जीतू जोसेफ द्वारा लिखित और निर्देशित फिल्म 'दृश्यम' 2013 में बनी थी जिसे न केवल आम दर्शकों बल्कि फिल्म समीक्षकों ने भी पसंद किया था। यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी थी जो अपने परिवार द्वारा किए गए अपराध को पुलिस से छिपाने में सफल रहता है। जिसकी हत्या हुई है वो भी अपराधी किस्म का ही था। परिवार के मुखिया ने लाश को इस तरह छिपाया कि यह पुलिस के हाथ ही नहीं लगी और वो परिवार सबूतों के अभाव में छूट जाता है।
मोहनलाल और मीना को लेकर यह फिल्म मलयालम में बनी थी जिसके बाद में कन्नड़, तेलुगु और तमिल संस्करण भी बने। हिंदी में यह फिल्म अजय देवगन को लेकर 2015 में बनाई गई थी। अजय की दृश्यम, बजरंगी भाईजान और बाहुबली जैसी फिल्मों के बीच में रिलीज हुई थी, इसलिए बॉक्स ऑफिस पर ज्यादा कारोबार नहीं कर पाई, लेकिन टीवी पर इसे खूब पसंद किया गया।
सीक्वल दृश्यम 2 नाम से मलयालम भाषा में आया है। यह फिल्म कोविड-19 के चलते थिएटर में रिलीज नहीं हो पाई और इसे सीधा अमेज़ॉन प्राइम पर ही रिलीज कर दिया गया है।
दृश्यम 2 को जो बात खास बनाती है वो ये कि इसमें नई कहानी नहीं है। दृश्यम जहां खत्म हुई थी, वहां से कहानी को आगे बढ़ाया गया है। यह काम आसान नहीं था क्योंकि दृश्यम की कहानी अपने आप में पूरी लगती है, लेकिन जीतू जोसेफ ने इस कठिन काम को बेहतरीन तरीके से कर दिखाया है।
दृश्यम 2 में वही किरदार हैं, वही लोकेशन है। अब कहानी 6 साल बाद की है। जॉर्जकुट्टी (मोहनलाल) थिएटर मालिक बन गया है और एक फिल्म प्रोड्यूस करने वाला है। उसकी बेटी अंजू और अनु की उम्र में 6 साल का इजाफा हो गया है।
बड़ी बेटी और जॉर्जकुट्टी की पत्नी रानी (मीना) अभी भी किए गए अपराध से मुक्त नहीं हुए हैं। पुलिस को देख घबरा जाते हैं। डरावने सपने सताते हैं। हमेशा पकड़े जाने का डर सताता है। अपनी चिंताओं और डर को लेकर वे जॉर्जकुट्टी से बात भी करते हैं, लेकिन वह इन बातों को मजाक में उड़ा देता है।
अपनी बेटी और पत्नी से जॉर्जकुट्टी कहता है कि चिंता की कोई बात नहीं है और पुलिस उसे कभी नहीं पकड़ पाएगी। कहानी पर इससे ज्यादा बात नहीं की जा सकती है क्योंकि सस्पेंस खुलने का डर है।
कहानी में थोड़े अगर-मगर जरूर हैं, लेकिन अच्छी बात यह है कि यह लॉजिक कभी नहीं खोती। एक कमी जो उभर कर आती है वो ये कि फिल्म लॉजिकल तो है, लेकिन कुछ घटनाक्रम विश्वसनीय नहीं है। बतौर लेखक थोड़ी और मेहनत की जा सकती थी। लेकिन ये कमियां पूरी फिल्म देखने में रूकावट नहीं बनती। इन पर आप फिल्म खत्म होने के बाद भी बात करते रहते हैं।
स्क्रिप्ट बढ़िया तरीके से लिखी गई है और निर्देशन इतना सधा हुआ है कि पहली फ्रेम से आखिरी फ्रेम तक फिल्म आपको सीट नहीं छोड़ने देती।
जीतू जोसेफ ने अपना समय लेकर तल्लीनता से फिल्म को बनाया है। शुरुआती कुछ मिनट उन्होंने किरदारों को उभारने में लगाए हैं क्योंकि नए किरदार भी सीक्वल में शामिल किए गए हैं।
जॉर्जकुट्टी के परिवार की सोच को अच्छे से दर्शाया है। इनके लिए सीन की बुनावट सुंदर तरीके से की गई है। कुछ पारिवारिक दृश्य दिल को छूते हैं। साथ ही सस्पेंस और थ्रिल को भी बनाए रखा है। जो डर जॉर्जकुट्टी का परिवार महसूस करता है वो दर्शक भी महसूस करते हैं। लगता है कि अनहोनी हो सकती है। कुछ दृश्यों में तो इस तरह से चौंकाया है कि दर्शकों को मजा आ जाता है।
फिल्म में हर बात को विस्तार से समझाया गया है। तर्क प्रस्तुत किए गए हैं। मसलन जॉर्जकुट्टी ने अपराध तो किया है, लेकिन सजा उसे भी मिल रही है। हीरो भाग्यशाली है तो इसमें उसका कोई दोष नहीं है। लेखक के रूप में जीतू जोसेफ ने सभी बातों पर बात की है कि ऐसा है, तो क्यों है। हां, कुछ घटनाक्रम अविश्वसनीय लगते हैं।
ट्विस्ट अनपेक्षित हैं जो मजा देते हैं। फिल्म में मनोरंजन भी भरपूर है। सस्पेंस बांध कर रखता है और आखिरी के 20 मिनट तो ऐसे हैं कि आप पलक झपकने की हिम्मत भी नहीं करते हैं।
निर्देशक के रूप में जीतू जोसेफ प्रभावित करते हैं। उन्होंने दृश्यों को गहराई के साथ पेश किया है। कुछ दृश्य लंबे और कहानी में फिट नहीं लगते, लेकिन क्लाइमैक्स में पता चलता है कि वो कितने महत्वपूर्ण दृश्य थे। दृश्यम 2 को उन्होंने पहली कड़ी से अच्छी तरह से जोड़ा है। साथ ही वे ये भी आभास देते हैं कि दृश्यम 3 की कहानी उनके दिमाग में है।
मोहनलाल कितने काबिल अभिनेता हैं यह कहने की जरूरत नहीं है। वे दृश्यम 2 में बिलकुल नैसर्गिक लगे। मक्खन पर जिस स्मूथ तरीके से छुरी चलती है वैसा ही स्मूथ एक्टिंग मोहनलाल की है। उनकी पत्नी के रूप में मीना का अभिनय भी बेहतरीन है। अपनी जवां बेटियों की चिंता और अतीत का खौफ उनके अभिनय से दर्शक महसूस करते हैं। सपोर्टिंग कास्ट सशक्त तरीके से अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है।
आमतौर पर भारतीय फिल्मों के सीक्वल दमदार नहीं होते हैं, लेकिन दृश्यम 2 इस बात को झुठलाती है। दृश्यम देखी है तो दृश्यम 2 देखना बनता है।
निर्माता : एंटनी पेरुंबावूर
निर्देशक : जीतू जोसेफ
संगीत : अनिल जॉनसन
कलाकार : मोहनलाल, मीना, अंसिबा हसन, एस्थर अनिल, सिद्दकी, आशा सरथ
* मलयालम भाषा में अंग्रेजी सबटाइटल्स के साथ
* अमेजॉन प्राइम पर उपलब्ध * 2 घंटा 34 मिनट