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बॉम्बे वेलवेट : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

देखने में आया है कि कम बजट में बढ़िया फिल्म बनाने वाले निर्देशक को जब बड़ा बजट मिल जाता है तो वह बहक जाता है। यही 'बॉम्बे वेलवेट' में हुआ। अनुराग कश्यप को जब 90 करोड़ रुपये की फिल्म बनाने का मौका मिला तो वे लड़खड़ा गए। बड़ा बजट और बेहतरीन कलाकारों का साथ मिलने के बावजूद वे बेहतर सिनेमा नहीं रच पाए। 
 
बॉम्बे वेलवेट ज्ञान प्रकाश की पुस्तक 'मुंबई फेबल्स' पर आधारित है। आजादी मिलने के दो साल बाद 1949 में पाकिस्तान से सात-आठ साल का लड़का बलराज (रणबीर कपूर) अपनी मां के साथ भागकर मुंबई आता है। चिमन (सत्यदीप मिश्रा) के साथ उसकी दोस्ती होती है जो जेबकतरा है। छोटी-मोटी स्मगलिंग करते हुए वे युवा होते हैं। 
 
धनवानों के वैभव को देख बलराज का मन ललचाता है। वह ऐसा बिग शॉट लगाना चाहता है कि पलक झपकते ही अमीर हो जाए। उसकी दबंगई और हिम्मत को देखते हुए एक अखबार का मालिक कैजाद खम्बाटा (करण जौहर) उसे अपने साथ मिला लेता है। बलराज को बॉम्बे वेलवेट नामक क्लब खोल कर देता है जहां सफेदपोश अपराधी अपने काले व्यवसाय को अंजाम देते हैं। 
 
इसी क्लब में रोजी (अनुष्का शर्मा) गाना गाती है, जिसे खम्बाटा के प्रतिद्वंद्वी अखबार के मालिक मिस्त्री (मनीष चौधरी‍) ने खम्बाटा की जासूसी के लिए भेजा है। बलराज और रोजी एक-दूसरे की मोहब्बत में गिरफ्त हो जाते हैं। धीरे-धीरे बलराज को समझ में आता है कि वह खम्बाटा और मिस्त्री जैसे लोगों का सिर्फ मोहरा बन कर रह गया है और ये बड़े लोग उसके कंधे पर बंदूक रख लड़ रहे हैं। महत्वाकांक्षा, मोहब्बत, लालच, स्वार्थ और षड्यंत्र के दलदल में रोजी और बलराज की मोहब्बत किस तरह से आगे बढ़ती है यह फिल्म का सार है।
कहानी में अच्छी फिल्म बनने की बहुत सारी संभावनाएं थीं, लेकिन स्क्रीनप्ले ने पानी फेर दिया। फिल्म की शुरुआत अच्छी है और खम्बाटा-मिस्त्री की दुश्मनी से एक अच्छी फिल्म की उम्मीद बंधती है, लेकिन शुरुआती घंटे के बाद ही फिल्म लड़खड़ाने लगती है और अंत तक हांफते-हांफते पहुंचती है। 
 
जैसे ही सारा फोकस बलराज-रोजी की लव स्टोरी पर शिफ्ट होता है फिल्म अपना असर खो देती है। मिस्त्री और खम्बाटा के इरादों पर क्या-क्यों जैसे कई सवाल खड़े होते हैं जिनके जवाब अस्पष्ट हैं। खम्बाटा को बेहद होशियार दिखाया गया है, लेकिन कई बार वह ऐसी बेवकूफी करता है कि हैरत होती है। अनुष्का की बहन वाला ट्रेक बेहूदा है। फिल्म के जरिये यह बताने की कोशिश की गई है कि पूंजीवादी हर दौर में सफल है और उसके लिए कानून-कायदों का कोई महत्व नहीं है, लेकिन यह बात सतही तौर पर दिखाई गई है। 
निर्देशक अनुराग कश्यप ने यह फिल्म लोगों को प्रभावित करने के लिए बनाई है और उनकी यह कोशिश साफ नजर आती है। शायद फिल्म बनाते समय उन्हें भ्रम हो गया कि वे महान फिल्म की रचना कर रहे हैं और वे जो दिखा रहे हैं वो अद्‍भुत है और यही बात फिल्म को ले डूबी। रंग-बिरंगी रोशनी के जरिये अनुराग ने दर्शकों को एक अलग संसार में ले जाने की कोशिश तो की है, लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट इस राह में रूकावट साबित हुई।  
 
दूसरे हाफ में तो फिल्म पूरी तरह बिखर गई और बोर होते हुए दर्शक इस बात का इंतजार करते रहते हैं कि कब फिल्म खत्म हो। ढेर सारे गाने और स्लो मोशन एक्शन के जरिये बात को बहुत लंबा खींचा गया है। फिल्म की सबसे बड़ी कमी ये है कि यह दर्शकों को अपने से जोड़ नहीं पाती।
 
फिल्म का आर्ट डायरेक्शन शानदार है। बीते दौर के बॉम्बे को स्क्रीन पर खूबसूरत तरीके से दिखाया गया है। फिल्म का बैकग्राउंड म्युजिक और संपादन भी उम्दा है। 
 
रणबीर कपूर ने जुनूनी बलराज की भूमिका साकार करने के लिए पूरा जोर लगाया है। कुछ दृश्यों में उनका अभिनय बेहतरीन भी है, लेकिन किरदार को वे वैसी त्रीवता से पेश नहीं कर पाए जैसी कि डिमांड थी। अनुष्का शर्मा अपने अभिनय का स्तर एक जैसा नहीं रख पाईं।  
टाइटल में लिखा गया गया है 'इन्ट्रोड्यूसिंग करण जौहर' जबकि करण बीस साल पहले ही 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' कर चुके हैं। करण ने एक ठंडे दिमाग वाले क्रूर खलनायक का काम अच्छे से किया है। उनका एक दृश्य देखने लायक है जब रणबीर की अंग्रेजी सुन कर वे घर से बाहर निकल अकेले हंसते हैं। करण के किरदार को एक अलग रंग देने की कोशिश की गई है जब वे बलराज को कहते हैं कि रोजी में ऐसा क्या है जो मुझमें नहीं है। 
 
केके मेनन, सत्यदीप मिश्रा, मनीष चौधरी, विवान शाह का अभिनय उल्लेखनीय है। अमित त्रिवेदी ने उस दौर के मूड के अनुरूप संगीत रचा है और कुछ धुनें ऐसी बनाई हैं जो गुनगुनाई जा सके। राजीव रवि की सिनेमाटोग्राफी फिल्म को एक अलग ही स्तर पर ले जाती है।
 
बॉम्बे वेलवेट उस खूबसूरत शरीर की तरह है जो बेजान है। फिल्म से नामी लोग जुड़े हुए हैं, लेकिन परिणाम निराशाजनक  है। 
 
बैनर : फॉक्स स्टार स्टुडियोज़, फैंटम प्रोडक्शन्स
निर्माता : विक्रमादित्य मोटवाने, विकास बहल, फॉक्स स्टार स्टुडियोज़
निर्देशक : अनुराग कश्यप
संगीत : अमित त्रिवेदी
कलाकार : रणबीर कपूर, अनुष्का शर्मा, करण जौहर, केके मेनन, मनीष चौधरी, सिद्धार्थ बसु, रेमो फर्नांडिस, विवान शाह, रवीना टंडन
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 31 मिनट 33 सेकंड
रेटिंग : 2/5 

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