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कुछ कुछ लोचा है : फिल्म समीक्षा

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हमें फॉलो करें कुछ कुछ लोचा है

समय ताम्रकर

कुछ कुछ लोचा में लोचा ही लोचा है या कहा जाए कि पूरी फिल्म ही लोचा है। सबसे बड़ा लोचा तो ये है कि सनी लियोन से ज्यादा स्क्रीन टाइम राम कपूर को दिया गया है। जिन्हें सिर्फ सनी लियोन देखना है उनके साथ तो यह सबसे बड़ा लोचा है। बजाय सेक्सी सनी के उन्हें ज्यादातर समय थुलथुले राम कपूर को झेलना पड़ता है।

जो मनोरंजन के उद्देश्य से टिकट खरीद लेते हैं उनके लिए भी यह फिल्म टार्चर से कम नहीं है। ऐसा लगता है कि घटिया सा कोई टीवी धारावाहिक देख रहे हों जो खत्म होने का नाम ही न ले रहा हो। यह फिल्म इतनी लंबी लगती है मानो हजार किलोमीटर का सफर बैलगाड़ी से तय कर रहे हो।
देवांग ढोलकिया ने फिल्म को लिखा और निर्देशित किया है। फिल्म में एक छोटा-सा सीन है जिसमें सनी लियोन कहती हैं कि फिल्म हीरोइन की जिंदगी बेहद कठिन होती है। हर आदमी उसे कहां घूरता है और उसके दिमाग में क्या चल रहा होता है इससे हीरोइन वाकिफ रहती है। शायद ये दो लाइन सुनाकर ही उन्होंने सनी लियोन को इम्प्रेस कर साइन कर लिया होगा। 
 
फिल्म का लेखन निहायत ही घटिया है। बतौर निर्देशक देवांग ने और भी बुरा काम किया है। ऐसा लगता है कि कैमरा स्टार्ट होते ही वे बैठ गए। जिसके मन में जो आया वो करते चला गया। पन्द्रह मिनट बाद ही आप बोर होने लगते हैं और जल्दी ही बोरियत के उच्चतम स्तर को छूते ही थिएटर से बाहर भागने का मन करता है। बात जिनके बर्दाश्त के बाहर हो जाती है वे भाग भी लेते हैं। 
 
कहानी है प्रवीण भाई पटेल उर्फ पीपी (राम कपूर) की। 45 वर्ष का पीपी अपनी पत्नी से परेशान है क्योंकि वह सारा दिन पूजा पाठ में लगी रहती है। वह बॉलीवुड हीरोइन शनाया (सनी लियोन) पर मरता है। एक प्रतियोगिता जीत कर उसे शनाया के साथ डेट पर जाने का अवसर मिलता है।
 
शनाया को एक फिल्म में गुजराती लड़की का किरदार निभाना है और इसके लिए वह प्रवीण भाई के घर कुछ दिन गुजारना चाहती है। प्रवीण भाई अपने बीवी को बहाने से बाहर भेज देते हैं और अपने बेटे को लालच देकर अपने साथ मिला लेते हैं। 
कहानी इधर-उधर से उधार लेकर बनाई गई है जो टीवी एपिसोड की तरह लगती है। बावजूद इसके इस पर अच्छी फिल्म बनाई जा सकती है, लेकिन यह काम भी ठीक से नहीं हुआ। स्क्रिप्ट में लोचे ही लोचे हैं। प्रवीण पटेल की बीवी उसे अंत में माफ क्यों कर देती है, समझ के परे हैं। लगता है कि निर्देशक और लेखक यह मानते हैं कि पति की सारी गलतियां पत्नी को माफ कर देना चाहिए। 
 
एक्टिंग डिपार्टमेंट में फिल्म कंगाल है। राम कपूर ने इतने चीख-चीख कर संवाद बोले हैं कि कानों पर हाथ रखना पड़ता है। सनी लियोन के बिकिनी शॉट्स ही अच्‍छे हैं। एक्टिंग उनसे होती नहीं है। जिगर पटेल का किरदार निभाने वाले नवदीप छाबड़ा को पता ही नहीं है कि एक्टिंग किस चिड़िया का नाम है। यही हाल ईवलिन शर्मा का है। कोकिला के रूप में सुचिता त्रिवेदी ने ही ठीक-ठाक अभिनय किया है। 
 
तकनीकी रूप से फिल्म कमजोर है। डबल मीनिंग वाले संवादों से भी काम चलाया गया है। गाने घटिया हैं। 'सागर' के गाने 'जाने दो' की नकल भी फूहड़ है। 
 
कुछ कुछ लोचा है जैसी फिल्मों से दूर रहना ही बेहतर है। इसे देख सिर दर्द की शिकायत भी हो सकती है। 
 
बैनर : अलुम्बरा एंटरटेनमेंट, मैजिक पिक्चर्स एंड एंटरटेनमेंट प्रा.लि., मैक्सिमस मल्टीमीडिया प्रा.लि. 
निर्माता : मुकेश पुरोहित, केके अग्रवाल 
निर्देशक : देवांग ढोलकिया 
संगीत : इक्का, आरको, इटेंस, अमजद-नदीम, धरम, संदीप, किंग
कलाकार : सनी लियोन, राम कपूर, ईवलिन शर्मा, नवदीप छाबड़ा 
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 2 घंटे 24 मिनट
रेटिंग : 0.5/5 

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