Shree Sundarkand

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

फैंटम : फिल्म समीक्षा

Advertiesment
हमें फॉलो करें फैंटम

समय ताम्रकर

पाकिस्तान में घुसकर अमेरिका लादेन को मार सकता है तो भारत भी 26/11 मुंबई हमले के मास्टर माइंड्स को मार सकता है। आम लोगो की तरह यह विचार रॉ के एक ऑफिसर को आता है। सीनियर ऑफिसर पहले तो उसे पागल बोलता है, लेकिन यह आइडिया उसे भी जम जाता है। सरकार तो इस बात की इजाजत देगी नहीं इसलिए चार ऑफिसर अपने दम पर ही एक मिशन बनाते हैं और तलाश शुरू करते हैं एक फैंटम की। फैंटम कॉमिक्स की दुनिया का वो पात्र है जिसके बारे में दुनिया कुछ भी नहीं जानती। वह आता है और अपना काम कर चला जाता है। दानियल खान (सैफ अली खान) के रूप में उन्हें अपना फैंटम मिल जाता है जिसे आर्मी से निकाल दिया गया है। किस तरह से दानियल अपने मिशन को अंजाम देता है यह फिल्म में दिखाया गया है।  
 
एस जैदी की किताब 'मुंबई एवेंजर्स' पर फिल्म आधारित है। किताब के चार पात्र अंतराष्ट्रीय स्तर के आंतकवादियों हाफिज सईद, डेविड हेडली, साजिद मीर और लखवी पर आधारित हैं। थोड़े बहुत नाम बदल कर इन्हें फिल्म में पेश किया है। फिल्म की कहानी बेहतरीन है। विलेन वास्तविक जीवन से उठाए गए हैं और इनके तार कल्पना से जोड़े गए हैं। इतना सब कुछ होने के बावजूद यदि 'फैंटम' एक औसत फिल्म बन कर रह गई है तो दोष स्क्रीनप्ले, निर्देशन और एक्टर्स को दिया जा सकता है। 
कहने को ‍तो यह फिल्म थ्रिलर है, लेकिन थ्रिल ऐसा नहीं है कि दर्शक सीट से ही चिपका रहे। सारे खूंखार आतंकवादियों को बहुत ही आसानी से निपटा दिया गया मानो यह बाएं हाथ का खेल हो। साजिद और डेविड की हत्या बहुत ही आसानी से कर दी गई है जबकि हारिस (हाफिज़) का अंत बहुत ही फिल्मी है। पाकिस्तानी गलियों में उसका पीछा करते हुए हीरो रास्ते इतनी आसानी से ढूंढ लेता है मानो वह वही पैदा हुआ हो। 
 
लॉजिक को भी कई बार साइड में रख दिया गया है। जैसे रॉ के चार ऑफिसर्स बताते हैं कि इस मिशन के बारे में किसी को भी बताया नहीं जाए, लेकिन दानियल खान कुछ मुलाकातों के बाद ही नवाज़ मिस्त्री (कैटरीना कैफ) को मिशन के बारे में सारी जानकारी दे देता है। दूसरे हाफ में फिल्म जरूर मजबूत होती है जब ड्रामा पाकिस्तान में शिफ्ट होता है। फिल्म जैसे-जैसे अंत की ओर बढ़ती है रोमांच भी पैदा होता है, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होती है। 
 
अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद कबीर का खान का प्रिय विषय रहा है और 'फैंटम' में भी उन्होंने यही विषय उठाया है। 'फैंटम' से मिलती-जुलती 'बेबी' और 'डीडे' प्रदर्शित हो चुकी हैं। 'फैंटम' को देख ऐसा लगता है कि कबीर खान बहुत कुछ दिखाना चाहते थे, लेकिन समय कम पड़ गया। ताबड़तोड़ तरीके से उन्होंने अपनी बात कही है जिससे कई बातें स्पष्ट नहीं हो पाईं। कहानी तो उन्होंने ठीक चुनी लेकिन सिनेमा के रूप में वे उसे ठीक से पेश नहीं कर पाए। फिल्म का सम्पादन भी दोषपूर्ण है जिसके कारण उबड़-खाबड़ रास्तों पर चलती बस सा एहसास फिल्म कराती है। 

सैफ अली खान और कैटरीना कैफ मिसफिट नजर आए। पूरी फिल्म में सैफ की हेअर स्टाइल बदलती रही, लेकिन सैफ के चेहरे के भाव एक जैसे रहे। कहानी को जिस तरह से करिश्माई हीरो की जरूरत थी, उसे सैफ पूरी नहीं कर पाए। उनकी संवाद अदायगी भी सिचुएशन से मेल नहीं खाई। बुरी एक्टिंग में सैफ से कैटरीना कैफ ने भी जम कर टक्कर ली है। सीन कैसा भी हो कैटरीना के भी एक्सप्रेशन एक जैसे रहे। 
 
फिल्म का  एक्शन बुरा नहीं है, लेकिन कोई नई बात भी नहीं है।
 
'फैंटम' की कहानी पर एक बेहतरीन फिल्म बनने की अपार संभावनाएं थीं, जिसका फायदा नहीं उठाया जा सका। ठीक वैसा ही हुआ मानो बैटिंग के लिए अनुकूल पिच पर टीम सस्ते में ऑलआउट हो गई। 
 
बैनर : नाडियाडवाला ग्रैंडसन एंटरटेनमेंट, यूटीवी मोशन पिक्चर्स
निर्माता : साजिद नाडियाडवाला, सिद्धार्थ रॉय कपूर 
निर्देशक : कबीर खान
संगीत : प्रीतम चक्रवर्ती
कलाकार : सैफ अली खान, कैटरीना कैफ, मोहम्मद जीशान अय्यूब, सब्यासाची चक्रवर्ती, राजेश तेलंग
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 27 मिनट 19 सेकंड
रेटिंग : 2/5 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

फैंटम फिल्म को आप पांच में से कितने अंक देंगे?