इस हादसे के बाद प्रताप को हर मुसलमान अपना दुश्मन नजर आता है। सरहद पर देश की रक्षा करते हुए प्रताप अपने साथियों के साथ पद का दुरुपयोग करता है। वहीं दूसरी ओर कैप्टन जावेद जैसा मुस्लिम भी है जो इंसानियत का पक्षधर होने के साथ-साथ देशभक्त भी है। सेना के भी अच्छे-बुरे दोनों पहलू दिखाए गए हैं। एक तरफ ब्रिगेडियर प्रताप और राठौर जैसे बुरे पात्र हैं, जो इस वर्दी की बेइज्जती कर रहे हैं, तो दूसरी जावेद, सिद्धांत और आकाश जैसे लोग हैं। लेकिन बुरा पहलू कुछ ज्यादा उभरकर सामने आता है। फिल्म के आखिर में निर्देशक ने अखबारों में सैनिकों के बारे में छपे अच्छे-बुरे शीर्षकों को भी दिखाया है। जिसमें जहाँ एक ओर उन्हें देश की रक्षा करने के लिए सलाम किया गया है वहीं दूसरी ओर उन्होंने बलात्कार जैसे घिनौने काम भी किए हैं। निर्देशक समर खान ने कहानी को उम्दा तरीके से पेश किया है। हल्के-फुल्के अंदाज में शुरू हुई फिल्म में धीरे-धीरे तनाव बढ़ने लगता है और जबरदस्त क्लाइमैक्स के साथ फिल्म समाप्त होती है। फिल्म का क्लाइमैक्स हिलाकर रख देता है और दर्शक इस उधेड़बुन में खो जाता है कि क्या सही है और क्या गलत?जयदीप सरकार, अपर्णा मल्होत्रा और समर खान द्वारा मिलकर लिखी गई कथा और पटकथा बेहद प्रभावशाली है। अपर्णा मल्होत्रा के संवाद इस फिल्म की जान हैं। सिर्फ संवादों के जरिये ही चरित्र की मानसिकता पता चल जाती है और चरित्र की स्थापना के लिए निर्देशक को विशेष मेहनत नहीं करनी पड़ती। संवादों में कई गहरे अर्थ छिपे हुए हैं। अभिनेताओं ने भी निर्देशक का काम आसान कर दिया है। राहुल बोस का अभिनय देखना हमेशा आनंददायक रहता है। हल्के-फुल्के दृश्यों में तो वे कमाल कर देते हैं। फिल्म के अंतिम मिनटों में केके मेनन का अभिनय दर्शकों को स्तब्ध कर देता है। शुक्र है कि जावेद जाफरी ने ओवर एक्टिंग नहीं की। दीपक डोब्रियाल, मिनिषा लांबा, सीमा बिस्वास और छोटे रोल में अमृता राव ने भी अपना काम बखूबी निभाया है।
अदनान सामी का संगीत फिल्म के मूड के अनुरूप है। रोजा केटेलानो पर फिल्माया गया गाना चंद मिनट का है और उसमें अभिनेता पवन मल्होत्रा भी दो सेकंड के लिए नजर आए। कार्लोस केटेलान की सिनेमाटोग्राफी बेहतरीन है। लाइट, शेड और रंगों का उन्होंने अच्छा उपयोग किया है।
‘शौर्य’ उन लोगों को पसंद आएगी जो आम फार्मूला फिल्मों से हटकर कुछ अलग देखना चाहते हैं।