निर्माता : नरेन्द्र बजाज-श्याम बजाज निर्देशक : अनंत महादेवन
संगीत : मिथुन कलाकार : तुषार कपूर, उदिता गोस्वामी, श्रेयस तलपदे, सोफी रेटिंग : 1.5/5
‘अगर’ देखने के बाद कई फिल्मों के नाम याद आते हैं, जो इससे मिलती-जुलती है। निर्देशक अनंत महादेवन ने उन फिल्मों को मिलाकर ‘अगर’ बनाई है। इस फिल्म में मानसिक बीमारी से ग्रस्त प्रेमी, जायदाद हड़पने का षड्यंत्र, अनैतिक संबंध, बेवफा प्रेमिका जैसे थ्रिलर फिल्म के सभी आवश्यक तत्व मौजूद हैं, लेकिन इसके बावजूद फिल्म वैसा असर नहीं छोड़ पाती, जिसकी तलाश एक थ्रिलर फिल्म में होती है।
आर्यन (तुषार कपूर) अपनी प्रेमिका की बेवफाई सहन नहीं कर पाता और मानसिक संतुलन खो बैठता है। उसकी प्रेमिका की मौत हो जाती है। डॉक्टर अदि मर्चेण्ट (श्रेयस तलपदे) उसका इलाज करता है और उसे फिर से जीना सिखाता है।
अदि की पत्नी जाह्नवी (उदिता गोस्वामी) एक सफल महिला है। करोड़ों रुपयों की उसकी कंपनी है। जाह्नवी को शक है कि अदि की जिंदगी में कोई महिला है। आर्यन ठीक होकर जाह्नवी की कंपनी में नौकरी करता है। इस बात से अदि बेखबर है।
अदि से परेशान होकर जाह्नवी आर्यन की तरफ आकर्षित हो जाती है। दोनों सारी हदों को पार कर देते हैं। जल्द ही जाह्नवी को अपनी गलती का अहसास होता है और वह आर्यन से संबंध नहीं रखना चाहती।
एक लड़की की बेवफाई झेल चुका आर्यन जाह्नवी की बेरूखी से परेशान हो जाता है। एक बार फिर उसका दिमागी संतुलन बिगड़ने लगता है। वह जाह्नवी को मार डालना चाहता है। आखिर में कुछ राज खुलते हैं और फिल्म समाप्त होती है।
फिल्म तब तक अच्छी लगती है, जब तक असली मुजरिम सामने नहीं आता। उसके सामने आने के बाद कई प्रश्न खड़े होते हैं, जिनका कोई जवाब नहीं दिया गया। इस कारण दर्शक अपने आपको ठगा-सा महसूस करता है।
जो साजिश अपराधी ने रची है, वो बेहद लचर और बचकानी लगती है। रहस्य और रोमांच से भरी फिल्म का अंत बेहद ठोस होना चाहिए। दर्शकों को अपने सारे प्रश्नों का जवाब मिलना चाहिए, लेकिन निर्देशक ने अंत में सारे तर्कों को एक तरफ रख दिया है। लेखक और निर्देशक अपनी कहानी को अंत में ठीक तरह से समेट नहीं पाए।
फिल्म अदि, आर्यन और जाह्नवी के इर्दगिर्द घूमती है। आर्यन और जाह्नवी के चरित्र रंग बदलते रहते हैं। आर्यन कभी समझदारी भरी बातें करता है तो कभी नासमझी भरी। जाह्नवी को एक आधुनिक और समझदार महिला बताया गया है। वह अपने पति पर शक करती है और आर्यन से संबंध बना लेती है। अपने पति को वह जिस गलती से रोकना चाहती है, वहीं गलती वह खुद करती है, ये समझ से परे है।
निर्देशक अनंत महादेवन ने एक कमजोर कहानी पर फिल्म बनाई है और सिनेमा के नाम पर कहानी में खूब छूट ली है। उन्होंने फिल्म को मॉडर्न लुक देने की कोशिश की है। निर्माता ने फिल्म पर कम पैसे खर्च किए हैं और बजट की तंगी का असर फिल्म पर दिखाई देता है।
तुषार कपूर के अभिनय की पोल उन दृश्यों में खुल जाती है, जिसमें अभिनय करना पड़ता है। पूरी फिल्म में वे बीमार से लगते हैं। श्रेयस का अभिनय तो अच्छा है, लेकिन उनका चरित्र उनकी उम्र को सूट नहीं करता। चश्मे और दाढ़ी के जरिये निर्देशक ने उन्हें मैच्योर दिखाने की कोशिश की है, लेकिन बात नहीं बनती। उदिता गोस्वामी का अभिनय अच्छा है और उन्हें काफी फुटेज भी मिला है।
सईद कादरी ने अच्छे बोल लिखे हैं, लेकिन मिथुन द्वारा बनाई गई धुनें निराश करती है। फिल्म में अच्छे गानों की कमी अखरती है।