Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

शकुंतला देवी : फिल्म समीक्षा

हमें फॉलो करें शकुंतला देवी : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

, शनिवार, 1 अगस्त 2020 (16:29 IST)
फिल्म की शुरुआत में ही कह दिया गया है कि यह किसी की बायोग्राफी या डॉक्यूमेंट्री नहीं है, बल्कि कुछ सत्य घटनाओं से प्रेरित है, इसलिए शंकुतला देवी को बायोपिक मानना गलत होगा। 
 
इससे मन में एक संदेह भी पैदा हो जाता है कि स्क्रीन पर जो दिखाया जा रहा है, उस पर कितना विश्वास किया जाए, हालांकि फिल्म बनाते समय गणित की जीनियस शकुंतला देवी की बेटी अनुपमा बैनर्जी की मदद ली गई है। 
 
बहरहाल, इस बात को छोड़ दिया जाए तो शकुंतला देवी फिल्म का आनंद लिया जा सकता है। फिल्म में शकुंतला देवी का महिमामंडन नहीं किया गया है बल्कि इंसान के रूप में उनकी कमजोरियों को भी दर्शाया गया है। 
 
फिल्म देखते समय कई जगह शकुंतला देवी स्वार्थी और मेनिपुलेटिव भी नजर आती हैं। उनकी निजी जिंदगी में भी यह फिल्म झांकती है जिसके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। 
 
शकुंतला देवी के बचपन से बात शुरू होती है। शकुंतला में नंबर को लेकर अलग ही किस्म का जुनून था। बड़े से बड़े नंबर का वे क्यूब रूट चुटकियों में बता देती थी। 
 
अपनी बहन को वह बेहद चाहती थीं जिसकी जान उसके लालची पिता के कारण चली गई थी। मां ने इस बात का विरोध नहीं किया इसलिए शकुंतला देवी अपने पैरेंट्स को पसंद नहीं करती थी, लेकिन उन्हें पैसे पहुंचाती रहीं। 
 
जिंदगी जीने का उनका अपना अंदाज था। मस्त, बेफिक्र और किसी की परवाह किए बिना वे अपने में मस्त रहती थीं। पैसे कमाने का शौक था। दुनिया भर में उन्होंने शो किए। 
 
शकुंतला और उनके बेटी को फिल्म में खासी अहमियत दी गई है। बेटी से उनकी अनबन रही। इस रिश्ते में प्यार भी है तो तकरार भी, और इस वजह से कई सीन बेहद खूबसूरत भी बने हैं। 
 
शकुंतला देवी की जिंदगी के बारे में ईमानदारी के साथ यह फिल्म कई खुलासे करती हैं, जैसे वे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ी थी, होमोसेक्सुअलिटी पर उन्होंने किताब लिखी थी, जो भारत में शायद किसी ने पहली बार किया होगा। 
 
दूसरी ओर कुछ बातों को फिल्म में ज्यादा महत्व नहीं दिया गया। जैसे, शंकुतला देवी के गणित वाले पक्ष पर थोड़ा और फोकस करना जरूरी था क्योंकि ज्यादातर दर्शक उनके बारे में यही जानते हैं कि वे 'ह्यूमन कम्प्यूटर' थीं और बड़ी-बड़ी गणनाएं तुरंत कर लेती थी। 
 
वे ज्योतिष की ओर क्यों आकर्षित हुई? होमोसेक्सुअलिटी को लेकर उन्होंने किताब क्यों लिखी? इन पर भी कुछ फुटेज खर्च किए जा सकते थे। एक जगह जाकर फिल्म में मां-बेटी का रिश्ता मैन ट्रेक बन जाता है।  
 
अनु मेनन का निर्देशन बढ़िया है। फिल्म को कुशलता से संभाला है। उन्होंने फिल्म को 'चीयरफुल' बनाया है। यदि लेखन में उन्हें थोड़ी और मदद मिल जाती तो उनके काम में और भी निखर जाता। 
 
कोई कलाकार अपने अभिनय के बल कैसे फिल्म का स्तर ऊंचा करता है, इसकी मिसाल शकुंतला देवी फिल्म में देखने को मिलती हैं। विद्या बालन ने कमाल का अभिनय किया है। वे पहली फ्रेम से ही शकुंतला देवी नजर आती हैं और यही से दर्शक फिल्म से जुड़ जाते हैं। ऐसा लगता है कि यह रोल केवल विद्या ही निभा सकती थीं। 
 
जीशु सेनगुप्ता, सान्या मल्होत्रा, अमित सध सहित तमाम कलाकारों ने भी विद्या का अच्छा साथ निभाया है। कीको नाकाहारा की सिनेमाटोग्राफी और करण कुलकर्णी का बैकग्राउंड म्यूजिक उल्लेखनीय है। सचिन जिगर का संगीत फिल्म के मूड के अनुरूप है, हालांकि कोई गाना हिट नहीं हुआ है। 
 
विद्या की एक्टिंग और ह्यूमन कंम्प्यूटर शकुंतला देवी के लिए यह फिल्म देखी जा सकती है। 
 
निर्माता : सोनी पिक्चर्स नेटवर्क्स इंडिया
निर्देशक : अनु मेनन
संगीत : सचिन जिगर 
कलाकार : विद्या बालन, सान्या मल्होत्रा, जीशु सेनगुप्ता, अमित सध, प्रकाश बेलवाड़ी 
* प्राइम वीडियो पर उपलब्ध 
रेटिंग : 3/5 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

सुशांत सुसाइड केस : कंगना रनौट बोलीं- फांसी पर लटकी मिली तो आत्महत्या मत समझना