Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

मैदान रिव्यू: पैरों से किस्मत लिखने वाले शख्स की कहानी

Advertiesment
हमें फॉलो करें maidaan

समय ताम्रकर

maidaan review in hindi: सैय्यद अब्दुल रहीम। इस शख्स को बहुत ही कम लोग जानते होंगे। ‘मैदान’ फिल्म जब अनाउंस हुई और पता चला कि इस शख्स के जीवन से प्रेरित यह फिल्म है तब लोगों ने एसए रहीम के बारे में गूगल करना शुरू किया। फुटबॉल में भारत की क्या स्थिति है ये खेल प्रेमी अच्छी तरह से जानते हैं, लेकिन वे ये नहीं जानते कि 1952 से 1962 के दौरान जब रहीम भारतीय फुटबॉल टीम के कोच थे तब उस दौर को भारतीय फुटबॉल का स्वर्णिम दौर कहा जाता था। दो बार एशियन गेम्स में गोल्ड मैडल जीता और 1956 के ओलिंपिक में भारतीय फुटबॉल टीम सेमीफाइनल तक जा पहुंची। इंडियन फुटबॉल टीम को तब ‘ब्राजील ऑफ एशिया’ कहा गया। पीके बनर्जी, जरनैल सिंह, चुन्नी गोस्वामी, अरुण घोष जैसे फुटबॉल के ‍सितारे रहीम की कोचिंग में ही निखरे जिन्हें अब भूला दिया गया है। 
 
अमित रविंदरनाथ शर्मा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘मैदान’ रहीम और भारतीय फुटबॉल टीम के सुनहरे के दौर के बारे में है। ‘मैदान’ मैदान में होने वाले खेल के बारे में तो है ही, लेकिन मैदान के बाहर चलने वाली राजनीति के बारे में भी है। उस दौर में फुटबॉल बंगाल में छाया हुआ था, तब रहीम भारत के अन्य प्रदेशों के प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को ढूंढ कर भारतीय टीम में स्थान दिलाते हैं और इसके लिए उन्हें पूरे करियर के दौरान मैदान के बाहर भी लड़ाई लड़नी पड़ती है। फिल्म रहीम, उसके परिवार और उसकी बीमारी को भी दर्शाती है। 
 
फिल्म का शुरुआती घंटा बेहद धीमा है। निर्देशक ने न जाने क्यों फिल्म का डिप्रेस्ड टोन रखा है। स्पोर्ट्स जैसे रोमांचकारी विषय के बावजूद फिल्म में अजीब सी उदासी छाई रहती है। माना कि रहीम को टीम बनाने में और फेडरेशन से कठिन लड़ाई लड़नी पड़ती है, लेकिन इसे हल्के-फुल्के तरीके से भी ‍दिखाया जा सकता था। रहीम और उसकी पत्नी  तथा परिवार के बीच के दृश्यों में उदासी झलकती है जिससे फिल्म देखने वालों को यह भारी लगती है। 
 
फिल्म दूसरे हाफ में तेजी पकड़ती है जब जकार्ता के एशियाई खेलों में भारतीय टीम के सफल सफर को दिखाया गया है। फुटबॉल दर्शकों में रोमांच को जगाता है। 

webdunia
 
फिल्म मैदान रहीम पर बहुत ज्यादा फोकस्ड है। हालांकि रहीम के बारे में पूरी तरह से जानकारी नहीं दी गई है। उन्होंने भारतीय टीम के कोच बनने का सफर कैसे तय किया? कैसे फुटबॉल में उन्हें महारथ हासिल थी? उनकी कोचिंग की खासियत, खेल को लेकर उनकी रणनीति को लेकर भी फिल्म गहराई में नहीं उतरती है। खिलाड़ियों के किरदारों को भी थोड़ा उभारना जरूरी था क्योंकि वे भारतीय फुटबॉल के महानतम खिलाड़ी थे और मैदान में तो उन्होंने ही प्रदर्शन किया। रहीम के साथ-साथ चुनिंदा खिलाड़ियों को भी मजबूत रोल और फुटेज मिलते तो फिल्म की अपील बढ़ जाती।
 
रॉय चौधरी (गजराज राव) एक खेल पत्रकार है और हमेशा वह रहीम की राह में मुश्किलें पैदा करता है। उसे भी हर जगह दिखाना थोड़ा ज्यादा हो गया, मानो लड़ाई रहीम बनाम रॉय की हो, या रहीम के जीवन में वही एकमात्र विलेन हो। इसी तरह से चाहे ओलिंपिक का मैच हो, एशियाई खेलों का मैच हो या राष्ट्रीय स्पर्धा का मैच हो, हर जगह कॉमेंटेटर के रूप में वही दो चेहरे नजर आते हैं। इन बातों पर फिल्म के डायरेक्टर और राइटर्स को ध्यान देना था। 
 
