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फाइंडिंग फैनी : फिल्म समीक्षा

हमें फॉलो करें फाइंडिंग फैनी : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

, शुक्रवार, 12 सितम्बर 2014 (15:30 IST)
फाइंडिंग फैनी में कहानी पर भारी किरदार हैं। उनका व्यवहार थोड़ा अजीब है। कैरीकेचर जैसे हैं, लेकिन इतने मजेदार हैं कि उनका यह स्वभाव पसंद आता है। मुख्यत : पांच किरदार हैं। जो एक-दूसरे से जुदा हैं, लेकिन साथ में पुरानी खटारा इम्पाला कार में शान से बैठकर फैनी को ढूंढने निकलते हैं। फैनी मिलती है या नहीं ये तो क्लाइमैक्स में पता चलता है, लेकिन फैनी को ढूंढने का इनका सफर बढ़िया है। इस सफर में वर्षों से दफन कई राज खुलते हैं। कुछ गिला-शिकवा दूर होते हैं और जिंदगी में पांचों को कुछ मकसद मिल जाता है। 
 
बीइंग सायरस और कॉकटेल जैसी फिल्म बना चुके निर्देशक होमी अजदानिया एक अलग ही दुनिया में ले जाते हैं। गोआ में पोकोलिम नामक एक गांव है। वहां की जिंदगी ठहरी हुई महसूस होती है। सबके पास फुर्सत है। कोई हड़बड़ी नहीं। खूब समय है। इस वातावरण को बहुत ही उम्दा तरीके से निर्देशक ने दर्शाया है। इसमें बैकग्राउंड म्युजिक का भी अहम रोल है। चहचहाती चिड़िया और घड़ी की टिक-टिक से उस जगह की शांति को महसूस किया जा सकता है। 

 
होमी अजदानिया ने एक खबर पढ़ी थी जिसमें लिखा था कि एक पत्र उसी इंसान के पास लौट आता है जिसने लिखा था। यह पत्र उसे 46 वर्ष बाद मिलता है। इससे उन्हें 'फाइंडिंग फैनी' का आइडिया मिला। फ्रैडी (नसीरुद्दीन शाह), स्टेफैनी फर्नांडिस उर्फ फैनी को  एक खत लिखता है जिसमें वह प्रेम का इजहार करता है। जब फैनी की तरफ से कोई जवाब नहीं मिलता तो वह यह मान लेता है कि फैनी ने उसे रिजेक्ट कर दिया है। 46 वर्ष बाद उसे यह खत सीलबंद अवस्था में वापस मिलता है। उसे महसूस होता है कि वह जिंदगी भर इस झूठ के सहारे जिया कि फैनी ने उसके प्रेम निवेदन को ठुकरा दिया जबकि फैनी को तो पता भी नहीं चला कि वह उसे चाहता था। 
 
वह फैनी को ढूंढना चाहता है जिसमें उसकी मदद करती है एंजी (दीपिका पादुकोण)। युवा एंजी विधवा है क्योंकि उसका पति (रणवीर सिंह) वेडिंग वाले दिन ही केक खाकर मर गया। अपनी सासु रोज़ी (डिम्पल कपाड़िया) के साथ वह रहती है। सेवियो (अर्जुन कपूर) एंजी को चाहता था, लेकिन जब एंजी ने दूसरे से शादी कर ली तो वह गांव छोड़ कर चला गया और अब छ: बरस बाद लौटा है। वह कार मैकेनिक है और उसने ही अपने डैड की खटारा कार डॉन पैड्रो (पंकज कपूर) को बेची है। पैड्रो एक पेंटर है और उसे भारी-भरकम औरतें बेहद पसंद है। वह रोज़ी की पेंटिंग बनाना चाहता है। फैनी को ढूंढने के लिए ऐंजी और फ्रैडी निकलते हैं और किसी न किसी वजह से इनके साथ रोज़ी, सेवियो और पैड्रो भी जुड़ जाते हैं।
 
फिल्म की स्क्रिप्ट भले ही परफेक्ट न हो, लेकिन दिलचस्प जरूर है। कॉमेडी के नाम पर कहीं भी हंसाने की कोशिश नहीं की गई है, लेकिन पूरी फिल्म में चेहरे पर एक मुस्कान तैरती रहती है। किरदार कब क्या कर बैठे, यह अंदाजा लगाना आसान नहीं है और इसी वजह से पूरी फिल्म में रूचि बनी रहती है। 
 
