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फितूर : फिल्म समीक्षा

हमें फॉलो करें फितूर : फिल्म समीक्षा
अक्सर देखा गया है कि उपन्यास को फिल्म में परिवर्तित करने पर बात अपना असर खो देती है। अभिषेक कपूर की 'फितूर' के साथ यही हुआ। अभिषेक की पिछली फिल्म 'काई पो छे' उपन्यास पर आधारित थी और उनका काम बढ़िया था, लेकिन इस बार अभिषेक मात खा गए। चार्ल्स डिकेंस के क्लासिक उपन्यास 'ग्रेट एक्सपेक्टेशन्स' पर उन्होंने 'फितूर' बनाई है। 
 
उपन्यास का भारतीयकरण किया गया है और कहानी को कश्मीर में सेट किया गया है। कहानी है नूर (आदित्य रॉय कपूर) की, जिसने बचपन में फिरदौस (कैटरीना कैफ) को देखा तो बस देखता ही रह गया। फिरदौर की मां बेगम हज़रत (तब्बू) नूर की आंखों में इश्क को पढ़ लेती है। वह अपनी बेटी को लंदन पढ़ने भेज देती है। 
 
नूर एक कलाकार है। वह दिल्ली जाकर अपनी कला को निखारता है। वर्षों बात उसकी मुलाकात युवा फिरदौस से होती है। फिरदौस का अभी भी वह उतना ही दीवाना है जितना बचपन में था। फिरदौस की शादी बिलाल से होने वाली है। नूर के इश्क के बारे में फिरदौस जानती है, लेकिन वह उसे न हां कहती है और न ही ना। 
 
बेगम का भी अतीत है। जब वह युवा थी तब उसके प्रेमी ने धोखा ‍दे दिया था। वह फिरदौस का इस्तेमाल कर नूर को यह दर्द देना चाहती है। नूर की एक बात और,  बचपन में वह एक शख्स (अजय देवगन) की मदद करता है। वर्षों बाद वह उस शख्स से मिलता है तो उसे महसूस होता है कि क्या वह सचमुच में बड़ा कलाकार है?  
फितूर के साथ दो बड़ी समस्याएं हैं। पहली स्क्रिप्ट और दूसरी फिल्म के लीड कलाकारों का अभिनय। स्क्रिप्ट इस तरह लिखी गई है कि इश्क का फितूर नजर नहीं आता है। इश्क की जो त्रीवता फिल्म में होनी थी वो नदारद है इसलिए तीन चौथाई फिल्म सपाट लगती है। 
 
फिरदौस का किरदार कन्फ्यूजन पैदा करता है। उसकी कभी भी नूर के प्रति चाहत नहीं दिखती और न ही यह बात स्पष्ट हो पाती है कि वह नूर के दिल से खेल रही है। बेगम का जब अतीत दिखाया जाता है तो कुछ बातें स्पष्ट होती हैं, लेकिन ये बताने में निर्देशक और लेखक ने बहुत देर कर दी।
 
अजय देवगन वाला ट्रेक बेहतरीन है जब एक कलाकार को पता चलता है कि बचपन से आज तक उसकी जिंदगी पर किसी और का नियंत्रण था जबकि वह अपने आपको आजाद मान रहा था। अफसोस इस बात का है कि इस पर ज्यादा फुटेज खर्च नहीं किए गए। 
 
निर्देशक के रूप में अभिषेक कपूर ड्रामे में उतार चढ़ाव लाने में असफल रहे हैं। उन्होंने कहानी को कश्मीर में अच्छी तरह सेट किया, माहौल तैयार किया, लेकिन कलाकारों से अभिनय नहीं निकलवा पाए। साथ ही उनके प्रस्तुतिकरण में स्पष्टता नहीं है। फिल्म की शुरुआत जरूर अच्छी है, लेकिन बाद में लंबे समय तक फिल्म ठहरी हुई और उदास लगती है।  
 
आदित्य रॉय कपूर और कैटरीना कैफ फिल्म की कमजोर कड़ी साबित हुए। फिरदौस के किरदार की डिमांड थी हीरोइन का खूबसूरत होना। कैटरीना इस पर भले ही खरी उतर गई हो, लेकिन अभिनय के मामले में वे कमजोर साबित हुईं। कई महत्वपूर्ण दृश्यों में उनका चेहरा भावहीन रहा। 
 
आदित्य रॉय कपूर कही से भी कश्मीरी लड़के नहीं लगे बल्कि वे मेट्रो सिटी के युवक नजर आते हैं। अपने अभिनय से भी वे इन कमियों को छिपा नहीं पाए। हालांकि उनकी कोशिश पर संदेह नहीं है, लेकिन बात नहीं बन पाई। 
 
'हैदर' में तब्बू ने कुछ इसी तरह की भूमिका निभाई थी और 'फितूर' में उसका यह विस्तार है। उन्होंने एक बार फिर बेहतरीन अभिनय किया है। 
 
आदिति राव हैदरी संक्षिप्त रोल में हैं और कई लोग तो जान भी नहीं पाएंगे कि वे युवा तब्बू के किरदार में हैं। अजय देवगन और लारा दत्ता की भी संक्षिप्त भूमिकाएं हैं।  
 
अनय गोस्वामी की सिनेमाटोग्राफी शानदार है। पूरी फिल्म को उन्होंने बेहतरीन तरीके से फिल्माया है और कश्मीर की खूबसूरती को परदे पर दिखाया है। अमित त्रिवेदी का संगीत फिल्म की थीम के अनुरूप है। 
 
ड्रामे में कन्फ्यूजन और मुख्य कलाकारों के कमजोर अभिनय के कारण 'फितूर' निराश करती है। 
 
बैनर : यूटीवी मोशन पिक्चर्स, गाय इन द स्काय पिक्चर्स 
निर्माता : सिद्धार्थ राय कपूर, अभिषेक कपूर 
निर्देशक : अभिषेक कपूर
संगीत : अमित त्रिवेदी
कलाकार : आदित्य रॉय कपूर, कैटरीना कैफ, तब्बू, अदिति राव हैदरी, अदिति राव हैदरी, लारा दत्ता, अजय देवगन
सेंसर सर्टिफिकेट : यू * 2 घंटे 11 मिनट 34 सेकंड 
रेटिंग : 2/5 

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