कमियों के अलावा फिल्म मैदान में देखने लायक बातें भी हैं। स्पोर्ट्स पर फिल्म बनाना आसान बात नहीं है। स्टेडियम के दृश्य फिल्माना बहुत मेहनत का काम है। खिलाड़ियों के खेलने वाले दृश्य बिलकुल रियल लगने चाहिए और इस मामले में मैदान नंबर हासिल कर लेती है। फिल्म में दिखाए गए तमाम देशी और विदेशी खिलाड़ी कहीं ये झलकने नहीं देते कि वे अभिनय कर रहे हैं। 
 
फाइनल मैच दर्शकों में रोमांच जगाता है। हालांकि इस मैच के पहले कोच द्वारा खिलाड़ियों में जोश भरने वाला स्पीच ‘चक दे इंडिया’ के स्तर का नहीं है। रहीम के बेटे हकीम का चयन भारतीय टीम में नहीं होता है, उसके बाद दोनों के बीच बातचीत का दृश्य, रहीम को फिर से कोच बनाने के लिए फेडरेशन के सदस्यों द्वारा हाथ ऊपर करने वाला सीन बढ़िया बन पड़े हैं।
 
निर्देशक अमित रविंदरनाथ शर्मा ने उस दौर को फिर से खड़ा करने का सराहनीय प्रयास किया है। उन्होंने खेल के सीन बढ़िया फिल्माए हैं। कुछ दृश्यों में वे अपनी छाप छोड़ते हैं, लेकिन फिल्म को उन्हें एनर्जीफुल बनाना था और कोच की उदासी को फिल्म पर हावी होने से बचाना था। 
 
सैयद अब्दुल रहीम के किरदार के साथ अजय देवगन पूरी तरह न्याय करते हैं। उन्हें संवाद कम मिले हैं, लेकिन पूरी फिल्म में उनकी आंखें बोलती रहती हैं। कुछ जोशीले संवाद उन्हें मिलते तो बेहतर होता। ड्रामैटिक सीन में वे भारी पड़े हैं और मैदान में होने वाले तनाव को भी उन्होंने अपनी एक्टिंग से दर्शाया है। उनकी पत्नी सायरा के रोल प्रियमणि बेहद सहज लगीं। गजराज राव की सबसे बड़ी कामयाबी यह रही कि विलेन के रूप में वे दर्शकों की नफरत हासिल करने में सफल रहे। रूद्रानील घोष, ऋषभ जोशी, विजय मौर्य, अभिलाष थापियाल असर छोड़ते हैं। खिलाड़ी के किरदारों में अमर्त्य रे (चुन्नी गोस्वामी के किरदार में), चैतन्य शर्मा (पीके बनर्जी के किरदार में), दविंदर सिंह (जरनैल सिंह के किरदार में) अमन मुंशी (अरुण घोष के किरदार में) अपनी फुटबॉल स्किल से दिल जीतते हैं। वैसे फिल्म में दिखाए गए सारे खिलाड़ी कमतर नहीं रहे हैं। 
 
फिल्म के संवाद और बेहतर हो सकते थे। कुछ गाने भी हैं, लेकिन वे जोश नहीं जगा पाते। एआर रहमान का बैकग्राउंड म्यूजिक शानदार है और फर्स्ट हाफ में खामोशी का इस्तेमाल भी उन्होंने अच्छे से किया है। स्पोर्ट्स फिल्मों को एडिट करना आसान बात नहीं है, लेकिन देव राव जाधव और शाहनवाज़ मोसानी ने यह काम बखूबी किया है। तुषार क्रांति रे की सिनेमाटोग्राफी जबरदस्त है।
 
मैदान में ऐसे दृश्यों की कमी है जिस पर तालियां बजाई जाए या गर्व से सीना चौड़ा हो। वैसे, यह मूवी स्पोर्ट्स या फुटबॉल लवर्स को ज्यादा पसंद आएगी।
  • निर्देशक: अमित रविन्द्रनाथ शर्मा 
  • फिल्म : Maidaan (2024) 
  • गीतकार : मनोज मुंतशिर शुक्ला 
  • संगीतकार : एआर रहमान 
  • कलाकार : अजय देवगन, प्रियमणि, गजराज राव, रूद्रानील घोष, ऋषभ जोशी, विजय मौर्य, अभिलाष थापियाल, अमर्त्य रे, चैतन्य शर्मा, दविंदर सिंह, अमन मुंशी 
  • सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 3 घंटे 1 मिनट 30 सेकंड 
  • रेटिंग : 3/5
  • निर्माता : ज़ी स्टूडियोज़, बोनी कपूर, अरुणाव जॉय सेनगुप्ता, आकाश चावला
  • बैनर : ज़ी स्टूडियोज़, बेव्यू प्रोजेक्ट्स, फ्रेश लाइम फिल्म्स

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

हीरामंडी में वली मोहम्मद बनकर 14 साल बाद कमबैक करने जा रहे फरदीन खान, भंसाली का जताया शुक्रिया