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हमारी अधूरी कहानी : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

अपने पिता, मां और सौतेली मां के जीवन के कुछ प्रसंग लेकर फिल्मकार महेश भट्ट ने 'हमारी अधूरी कहानी' लिखी है। इसमें उन्होंने 'अस्थि कलश' और 'मंगलसूत्र' वाले चिर-परिचित फॉर्मूलों को भी जगह न होने के बावजूद घुसाया है। जब कहानीकार को अपनी कहानी पर भरोसा नहीं रहता तब वह इस तरह की कोशिश करता है और परिणामस्वरूप 'हमारी अधूरी कहानी' जैसी सुस्त और उबाऊ फिल्म देखने को मिलती है। 
 
वसुधा (विद्या बालन) अपने पिता के कहने पर हरी (राजकुमार राव) से विवाह करती है। वसुधा को हरी अपनी मिल्कियत समझता है। दोनों को एक बेटा होता है और शादी के एक साल बाद ही हरी गायब हो जाता है। पुलिस से वसुधा को पता चलता है कि हरी आतंकवादियों के समूह से जुड़ गया है और उसने कुछ लोगों की हत्या कर दी है। पांच वर्ष बीत जाते हैं और वसुधा किसी तरह अपने बेटे की देखभाल करती है। 
वसुधा की मुलाकात आरव रुपरेल (इमरान हाशमी) से होती है जो 108 होटलों का मालिक है। आरव का बचपन भी कुछ उसी तरह बीता जैसा वसुधा के बेटे का बीत रहा है। इस वजह से वसुधा के प्रति आरव आकर्षित होता है और शादी करना चाहता है। वसुधा मान जाती है, लेकिन ऐन मौके पर हरी आ धमकता है। 
 
हरी को वसुधा और अराव के रिश्ते के बारे में पता चल जाता है। वह वसुधा से नाराज होता है कि वसुधा के मन में शादी का खयाल आया ही कैसे? साथ ही वह अपने आपको बेकसूर बताता है। कुछ नाटकीय घटनाक्रम होते हैं और फिल्म समाप्ति की ओर पहुंचती है। 
 
फिल्म की कहानी में ऐसे तत्व हैं जिसके आधार पर अच्छी फिल्म बनाई जा सकती थी, लेकिन स्क्रिप्ट ठीक से नहीं लिखी गई। उदाहरण के लिए, वसुधा का किरदार अजीब व्यवहार करता है। एक ओर उसे परंपरावादी दिखाया गया है जो मंगलसूत्र को अपने से अलग नहीं करते हुए पति का इंतजार करती है तो दूसरी ओर इतनी आधुनिक हो जाती है कि आरव के साथ सोने पर उसे ऐतराज नहीं रहता।
 
हरी को फिल्म में विलेन के तौर पर दिखाया गया है, लेकिन इसके पीछे कोई ठोस वजह नहीं मिलती। उसके किरदार को स्थापित करने के लिए पर्याप्त सीन नहीं गढ़े गए हैं। वह अपनी पत्नी की बांह पर अपना नाम गुदवा देता है, लेकिन यह कोई बहुत बड़ी वजह नहीं है कि उससे संबंध खत्म कर लिए जाए। इस वजह से वसुधा के प्रति दर्शकों को सहानुभूति नहीं होती।  
 
आरव के पास पैसा है, शोहरत है, गरीबी से उठकर मेहनत के बलबूते पर उसने अपना मकाम बनाया है, लेकिन न जाने उसके चेहरे पर हमेशा उदासी क्यों छाई रहती है? ऐसा लगता है जैसे वह मरघट से चला आ रहा हो। वैसे फिल्म का हर किरदार ऐसा ही नजर आता है मानो सारे जहां का दु:ख उनके सिर पर हो। कोई हंसता ही नहीं। फिल्म का पूरा माहौल ही उदास है। 

 
स्क्रिप्ट में वसुधा और आरव की प्रेम कहानी पर बहुत ज्यादा फुटेज खर्च किए गए हैं। यह ट्रेक इतना ठंडा और सुस्त है कि इंटरवल तक कहानी बमुश्किल आगे बढ़ती है। यही हाल इंटरवल के बाद का है। संभव है कि आपको झपकी भी लग जाए। फिल्म  के किरदारों के मुंह से जो संवाद बुलवाए गए हैं वो उन पर सूट नहीं होते हैं। हालांकि संवाद कई जगह अच्छे लिखे गए हैं, लेकिन उनके लिए स्क्रिप्ट में ठीक से सिचुएशन नहीं बनाई गई है। मंगलसूत्र को लेकर फिल्म में इतना बनावटी हौव्वा खड़ा किया गया मानो मंगलसूत्र नहीं पहना हो तो महिला ने बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो। 
 
निर्देशक मोहित सूरी का ध्यान इसी बात रहा कि हर दृश्य में फिल्म के पात्र दु:खी नजर आए, लेकिन किरदारों के दु:ख को वे दर्शकों को महसूस नहीं करा पाए और यह उनकी सबसे बड़ी असफलता है। कुछ दृश्य तो इसलिए रखे गए जिससे फिल्म खूबसूरत लगे भले ही वे अतार्किक हो। मसलन, दुबई में वसुधा होटल छोड़कर सुनसान रेगिस्तान में सूटकेस लिए पैदल जा रही है। मोहित का प्रस्तुतिकरण भी बीते दौर की फिल्मों जैसा है।  
 
विद्या बालन एक अच्छी अभिनेत्री हैं और उन्होंने अपने किरदार को गहराई से पकड़ने की पूरी कोशिश की है। इमरान हाशमी में इतनी काबिलियत नहीं है कि वे गहराई में उतरे। उन्होंने सीधे-सीधे अपने संवाद बोले हैं और कई दृश्यों में ऐसा लगा कि वे खुद बोर हो रहे हैं। राजकुमार राव को फुटेज कम मिला है, लेकिन जितना मिला है उन्होंने अच्छे से किया है। 
 
फिल्म का संगीत उल्लेखनीय है। कुछ गाने बेहतरीन लिखे और संगीतबद्ध किए गए हैं। 
 
महेश भट्ट, मोहित सूरी, विद्या बालन, राजकुमार राव, शगुफ्ता रफीक जैसे दिग्गज के जुड़े होने के बावजूद 'हमारी अधूरी कहानी' निराश करती है। 
 
बैनर : विशेष फिल्म्स, फॉक्स स्टार स्टुडियोज़ 
निर्माता : मुकेश भट्ट
निर्देशक : मोहित सूरी
संगीतकार : जीत गांगुली, मिथुन, अमि मिश्रा
कलाकार : इमरान हाशमी, विद्या बालन, राजकुमार राव, मधुरिमा तुली
सेंसर सर्टिफिकेट : यू * 2 घंटे 11 मिनट 40 सेकंड 
रेटिंग : 1.5/5

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