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जग्गा जासूस : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

अनुराग बसु ने 'बर्फी' जैसी उम्दा फिल्म बनाई है लिहाजा 'जग्गा जासूस' से उम्मीद होना स्वाभाविक है। रणबीर कपूर और अनुराग बसु की जोड़ी ने वर्षों इंतजार कराया और अब जाकर 'जग्गा जासूस' रिलीज हुई है। अनुराग बसु के बारे में कहा जाता है कि वे कभी भी पहले से तैयार की गई स्क्रिप्ट पर काम नहीं करते। मोटी-मोटी बातें उनके दिमाग में रहती है और सेट पर पहुंच कर वे अपने हिसाब से फिल्म की शूटिंग करते हैं। ऐसे में हड़बड़ी में गड़बड़ी होने की संभावना भी रहती है और 'जग्गा जासूस' में यह गड़बड़ी हो गई। इस फिल्म में सब कुछ बढ़िया है सिवाय लेखन के और यह इस महंगी और मेहनत से भरी फिल्म को भारी नुकसान पहुंचाती है।
 
जग्गा (रणबीर कपूर) के जासूसी के किस्से श्रुति सेनगुप्ता (कैटरीना कैफ) बच्चों को सुनाती है। जग्गा हकलाता है इसलिए बोलता नहीं है। उसे पालने वाला शख्स बादल बागची (शाश्वत चटर्जी) कहता है कि यदि वह गाएगा तो अटकेगा नहीं। जग्गा ऐसा ही करता है। अचानक बादल गायब हो जाता है। जग्गा को उसके जन्मदिन पर हर साल बादल एक वीडियो कैसेट भेजता है। जग्गा बढ़ा होता है और अपने पिता को ढूंढने निकल पड़ता है। इस काम में उसकी मदद करती है श्रुति। वर्षों पहले पुरुलिया में एक हवाई जहाज ने हथियार गिराए थे। इस घटना से भी कहानी को जोड़ा गया है और दिखाया गया है कि हथियार के सौदागर किस तरह दुनिया को तबाह करने में लगे हुए हैं। 
 
इस फिल्म को लिखा और निर्देशित अनुराग बसु ने किया है। फिल्म का शुरुआती हिस्सा जग्गा के बचपन पर खर्च किया गया है और फिल्म का यह पार्ट अच्छा लगता है। जग्गा और उसके पिता के बीच की बांडिंग को बहुत अच्छे से दिखाया गया है। 
 
जग्गा अब बड़ी क्लास में है और जासूसी में उसकी दिलचस्पी है। जग्गा को जासूस के रूप में स्थापित करने के लिए दो किस्से फिल्म में रखे गए हैं। एक में जग्गा अपनी टीचर की हत्या की गुत्थी को सुलझाता है और दूसरे में वह श्रुति को हत्या के आरोप से बचाता है।
 
ये दोनों केस बहुत ही सतही लगते हैं और जग्गा को जासूस के रूप में उभार नहीं पाते। जग्गा की छानबीन और मामले के तह में जाना दर्शकों को लुभा नहीं पाता। इन दोनों किस्सों को लंबा खींचा गया है और तब तक इंटरवल हो जाता है। 
 
इंटरवल के बाद उम्मीद जागती है कि पिता को खोजने वाला केस दिलचस्प होगा, लेकिन लेखक के रूप में अनुराग बसु के हाथ से फिल्म छूट जाती है। फिल्म बिना ड्राइवर के गाड़ी की तरह चलती है। जहां मर्जी होती है वहां घुस जाती है। फिल्म का क्लाइमैक्स अत्यंत निराशाजनक है और आधा-अधूरा लिखा गया है। दुश्मनों के अड्डे पर पहुंच कर जग्गा और श्रुति अविश्वसनीय कारनामे करते हैं। 
 
फिल्म का निराशाजनक पहलू यह है कि जग्गा कभी भी जासूस नहीं लगता। उसे बेहद स्मार्ट बताया गया है, लेकिन उसके काम में स्मार्टनेस नजर नहीं आती। ऐसा लगता है कि सब कुछ अपने आप हो रहा है। हथियार के सौदागरों वाली बातें फाल्तू की लगती है। 
 
