Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

कुत्ते फिल्म समीक्षा: कुत्ते भी, कमीने भी

हमें फॉलो करें कुत्ते फिल्म समीक्षा: कुत्ते भी, कमीने भी
, शुक्रवार, 13 जनवरी 2023 (15:27 IST)
संगीतकार और फिल्म निर्देशक विशाल भारद्वाज के बेटे आसमान भारद्वाज ने फिल्मों की धरती पर 'कुत्ते' से कदम रखा है। उनके निर्देशन में बनी फिल्म 'कुत्ते' पर उनके पिता विशाल की छाप दिखाई देती है। विशाल की 'कमीने' जैसा ट्रीटमेंट आसमान ने 'कुत्ते' में रखा है। बैकग्राउंड म्यूजिक में 'ढेण टे नेन' वाली धुन भी बार-बार 'कमीने' की याद दिलाती है। 
 
कुत्ते के सारे किरदार बेहद हिंसक, लालची, एक-दूसरे को पछाड़ने में लगे और जंगली किस्म के हैं। गोपाल (अर्जुन कपूर) और पाजी (कुमुद मिश्रा) कहने को तो कानून के रक्षक हैं, लेकिन कानून तोड़ने में भी पीछे नहीं हैं। इन दोनों पुलिस वालों को अंडरवर्ल्ड डॉन नारायण खोबरे (नसीरुद्दीन शाह) अपने प्रतिद्वंद्वी को टपकाने की सुपारी देता है और ये दोनों फंस जाते हैं। छुटकारा पाना है तो बहुत सारा पैसा देना होगा। ऐसे में ये रुपयों से भरी एक वैन लूटने का प्लान बनाते हैं। 
 
ट्विस्ट ये है कि इस वैन को लूटने की योजना बनाने वाले ये अकेले ही नहीं हैं। लक्ष्मी (कोंकणा सेन शर्मा) भी इन पैसों को लूटना चाहती है। लवली (राधिका मदान) को भी पैसों की जरूरत है और उसकी निगाह भी इस वैन पर है। सभी इस बात से अनजान हैं कि वैन के पीछे इतने लोग लगे हुए हैं और सबके पास अपने-अपने मकसद हैं। ये सभी भूखे और जंगली कुत्तों की तरह इन रुपयों के पीछे पड़ जाते हैं। 
 
आसमान भारद्वाज ने कहानी और स्क्रीनप्ले भी लिखा है जिसमें उनके पिता ने मदद की है। आइडिया जोरदार है, लेकिन स्क्रीनप्ले में कुछ कमियां रह गई हैं जिसके कारण यह उतनी अच्छी फिल्म नहीं बन पाई है जितनी की संभावना थी। कमियों पर ज्यादा गौर नहीं किया जाए तो फिल्म आपको अच्छी लग सकती है क्योंकि लगातार किरदारों की फिल्म में एंट्री होती रहती है और उतार-चढ़ाव रोमांचित भी करते हैं। 
 
यूं तो यह फिल्म महज 2 घंटे से भी छोटी अवधि की है, लेकिन पहला हाफ ठहरा हुआ है। किरदारों को जमाने में और कहानी की नींव बनाने में जरूरत से ज्यादा वक्त लिया गया है। गोपाल और उसके शूटआउट पर समय खर्च किया गया है जो बेमतलब सा भी लगता है। कुछ सवाल भी दिमाग के दर्शकों के दिमाग में पैदा किए गए हैं, जिनके जवाब सेकंड हाफ में मिलते हैं। फिल्म के आखिरी 25 मिनट जोरदार है, हालांकि क्या होगा यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है। 
 
स्क्रीनप्ले की जो कमजोरियां हैं उसमें कुछ किरदारों को अचानक गायब हो जाना, कुछ ट्रैक अधूरे रह जाना, लक्ष्मी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं देना, कुछ कैरेक्टर्स का लक्ष्यविहीन होना प्रमुख हैं, इससे ड्रामे का असर कम हो गया है। 
 
फिल्म का प्रस्तुतिकरण अच्छा कहा जा सकता है। इसे चार चैप्टर्स में बांटा गया है और कहानी को आगे-पीछे ले जाकर ड्रामे को दिलचस्प बनाने की कोशिश की गई है। 
 
लेखक से ज्यादा निर्देशक के रूप में आसमान प्रभावित करते हैं। उन्होंने शॉट टेकिंग पर ज्यादा ध्यान और जोर दिया है और इसके लिए कहानी से भी समझौता किया है। हर दृश्य में बहुत सी बातें समेटने की कोशिश की है और कहानी को हिंसा और गालियों में डूबो कर अपने प्रस्तुतिकरण को धार दी है। साथ ही उन्होंने अपने कलाकरों से अच्छा अभिनय निकलवाया है। 
 
अर्जुन कपूर के लिए एक भ्रष्ट पुलिस ऑफिसर का किरदार मुश्किल था, लेकिन उन्होंने अच्छे से इसे अदा किया है। एक्टिंग के मामले में तब्बू सब पर भारी हैं। उन्होंने भरपूर मनोरंजन भी किया है। कुमुद मिश्रा मंझे हुए कलाकार हैं और कठिन भूमिकाएं भी सहजता से निभा लेते हैं। नसीरुद्दीन शाह और आशीष विद्यार्थी जैसे कलाकारों का ठीक उपयोग नहीं हुआ है। 
 
फरहाद अहमद देहलवी की सिनेमाटोग्राफी शानदार है। ए. श्रीकर प्रसाद की एडिटिंग शॉर्प है। गुलज़ार और फैज अहमद फैज़ के गीत कहानी को आगे बढ़ाते हैं। विशाल भारद्वाज का बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म से दर्शकों को कनेक्ट करता है। 
 
तकनीकी रूप से फिल्म जोरदार है। कुत्ते तभी पसंद आ सकती है जब उम्मीद ज्यादा न हो।  
 
  • निर्देशक : आसमान भारद्वाज
  • संगीत : विशाल भारद्वाज
  • कलाकार : अर्जुन कपूर, तब्बू, नसीरुद्दीन शाह, कोंकणा सेन शर्मा, कुमुद मिश्रा 
  • सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 1 घंटा 52 मिनट 3 सेकंड
  • रेटिंग : 2.5/5 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

ए स्पिन अराउंड दुबई : जेमी और जेसी लीवर ने सिर्फ एक टेक में किया पूरे शूट को कम्पलीट