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हैलो : कॉल सेंटर की एक रात

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समय ताम्रकर

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निर्देशक : अतुल अग्निहोत्री
संगीत : साजिद-वाजिद
कलाकार : सोहेल खान, ईशा कोप्पिकर, शरमन जोशी, गुल पनाग, अमृता अरोरा, शरत सक्सेना, दिलीप ताहिल, सलमान खान (विशेष भूमिका), कैटरीना कैफ (विशेष भूमिका), अरबाज खान (विशेष भूमिका)


‘हैलो’ को देखते समय अनुराग बसु की ‘लाइफ इन मेट्रो’ की याद आना स्वाभाविक है। ‘मेट्रो’ के किरदार की तरह ‘हैलो’ के किरदार भी अपने काम के दबाव से परेशान हैं। ‘मेट्रो’ में बड़े शहरों में रहने वालों की लाइफ स्टाइल दिखाई गई थी, यहाँ पृष्ठभूमि में कॉल सेंटर आ गया।

चेतन भगत के उपन्यास ‘वन नाइट @ कॉल सेंटर’ पर आधारित इस फिल्म में एक रात की कहानी है, जो प्रियंका (गुल पनाग), ईशा (ईशा कोप्पिकर), राधिका (अमृता अरोरा), वरुण (सोहेल खान), मिलेट्री अंकल (शरत सक्सेना) और श्याम (शरमन जोशी) के इर्द-गिर्द घूमती है।

कॉल सेंटर में रातभर जागकर ये लोग दूसरे देश के लोगों की समस्याओं को सुलझाते हैं। हर किसी के अपने दु:खड़े हैं और ये अपनी नौकरी से भी खुश नहीं हैं। ईशा मॉडलिंग जगत में जाना चाहती है, लेकिन उसे मौका नहीं मिलता तो वह कॉल सेंटर में नौकरी करती है।

राधिका का पति किसी और शहर में है। दिन में वह घर के काम करती है और रात में नौकरी। मिलेट्री अंकल का बेटा और पोता अमेरिका में है और बेटे से उनके संबंध खराब हैं। प्रियंका की माँ चाहती है कि वह किसी अमीर एनआरआई से शादी कर सैटल हो जाए। श्याम उसे चाहता है तो वरुण ईशा को।

फिल्म के आरंभ का एक लंबा हिस्सा इन सभी चरित्रों के परिचय देने में गया है, लेकिन इसके बावजूद फिल्म हल्की-फुल्की और रोचक लगती है। इसमें चुटीले संवादों की अहम भूमिका है। कई दृश्य ऐसे हैं जो हँसाते हैं।

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मध्यांतर के बाद फिल्म को ट्विस्ट दिया गया है। यह ट्विस्ट सही दिशा में दौड़ रही फिल्म के लिए यू टर्न साबित होता है और फिल्म बिखर जाती है। इन सभी किरदारों को भगवान का फोन आता है और सबकी जिंदगी बदल जाती है। सभी दु:खी चेहरों पर हँसी आ जाती है। अचानक सब कुछ अच्छा हो जाता है और भगवान का कॉल ही इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी बनकर उभरता है।

फिल्म में दिखाया गया है कि इन सभी किरदारों की कहानी सलमान खान को कैटरीना कैफ सुना रही हैं। भगवान के कॉल के बारे में सलमान भी कैटरीना से पूछते हैं, जिसका कैटरीना भी संतोषजनक जवाब नहीं दे पाती हैं।

कॉल सेंटर के बहाने दिखाया गया है कि किस तरह विदेशी लोग मशीनी समस्याओं से ग्रस्त होकर फोन करते हैं। फिल्म में उन्हें बेवकूफ दिखाया गया है। एनआरआई लड़कों को भोंदू और अमीर घोषित करने के साथ-साथ यह दिखाने की कोशिश की गई है कि आजकल की माताएँ चाहती हैं कि उनकी बेटी की शादी एनआरआई से हो।

निर्देशक अतुल अग्निहोत्री का प्रस्तुतीकरण अच्छा है, लेकिन ‍फिल्म की लेखन संबंधी कमजोरियों पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया। फिल्म में यह दिखाने की कोशिश की गई है कि सारे पात्र अपने काम से नाखुश हैं, लेकिन यह बात कहीं नजर नहीं आती। वे काम कम और मौज-मस्ती ज्यादा करते हैं। रात को होटल में शराब पीने और डांस देखने जाते हैं। फिल्म का अंत बहुत जल्दी में और फिल्मी स्टाइल में निपटाया गया है।

अतुल को खान परिवार से रिश्तेदारी का लाभ मिला। सलमान, कैटरीना, अरबाज, सोहेल, अमृता अरोरा ने शायद इसी रिश्तेदारी को देख फिल्म में काम करना मंजूर किया। सोहेल खान का अभिनय नैसर्गिक है। जब-जब उनका दृश्य आता है, वे बाजी मार लेते हैं।

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शरमन जोशी ने भी अपने हिस्से का काम पूरी गंभीरता से निभाया है। अमृता, ईशा और गुल पनाग को निर्देशक ने कुछ दृश्य दिए हैं। शरत सक्सेना का पूरा उपयोग नहीं किया गया है। दलीप ताहिल का किरदार कहीं से भी कॉल सेंटर में काम करने वाले शख्स का नहीं लगता।

स्टार के रूप में सलमान और कैटरीना हैं। सलमान खान पर दो गानें और चंद दृश्य फिल्माए गए हैं। सलमान का चेहरा देख ऐसा लगा मानो वे कई रातों से सोए नहीं हों। कैटरीना की भूमिका मुश्किल से पाँच या दस मिनट की होगी।

‘बैंग-बैंग’ फिल्म का एकमात्र अच्छा गीत है जो‍ फिल्म के आरंभ होते ही आता है। चेतन भगत के संवाद शानदार हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ‘हैलो’ एक औसत फिल्म है।

रेटिंग : 2/5
1- बेकार/ 2- औसत/ 3- अच्छी/ 4- शानदार/ 5- अद्‍भुत

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