फिल्म में एक प्रयोग यह किया गया है कि जग्गा अपने 90 प्रतिशत संवाद गाता है। यह प्रयोग जरूरी नहीं है कि सभी को पसंद आए या हर बार पसंद आए। इससे फिल्म को समझने में भी परेशानी होती है। लेखक के रूप में अनुराग बसु कन्फ्यूज नजर आए और उनके काम में कच्चापन झलकता है। उन्हें ऐसा लगा कि निर्देशक के रूप में वे अपने लेखन की कमजोरियों को ढंक लेंगे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। 
 
निर्देशक के रूप में बसु का काम अच्छा है। उन्होंने फिल्म को एक अलग लुक दिया है और आप जग्गा की दुनिया में खो जाते हैं। कई छोटे-छोटे सीन गढ़े हैं जो दर्शकों को छूते हैं। जग्गा का भोलापन फिल्म में निखर कर आता है और जग्गा जैसे दिलचस्प किरदार के कारण ही फिल्म में रूचि बनी रहती है।
 
उन्होंने अपने कलाकारों और तकनीशियनों से अच्‍छा काम लिया है। हालांकि कई दृश्यों को उन्होंने दोबारा दिखाया है जो फिल्म की लंबाई को बढ़ाता है, लेकिन ये उनके प्रस्तुतिकरण का तरीका है। निर्देशक के रूप में उनकी मेहनत परदे पर नजर आती है, लेकिन कमजोर लेखन के कारण यह सब व्यर्थ लगती है। अपने निर्देशकीय कौशल के दम पर वे कुछ देर तक जरूर दर्शकों को बांध कर रखते हैं, लेकिन बाद में सब कुछ खोखला लगता है।
 
तकनीकी रूप से फिल्म अद्‍भुत है। डिज़्नी का प्रोडक्शन डिपार्टमेंट में दखल दिखाई देता है। कॉस्ट्यूम डिजाइन, प्रोडक्शन डिजाइन और खूबसूरत लोकेशन फिल्म को इंटरनेशनल लुक देते हैं। सिनेमाटोग्राफर रवि वर्मन फिल्म के हीरो हैं। उनका काम अंतराष्ट्रीय स्तर का है। हर फ्रेम एक पेंटिंग की तरह नजर आती है। लाइट, शेड और रंगों का संयोजन गजब का है और आंखों को ठंडक देता है। 
 
संगीतकार प्रीतम को इस फिल्म के लिए खासी मेहनत करना पड़ी क्योंकि जो भी जग्गा गाता है उसे धुन में पिरोना पड़ा। गानों में 'गलती से मिस्टेक' और 'उल्लू का पठ्ठा' ही ठीक है। 'गलती से मिस्टेक' की कोरियोग्राफी इस गाने को देखने लायक बनाती है। 
 
रणबीर कपूर ने एक और शानदार परफॉर्मेंस दिया है। उन्होंने फिर दिखाया है कि वे काबिल एक्टर हैं। जग्गा के किरदार को उन्होंने बेहतरीन तरीके से अदा किया। उनके अभिनय में ताजगी नजर आती है। कैटरीना कैफ ने रणबीर का साथ अच्छे से निभाया है। दोनों की जोड़ी अच्‍छी भी लगी है। शाश्वत चटर्जी और सौरभ शुक्ला मंजे हुए कलाकार हैं। 
 
जग्गा जासूस को यह पता लगाना चाहिए कि इस फिल्म की स्क्रिप्ट इतनी कमजोर क्यों रह गई? 
 
बैनर : वाल्ट डिज़्नी पिक्चर्स, पिक्चर शुरू प्रोडक्शन्स 
निर्माता : सिद्धार्थ रॉय कपूर, रणबीर कपूर, अनुराग बसु
निर्देशक : अनुराग बसु
संगीत : प्रीतम  
कलाकार : रणबीर कपूर, कैटरीना कैफ, अदा शर्मा, सयानी गुप्ता, सौरभ शुक्ला, साश्वत चटर्जी  
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 41 मिनट 56 सेकंड्स 
रेटिंग : 2.5/5 

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