभिनय बिलकुल फ्री होकर करते हैं। रितेश देशमुख की टाइमिंग गजब है, ये बात उन्होंने एक बार फिर साबित की है।

फरदीन खान अभिनय में कच्चे हैं और अभी भी वे हिंदी को अंग्रेजी टोन में बोलते हैं। विद्या बालन ने ग्लैमरस लगने की कोशिश की है और उनका अभिनय ठीक-ठाक है। बोमन ईरानी के लिए ज्यादा स्कोप नहीं था। शाहरुख खान का ठीक से उपयोग नहीं किया गया।

निर्माता साजिद नाडियाडवाला पैसों के मामले में कभी अपने निर्देशक को निराश नहीं करते हैं। एक गाने में पन्द्रह नायिकाओं का उपयोग करने की इजाजत देकर उन्होंने साजिद खान पर अपना भरोसा जताया है।

पूरी फिल्म ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में फिल्माई गई है। फिल्म का संगीत अच्छा है और ‘हे बेबी’ सहित दो-तीन गाने लोकप्रिय हो चुके हैं। ज्यादातर संवाद सपाट हैं।

कुल मिलाकर ‘हे बेबी’ देखने के बाद ऐसा महसूस होता है कि फिल्म और बेहतर बन सकती थी। कहीं न कहीं कसर रह गई।

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