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सोनाली केबल : फिल्म समीक्षा

हमें फॉलो करें सोनाली केबल : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

छोटे से छोटा धंधा अब बड़ी से बड़ी कंपनियां कर रही हैं और इसका असर छोटे व्यापारियों पर पड़ रहा है। ये कॉरपोरेट कंपनियां व्यवसाय में मोनोपॉली चाहती हैं।  इस थीम को लेकर 'सोनाली केबल' का निर्माण किया गया है। यूथ अपील को ध्यान में रखते हुए फिल्म की नायिका को 'ब्रॉण्डबैण्ड कनेक्शन' प्रदान करने वाली बताया गया है, लेकिन उसका यह व्यवसाय कई लोगों के पल्ले नहीं पड़ेगा। 
 
सोनाली (रिया चक्रवर्ती) एक नेता ताई (स्मिता जयकर) के साथ मिलकर 'सोनाली केबल' नामक कंपनी चलाती है। कंपनी में 40 प्रतिशत सोनाली की 60 प्रतिशत नेता की भागीदारी है। सोनाली मुश्किल में तब आती है जब एक बड़ा कॉरपोरेशन 'शाइनिंग' राह में आड़े आता है। 
 
वाघेला (अनुपम खेर) ब्रॉडबैण्ड इंटरनेट बिजनेस में पूरी मुंबई में अपनी मोनोपॉली चाहता है। वह सोनाली को लालच देता है, लेकिन सोनाली ठुकरा देती है। सोनाली को राह से हटाने के लिए वह साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाता है। सोनाली की पार्टनर ताई को राजी कर लेता है, लेकिन ताई का बेटा रघु (अली फजल) सोनाली का साथ देता है। रघु और सोनाली एक-दूसरे को चाहते हैं, लेकिन रघु की मां इस रिश्ते के खिलाफ है। वाघेला की कंपनी से किस तरह सोनाली-रघु लड़ते हैं, ये फिल्म का सार है। 
अच्छी शुरुआत के बाद सोनाली केबल रास्ता भटकने में ज्यादा देर नहीं लगाती। असली मुद्दे को छोड़ जब फिल्म के लेखक और निर्देशक चारूदत्ता आचार्य ने लव स्टोरी, राजनीति, दोस्त की मौत, बाप-बेटी का प्यार वाले ट्रेक दिखाना शुरू किए तो फिल्म का सारा असर जाता रहा। हटकर शुरुआत करने के बाद फिल्म चिर-परिचित ट्रेक पर चलने लगती है। रूचि सोनाली बनाम वाघेला युद्ध में रहती है परंतु बेवजह में इन दृश्यों को झेलना पड़ता है। ये सारे सब-प्लॉट्स कहानी में ठीक से फिट नहीं होते या इनकी जगह नहीं बन पाई है, लिहाजा फिल्म कई जगह बहुत ही उबाऊ हो गई है। 
 
दरअसल चारुदत्ता एक स्तर तक जाने के बाद खुद कन्फ्यूज नजर आए कि कहानी को किस तरह आगे बढ़ाया जाए। वे इस सोनाली और वाघेला के युद्ध को भी ठीक तरह से पेश नहीं कर पाए। वाघेला कही भी ऐसा खलनायक नहीं लगता कि दर्शक उससे नफरत करे और उसकी सहानुभूति सोनाली के साथ हो। 
 
सोनाली अपनी कंपनी को बचाने की इतनी कोशिश क्यों करती है, ये भी समझ के परे है। एक सीन में वह बताती है कि उसे घरों में जाना अच्छा लगता है, लेकिन ये कारण बहुत ठोस नजर नहीं आता। फिर कंपनी में सोनाली की सिर्फ 40 प्रतिशत की हिस्सेदारी है और ऐसी कंपनी को बचाने के लिए उसके प्रयास तर्कहीन लगते हैं। फिल्म को जिस तरह से खत्म किया गया है वो एक लेखक की लाचारी को दर्शाता है।  
 
सोनाली को एक तेज-तर्रार लड़की बताया गया है जो लड़कों के बीच अपने काम को अंजाम देती है, लेकिन एक दृश्य में वह एक गुंडे को उसकी कायरता के कारण चूड़ी देती है। इस सीन के जरिये वह महिला होकर अपने आपको कमजोर साबित करती है। क्या चुड़ियां पहनने से महिलाएं कमजोर हो जाती हैं? यह सीन सोनाली को मजबूत दिखाने के प्रयास पर पानी फेर देता है।  
 
चारुदत्ता के निर्देशन में इस बात के संकेत मिलते हैं कि उनमें संभावनाएं हैं। यदि अच्छी स्क्रिप्ट मिलती है तो वे कुछ कर दिखा सकते हैं, लेकिन लेखक के रूप में वे निराश करते हैं। 
 
रिया चक्रवर्ती की कोशिश अच्छी है। कई दृश्य उन्होंने अच्छे से निभाए हैं, लेकिन महाराष्ट्रीय लड़की के रूप में उन्हें दिखाने का प्रयास थोपा हुआ लगता है। अली फजल अब स्टीरियोटाइप होते जा रहे हैं। एक्टर अच्‍छे हैं, लेकिन रोल चुनने में उन्हें सावधानी की जरूरत है। अनुपम खेर को कॉमिक विलेन दिखाया गया है और उन्होंने अपना काम अच्छे से किया गया है। सोनाली के पिता के रूप में स्वानंद किरकिरे प्रभावित करते हैं। सोनाली के दोस्तों में राघव जुयाल का अभिनय अच्छा है।
 
कुल मिलाकर सोनाली केबल में 'कनेक्टिविटी' की समस्या है।
 
बैनर : रमेश सिप्पी एंटरटेनमेंट
निर्माता : रमेश सिप्पी, रोहन सिप्पी, रूपा डे चौधरी 
निर्देशक : चारू दत्ता आचार्य
संगीत : अंकित तिवारी, माइक मैकलिअरी
कलाकार : रिया चक्रवर्ती, अली फजल, अनुपम खेर, स्मिता जयकर
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 7 मिनट 47 सेकंड
रेटिंग : 1.5/5

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