आर्मी ऑफ द डेड फिल्म देखते समय आपको शाहरुख खान की मूवी हैप्पी न्यू ईयर याद आएगी। एक बड़ी तिजोरी से अरबों रुपये लूटने का प्लान और इसके लिए एक टीम का गठन आर्मी ऑफ द डेड में भी नजर आता है। हैप्पी न्यू ईयर फिल्म की कहानी में डांस प्रतियोगिता वाला ट्रैक जोड़ा था, यहां पर जॉम्बी की पृष्ठभूमि है।
कहानी है वेगस नामक अमेरिकी शहर की जिस पर पूरी तरह से जॉम्बीज़ का कब्जा हो गया है। चारों तरफ से इस शहर को सील कर दिया गया है और सरकार की योजना है कि इस शहर पर परमाणु बम गिराकर पूरी तरह नष्ट कर दिया जाए।
वेगस के एक कैसिनो की तिजोरी में 200 मिलियन डॉलर रखे हैं। इसे चुराने का जिम्मा स्कॉट वार्ड को सौंपा जाता है। वह एक टीम बना कर इन रुपयों को लूटने के लिए वहां जाता है। उसकी राह में हजारों जॉम्बी हैं जिनका उसकी टीम को मुकाबला करना है।
जैक स्नाइडर ने इस फिल्म के लिए काफी जवाबदारी संभाली हैं। वे निर्माता हैं, निर्देशक हैं, लेखक हैं और सिनेमाटोग्राफी भी उनकी है। कहानी में कोई नई बात नहीं है। इस तरह की कहानी पर कई फिल्म बन चुकी हैं। लूट के लिए टीम बनाना और हर किरदार कुछ खास विशेषता लिए हुए वाली बात हम कई फिल्मों में देख चुके हैं। आर्मी ऑफ द डेड की कहानी मूलत: तीन ट्रैक पर चलती है। जॉम्बीज़ से लड़ाई, तिजोरी का लूटना और स्कॉट वार्ड तथा उसकी बेटी का भावानत्मक रिश्ता।
इन तीनों ट्रैक्स में सबसे बढ़िया है जॉम्बी के साथ लड़ाई वाला ट्रैक। हजारों जॉम्बीज़ को मारा जाता है। तरबूज के फटने की तरह उनके सिर के चीथड़े उड़ते हैं। खून और मांस के लोथड़े चारों ओर उड़ते हैं। एक शेर भी जॉम्बी है और वह एक व्यक्ति की क्रूर तरीके से हत्या करता है। एक जॉम्बी दो दरवाजों के बीच पिचक जाता है। इस तरह के कई दृश्य हैं जो खून-खराबा नापसंद करने वाले शायद ही देख पाएं, लेकिन जॉम्बीज़ की मूवी पसंद करने वालों को पसंद आएंगे। डायरेक्टर ने भी इस हिस्से पर ज्यादा मेहनत की है और ज्यादा फुटेज रख हैं।
जहां तक तिजोरी खोलने और लूटने वाले ट्रैक का सवाल है तो इसमें रोमांच गायब है। कुछ भी नया नहीं है। सब कुछ आसानी से हो जाता है, कोई अड़चन नहीं, कोई मुश्किल नहीं, इसलिए यह बेमजा सा लगता है।
स्कॉट वार्ड और उसकी बेटी के जो प्यार-नफरत वाला रिश्ता दर्शाया गया है वो ऐसा नहीं है कि कि आंसू निकल आए। इन दिनों चलन है कि सुपरहीरो की तरह दिखने और कारनामे करने वाले इंसान भी दु:ख-दर्द से दूर नहीं हैं। उनकी पारिवारिक जिंदगी में भी तनाव है। शायद इसीलिए इस ट्रैक को स्थान दिया गया है।
फिल्म का अंत निराशाजनक है। क्यों? इसलिए आपको फिल्म ही देखना चाहिए। बहरहाल, अंत में एक धागा छोड़ दिया गया है ताकि अगला भाग बने तो इसी धागे के सहारे कहानी बुनने में मदद मिले।
निर्देशक जैक स्नाइडर की यह फिल्म कहानी में नयापन और कमियों के बावजूद एक बार इसलिए देखी जा सकती है कि इसमें कई हैरत अंगेज दृश्य हैं। फाइटिंग सींस का आकर्षण है। फिल्म को भव्य पैमाने पर बनाया गया। तहस-नहस हुए शहर का सेट जबरदस्त है। फिल्म को शानदार तरीके से फिल्माया गया है। अंत बेहतर होता और तिजोरी लूटने वाला सीक्वेंस रोमांचक होता तो फिल्म अलग ही ऊंचाइयों पर पहुंच जाती।
फिल्म में लीड रोल निभाने वाले डेव बॉतिस्ता पहलवान रह चुके हैं, बॉडी बिल्डर हैं। उनके मसल्स देखने लायक है। इस रोल के लिए ऐसे बंदे की ही जरूरत थी, भले ही वह एक्टिंग के मामले में कमजोर हो। डेव ने यह जिम्मेदारी ठीक-ठाक तरीके से निभाई है। डेव की बेटी का किरदार एला पुर्नेल ने निभाया है। उनका चेहरा एक्सप्रेसिव हैं और उन्होंने उम्दा एक्टिंग की है। राउल कैस्टिलो, एना डे ला रेगुएरा, थियो रॉसी भी प्रभावित करते हैं। हां, भारतीय अभिनेत्री हुमा कुरैशी भी इस फिल्म में नजर आई हैं। रोल छोटा है, लेकिन वे अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब रही हैं।
आर्मी ऑफ द डेड को कम उम्मीद के साथ देखा जा सकता है। बड़ी फिल्म वाला मजा यह छोटे-छोटे हिस्सों में देती है।
निर्माता-निर्देशक : जैक स्नाइडर
संगीत : टॉम होल्केनबोर्ग
कलाकार : डेव बॉतिस्ता, एला पुर्नेल, राउल कैस्टिलो, एना डे ला रेगुएरा, थियो रॉसी, हुमा कुरैशी
* 18 वर्ष से ऊपर वालों के लिए * 2 घंटे 28 मिनट
* नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध
* रेटिंग : 3/5