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वन नाइट स्टैंड : फिल्म समीक्षा

हमें फॉलो करें वन नाइट स्टैंड : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

वन नाइट स्टैंड, ये तीन शब्द युवाओं को आकर्षित करने के लिए काफी हैं। यदि इसके साथ सनी लियोन का नाम जोड़ दिया जाए तो सोने पे सुहागा वाली बात हो जाएगी। शायद यही सोच कर 'वन नाइट स्टैंड' के निर्माता-निर्देशक ने फिल्म शुरू की। ये तीन शब्द तो तय कर लिए गए, लेकिन इन शब्दों के इर्दगिर्द कैसी कहानी बुनी जाए, कैसे फिल्म बनाई जाए, इस पर कम दिमाग खर्च किया गया। किसी तरह फिल्म पूरी कर ली गई, लेकिन बिना कहानी के फिल्म को खींचना अच्छे-अच्छे के बस की बात नहीं है। नतीजे में 'वन नाइट स्टैंड' जैसी फिल्म सामने आती है जो मात्र 97 मिनट की है, लेकिन ये समय भी लंबा लगता है। 
 
फिल्म का नाम ही आधी कहानी जाहिर कर देता है। थाईलैंड में सेलिना (सनी लियोन) और उर्विल (तनुज वीरवानी) की मुलाकात होती है। सेलिना मतलब आसमान और उर्विल मतलब समुंदर। दोनों अपने नाम का मतलब बताते हुए कहते हैं जहां दुनिया खत्म होती वहां उनका मिलन होता है। 
 
खैर, बातें होती हैं, रोमांस होता है, हीरो-हीरोइन आकर्षित होते हैं सारी सीमाएं लांघ जाते हैं। उर्विल पुणे लौटता है तो दर्शकों को बताया जाता है कि वह शादीशुदा है। सिमरन (न्यारा बैनर्जी) से उसने पांच वर्ष पहले शादी की थी। सेलिना का नशा उर्विल के दिमाग से नहीं उतरता। वह इंटरनेट पर उसे खोजता है, लेकिन वह नहीं मिलती। अचानक पुणे में वह सेलिना से टकरा जाता है। जब वह सेलिना के बारे में तहकीकात करता है तो उसे पता चलता है कि सेलिना न केवल शादीशुदा है बल्कि उसका एक बच्चा भी है। 
 
खुद झूठ बोलने वाला हीरो, हीरोइन के झूठ बोलने से नाराज हो जाता है। गिलास तोड़ता है, हीरोइन का पीछा करता है, बीवी को सताता है, करियर पर ध्यान नहीं देता। दर्शक हैरान रह जाते हैं कि जो खुद झूठा है वह हीरोइन के झूठ पर इतना परेशान क्यों हो रहा है। 
लेखक और निर्देशक समझ नहीं पाते कि अब कहानी को आगे कैसे बढ़ाया जाए। बार-बार चीजों को दोहराया जाता है और कहानी को मंजिल पर पहुंचाए बिना फिल्म को खत्म कर दिया जाता है। 
 
जस्मिन डिसूजा ने फिल्म को निर्देशित किया है। फिल्म को उन्होंने 'कूल' लुक दिया है, लेकिन स्क्रिप्ट की कमजोरी के चलते वे ज्यादा कुछ नहीं कर पाईं। शुरुआती 40 मिनट में वे प्रभावित करती हैं, लेकिन बाद में फिल्म पर से उनका नियंत्रण छूट जाता है। 
 
सनी लियोन को लेकर दर्शकों के दिमाग में एक विशेष किस्म की छवि है। बजाय स्किन शो के उन्हें एक सशक्त रोल देना, जिसमें भरपूर अभिनय की गुंजाइश हो, जोखिम भरा हो सकता है। 'वन नाइट स्टैंड' में यह दांव उल्टा पड़ गया है। सनी लियोन पुरजोर कोशिश करती हैं, लेकिन एक सीमा के बाद उनसे अभिनय नहीं होता। 
 
तनुज वीरवानी ने पूरे आत्मविश्वास के साथ अभिनय किया है, लेकिन फिल्म के आखिर में उन्हें भी समझ नहीं आया कि वे क्या कर रहे हैं। न्यारा बैनर्जी की भूमिका अत्यंत ही कमजोर थी। वे संजी-संवरी चुपचाप सब कुछ सहने वाली पत्नी की भूमिका में हैं। 
 
सिनेमाहॉल छोड़ते समय कुछ दर्शकों की प्रतिक्रिया से पता चला कि सनी लियोन को जिस सेक्सी अंदाज में देखने के लिए उन्होंने टिकट खरीदा था उसकी भरपाई नहीं हो पाई।  
 
फिल्म में एक गाना है- 'दो पैग मार और भूल जा', लेकिन इस फिल्म को भूलने में दो पैग कम हैं। 
 
बैनर : स्विस एंटरटेनमेंट प्रा.लि.
निर्माता : फुरकुन खान, प्रदीप शर्मा
निर्देशक : जस्मिन डिसूजा
संगीत : जीत गांगुली, मीत ब्रदर्स, टोनी कक्कर, विवेक कर
कलाकार : सनी लियोन, तनुज वीरवानी, न्यारा बैनर्जी
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 1 घंटा 37 मिनट 
रेटिंग : 1.5/5 

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