सनक एक होस्टेज ड्रामा है। इस तरह की फिल्मों की कहानी जानी-पहचानी रहती है। क्या होने वाला है इसका अंदाजा लगाने में दिमाग पर ज्यादा जोर नहीं डालना पड़ता। रूचि इस बात में रहती है कि किस तरह से ये सब घटित होता है। एक ही लोकेशन पर दो-तिहाई फिल्म शूट होती है इसलिए निर्देशक और लेखक को ड्रामे में रोमांच पैदा करने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत करने की जरूरत होती है, वरना सब कुछ बोरिंग लगता है। सनक इसी बोरियत का शिकार है। कहने को तो यह थ्रिलर मूवी है, लेकिन सब कुछ कछुआ चाल से चलता है कि जो आपके धैर्य की परीक्षा लेता है।
विवान आहूजा (विद्युत जामवाल) की पत्नी अंशिका (रूक्मिणी मैत्रा) की जिस दिन अस्पताल से छुट्टी होने वाली है उसी दिन कुछ आतंकी अस्पताल पर हमला कर वहां पर मौजूद लोगों को बंधक बना लेते है। साजू (चंदन रॉय सान्याल) इन आतंकियों का लीडर है और वह अपराधी अजय पाल सिंह (किरण करमरकर) को अस्पताल से ले जाना चाहता है जिसका पुलिस कस्टडी में इलाज चल रहा है। विवान भी उसी दौरान अस्पताल में मौजूद था। कैसे वह इस परिस्थिति से मुकाबला करता है यह फिल्म में दिखाया गया है।
शुरुआत में एक अच्छी फिल्म की उम्मीद बंधती है, लेकिन गाड़ी पटरी से उतरने में समय नहीं लगता। स्टाइलिंग पर ज्यादा जोर दे दिया गया है और इस चक्कर में स्क्रीनप्ले पर ध्यान देना भूल गए। सारे किरदार इतने रिलैक्स नजर आते हैं मानो बगीचे में घूम रहे हों। कोई तनाव नहीं, कोई जल्दबाजी नहीं।
साजू के एक-एक कर साथी मारे जाते हैं, लेकिन मजाल है जो उसके चेहरे पर चिंता की एक लकीर भी उभरे। वह पढ़ा-लिखा और तेज-तर्रार नजर आता है, लेकिन फिल्म में दिमाग का ज्यादा इस्तेमाल नहीं करता। सिर्फ डायलॉगबाजी करता रहता है। बच्चों को चॉकलेट खिला कर पूछताछ करता है।
होना तो यह चाहिए था कि जैसे ही उसे पता चलता है कि उसका पहला साथी मारा गया है तुरंत उसे बंधकों पर अत्याचार करना शुरू कर देना था, लेकिन जब वह यह कदम उठाता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। दर्शक उसके सोचने के बहुत-बहुत पहले यह बात सोच चुके होते हैं।
पुलिस का एंगल भी फिल्म में है, लेकिन पुलिस हाथ पर हाथ धरी बैठी रहती है। आतंकियों से अस्पताल को छुड़ाने का कोई ठोस प्लान उनके पास नहीं है। विद्युत का किरदार बार-बार बेहोश क्यों होता हैँ, इसकी कोई वजह नहीं बताई गई।
फिल्म में जब-जब एक्शन सीन आते हैं तो थोड़ी हलचल होती है क्योंकि बिना एक्शन वाले सीन सपाट हैं। चाहे वो रोमांटिक सीन हो या इमोशनल। फिल्म में किसी तरह का एक्साइटमेंट नहीं है जो बांध कर रखे। बिना किसी ठोस कहानी के एक्शन सीन भी बहुत रोमांचित नहीं कर पाते।
निर्देशक का काम होता है फिल्म को मनोरंजक बनाए। दर्शकों को फिल्म से कनेक्ट करे, लेकिन कनिष्क वर्मा इस काम में असफल रहे हैं। एक्शन डायरेक्टर एंडी लांग ने खूब मेहनत की है, लेकिन बिना ठोस कहानी के एक्शन किसी गेम जैसा लगता है।
विद्युत जामवाल हाथ-पैर चलाने में तो माहिर हैं, लेकिन एक्टिंग करने में हाथ-पैर फूल जाते हैं। रूक्मिणी मैत्रा निराश करती हैं। चंदन रॉय सान्याल ठीक-ठाक रहे हैं। उन्होंने संवाद इस तरह बोले हैं कि ज्यादातर समझ ही नहीं आते। प्रतीक देओरा की सिनेमाटोग्राफी शानदार हैं। बहुत अच्छे से उन्होंने फिल्म को शूट किया है।
कुल मिलाकर सनक में कोई खनक नहीं है।
निर्माता : विपुल अमृतलाल शाह
निर्देशक : कनिष्क वर्मा
कलाकार : विद्युत जामवाल, रुक्मिणि मैत्रा, नेहा धूपिया, चंदन रॉय सान्याल
ओटीटी प्लेटफॉर्म : डिज्नी प्लस हॉटस्टार
रेटिंग : 1/5