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एनएच 10 : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

'एनएच 10' एक थ्रिलर मूवी है, जिसमें चतुराई से भारत में महिलाओं की स्थिति, पुरुष प्रधान समाज की विसंगतियां, ऑनर किलिंग और भारत में कानून की स्थिति को दर्शाया गया है। 

हाईवे पर अपनी गाड़ी से सफर करने पर मन में आशंकाएं पैदा होती हैं। इस सफर में कानून का असर कम और जंगल राज का दबदबा बढ़ता हुआ महसूस होता है। हर शख्स संदेह पैदा करता है। न्यू एज कपल मीरा (अनुष्का शर्मा) और अर्जुन (नील भूपलम) वीकेंड मनाने के लिए गुड़गांव से दूर निकलते हैं और एनएच 10 उनके लिए मुसीबत लेकर आता है। 
 
रास्ते में वे ढाबे पर चाय पीने रूकते हैं। यहां एक लड़की और लड़के को कुछ लोग पीट रहे हैं। अर्जुन दखल देता है और जंगली किस्म के ये लोग मीरा-अर्जुन के पीछे पड़ जाते हैं। अर्जुन और मीरा के लिए आगामी कुछ घंटे नरक के समान होते हैं। जंगलों और गांवों में भटकते हुए उनका सामना एक ऐसे भारत से होता है जहां जंगल राज चल रहा है। फिल्म के एक संवाद से भारत के अंदरुनी इलाकों की भयावह स्थिति की झलक मिलती है जब एक किरदार कहता है 'गांव में पानी और बिजली तो पहुंचे नहीं है तो संविधान कैसे पहुंचेगा?' 
 
एक और मीरा है, जो पढ़ी-लिखी और नौकरीपेशा महिला वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है। अपनी शर्तों पर जीवन जीती है और जिसे खुलेआम सिगरेट पीने में हिचक नहीं है। उसके लिए चमचमाते माल्स और मेट्रो सिटी ही भारत है। 
 
जहां शहरों के शॉपिंग मॉल्स समाप्त होते हैं वही से भारत का दूसरा चेहरा सामने आता है। यहां महिलाओं की स्थिति भयावह है। वे अपने निर्णय नहीं ले सकती। दूसरी जाति में शादी करने पर अपने ही अपनों की हत्या कर देते हैं और इसे सम्मानजनक बात माना जाता है। लेडिस टॉयलेट की दीवारों पर महिलाओं के प्रति असम्मानजनक बातें लिखी जाती हैं जो पुरुषों की स्त्री के प्रति विकृत सोच को बयां करती है।  
 
 
गुंडों से भागती हुई जब मीरा पुलिस के पास पहुंचती है तो मदद के बजाय पुलिस उसे गुंडों को सौंप देती है। पुलिस वालों को भी डर है कि गांव वाले उनका हुक्का-पानी बंद नहीं कर दे आखिर उन्हें भी तो अपनी संतानों की शादी करनी है। बड़े शहर में रहने वाली मीरा पहली बार इस तरह की स्थिति का सामना करती है। इन सारी बातों के बीच मीरा-अर्जुन के पीछे भागते गुंडों के जरिये थ्रिल पैदा किया गया है। 
 
फिल्म की स्क्रिप्ट सुदीप शर्मा ने लिखी है और उन्होंने संक्षिप्त कहानी पर बेहद टाइट स्क्रिप्ट लिखी है। मीरा और अर्जुन के साथ जिस तरह की घटनाएं घटती हैं उससे दर्शक हिल जाता है। मीरा को उन्होंने हीरो की तरह पेश किया है। क्लाइमेक्स में फिल्म अनुष्का शर्मा की 'बदलापुर' बन जाती है, लेकिन यहां स्क्रिप्ट का फिल्मी हो जाना अच्छा लगता है। मीरा अपने दुश्मन को मारने के पहले सिगरेट के कश लगाती है और गुंडे की आंखों में भय देख उसे सुकुन मिलने वाला दृश्य बेहतरीन बन पड़ा है। 
 
निर्देशक नवदीप सिंह ने कहानी को रियलिटी का टच दिया है जिससे फिल्म में जान आ गई। रियल लोकेशन्स फिल्म को तीखा बनाते हैं। हिंसात्मक दृश्यों से निर्देशक ने परहेज नहीं किया है। कुछ कमियां भी हैं। फिल्म में मारकाट, खूनखराबे और क्रूरता के दृश्य विचलित कर सकते हैं। अर्जुन का गुंडों के पीछे जाने की वजह को ठीक से पेश नहीं किया गया है। शायद यह मेल ईगो वाली प्रॉब्लम है। क्लाइमैक्स में गांव का सूनापन भी अखरता है। क्या पूरा गांव तमाशा देखने गया था? 
 
दर्द सहती हुई, खून से सनी, हिम्मत नहीं हारने वाली मीरा का किरदार अनुष्का शर्मा ने बेहतरीन तरीके से जिया है। उनकी आंखों में बदला लेने की चमक साफ देखने को मिलती है। उन्होंने हर भाव को बखूबी पेश किया है।
 
मैरी कॉम में दर्शन कुमार ने आदर्श पति की भूमिका निभाई थी, लेकिन यहां पर वे क्रूर हरियाणवी युवक के रोल में है जिसे देख सिरहन पैदा होती है। नील भूपलम, दीप्ति नवल सहित तमाम कलाकारों ने अपना काम संजीदगी से किया है।
 
एनएच 10 पर सफर किया जा सकता है। 
 
बैनर : फैंटम प्रोडक्शन्स, इरोज इंटरनेशनल, क्लीन स्लेट फिल्म्स
निर्माता : कृषिका लुल्ला, अनुष्का शर्मा, कर्नेश शर्मा, विकास बहल, विक्रमादित्य मोटवाने, अनुराग कश्यप
निर्देशक : नवदीप सिंह 
कलाकार : अनुष्का शर्मा, नील भूपलम, दर्शन कुमार
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 1 घंटे 55 मिनट 9 सेकंड
रेटिंग : 3.5/5 

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