फिल्म में कई दृश्य अच्छे बन पड़े हैं, जैसे- पैड्रो का रोजी की पेंटिंग बनाना, रोजी-पैड्रो और फ्रैडी का पेड़ के नीचे शराब पीना, एंजी और सेवियो का साथ में रात बिताना, फैनी को ढूंढते हुए एक ऐसे घर में पहुंचना जहां एक रशियन रहता है। संवाद बहुत चुटीले हैं और कई बार समझने के लिए दिमाग भी लगाना पड़ता है। शुरुआत में लंबी कंमेट्री भी है जिसमें किरदारों का परिचय दिया गया है, लेकिन इससे बचा भी जा सकता था। 
 
होमी अदजानिया का प्रस्तुतिकरण फिल्म को खास बनाता है। उन्होंने दर्शकों को अपने तरीके से मतलब निकालने की जिम्मेदारी दी है। हालांकि उनका कहानी कहने का तरीका 'हटके' है और टिपिकल बॉलीवुड स्टाइल से दूर है, इसलिए जरूरी नहीं है कि सभी को यह पसंद आए। गोआ और वहां का वातारवण उन्होंने बेहद खूबी के साथ पेश किया है और दर्शक इन पांचों किरदारों में खो जाता है। फिल्म के हर डिपार्टमेंट पर उनकी पकड़ नजर आती है। फिल्म में दीपिका पादुकोण, अर्जुन कपूर जैसे स्टार कलाकार और पंकज कपूर, नसीरुद्दीन शाह, डिम्पल कपाड़िया जैसे बेहतरीन कलाकार हैं, लेकिन सभी को उतने ही फुटेज दिए गए जितने की जरूरत थी। 
 
फिल्म के सभी कलाकारों ने बेहतरीन अभिनय किया है। सबसे बेहतर हैं नसीरुद्दीन शाह। क्यों उन्हें भारत के सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं में से एक माना जाता है यह 'फाइंडिंग फैनी' से एक बार फिर साबित हो जाता है। फ्रैडी की सादगी और अकेलेपन को उन्होंने बहुत अच्‍छे से पेश किया।
 
पंकज कपूर का किरदार बड़ा टेढ़ा था और उन्हें ऐसे किरदारों को निभाने में मजा भी आता है। डिम्पल की पेंटिंग बनाते समय उनका अभिनय देखने लायक है और वे इस दृश्य में अपने अभिनय से बहुत कुछ कह जाते हैं। डिम्पल का किरदार बेहद लाउड है और उन्होंने वैसी ही लाउडनेस किरदार को दी जितनी डिमांड थी।
 
एंजी के रोल में दीपिका एकदम सहज नजर आईं और पहली फ्रेम से आखिरी फ्रेम तक वे अपने किरदार में रही। उन्होंने अपनी ग्लैमरस इमेज को अलग रख अभिनय किया और कही भी इन हैवीवेट अभिनेताओं से आतंकित नजर नहीं आईं। सेवियो के रूप में अर्जुन कपूर का चयन भी सही है। उन्होंने अपने किरदार को सही एटीट्यूड दिया। रणवीर सिंह चंद सेकंड के लिए नजर आते हैं, लेकिन फिल्म के अंत तक याद रहते हैं। 
 
अनिल मेहता ने की सिनेमाटोग्राफी कमाल की है और उन्होंने माहौल को खूब पकड़ा है। तकनीकी रूप से फिल्म मजबूत है। 
 
फाइंडिंग फैनी उन लोगों के लिए है जो कुछ फिल्मों में कुछ नया देखना चाहते हैं।
 
बैनर : फॉक्स स्टार स्टुडियोज़, मैडॉक फिल्म्स 
निर्माता : दिनेश विजान
निर्देशक : होमी अडजानिया
संगीत : मथिअस डुप्लेसी
कलाकार : अर्जुन कपूर, दीपिका पादुकोण, नसीरुद्दीन शाह, डिम्पल कपाड़िया, पंकज कपूर, अंजलि पाटिल, रणवीर सिंह (विशेष भूमिका)
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * एक घंटा 33 मिनट
रेटिंग : 3/5

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