Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

तलवार : फिल्म समीक्षा

हमें फॉलो करें तलवार : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

भारत में कई आपराधिक मामले ऐसे हैं जिनमें अपराधी तक पुलिस पहुंचने में नाकाम रही। ऐसा नहीं है कि अपराधी बहुत चालाक है बल्कि पुलिस और जांच कर रही एजेंसी की लापरवाही के कारण भी ऐसा होता है। 2008 में नोएडा में आरूषि तलवार और हेमराज के मर्डर केस पर मेघना गुलजार की फिल्म 'तलवार' आधारित है और फिल्म दर्शाती है कि यदि पुलिस शुरुआत में लापरवाही नहीं बरतती तो मामला उतना उलझता नहीं। प्रारंभिक तौर पर 'ओपन एंड शट केस' मानकर पुलिस अतिआत्मविश्वास का शिकार हो गई। 
 
इस दोहरे हत्याकांड ने पूरे देश को झकझोर दिया था क्योंकि एक मध्यमवर्गीय परिवार के घर में ये घटना हुई थी। लोग स्तब्ध थे कि कैसे एक डॉक्टर पिता अपनी 14 वर्षीय बेटी की हत्या कर सकता है और उसकी मां भी इस अपराध में शामिल है? लेकिन धीरे-धीरे इस नजरिये में बदलाव आया क्योंकि माता-पिता के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिले। कोर्ट ने फैसला सुना दिया है, लेकिन इस फैसले के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि यह शत-प्रतिशत सही है। अभी भी मामला चल रहा है। 
'तलवार' फिल्म को बेहद रिसर्च करके लिखा गया है और इस फिल्म के रियल हीरो लेखक विशाल भारद्वाज हैं। उन्होंने हर पहलू का बारीकी से अध्ययन किया और फिर स्क्रिप्ट लिखी। फिल्म में इस मामले से जुड़े हर शख्स के नजरिये को दिखाया गया है। फिल्म में श्रुति नामक लड़की का मर्डर हुआ है। उस रात क्या हुआ इसका विवरण श्रुति के माता-पिता के नजरिये से दिखाया गया, फिर बताया गया कि पुलिस ने जांच कर क्या निष्कर्ष निकाला, और अंत में सीडीआई (सीबीआई की जगह) का पक्ष। 
 
सीडीआई का अधिकारी अश्विन (इरफान खान) मामले की जांच करता है और उसे यह साबित करने में सफलता हासिल कर कर जाती है कि मर्डर घर के नौकर खेमराज के दोस्त ने किया है, लेकिन लैब की रिपोर्ट ऐन मौके पर बदल जाती है। फिर वह अपने ही ऑफिस के सहयोगियों की ईर्ष्या का कारण बन जाता है। जांच का जिम्मा दूसरे ऑफिसर को दिया जाता है जो साबित करता है कि श्रुति का मर्डर उसके ही माता-पिता ने किया है। यानी कि यह मामला अधिकारियों के ईगो का प्रश्न बन जाता है और उस लड़की के प्रति उनकी कोई संवेदना नहीं रहती है जो अपनी जान से हाथ धो बैठती है। 'तलवार' सभी पक्ष को दिखाती है, लेकिन फिल्म कही ना कही तलवार दंपत्ति का पक्ष लेती है और इस बात को छिपाया भी नहीं है।  
 
'तलवार' देखते समय आपके दिमाग में लगातार विचार चलते हैं और यह सि‍लसिला फिल्म खत्म होने के बाद भी खत्म नहीं होता।  इसे देख गुस्सा भी आता है और शर्म भी आती है। फिल्म में एक सीन है जिसमें सीडीआई के ऑफिसर्स की दोनों टीमें बैठी हैं जो इस केस को लेकर अलग-अलग निर्णय पर पहुंची हैं। वे इस मामले को लेकर चुटकुले सुनाते हैं और हंसते हैं। यह दृश्य कई बातें बोलता है। 
 
मेघना गुलजार के लिए यह फिल्म निर्देशित करना आसान नहीं रहा होगा। कही यह डॉक्यूमेंट्री न बन जाए या ड्रामा रचने में विषय की गंभीरता न खत्म हो जाए, इस दोधारी तलवार से वे बच निकलीं। कुछ बातें ऐसी हैं जो फिजूल की हैं जैसे इरफान और तब्बू वाला ट्रेक, जिसे शायद दर्शकों को राहत देने के लिए रखा गया है जो बिलकुल प्रभावित नहीं करता। कई बार उनकी कल्पनाशीलता का अभाव भी झलकता है, लेकिन कुल मिलाकर यह कठिन फिल्म है जिसे बनाना आसान नहीं है। बावजूद इसके मेघना तारीफ के काबिल हैं।  
 
फिल्म के हर कलाकार का अभिनय बेहतरीन है। अफसोस इस बात का है कि नीरज कबी और कोंकणा सेन शर्मा जैसे समर्थ कलाकारों का ज्यादा उपयोग नहीं हो पाया। 
 
'तलवार' हर दर्शक वर्ग के लिए है और इस फिल्म को देखा जाना चाहिए। 
 
बैनर : जंगली पिक्चर्स, वीबी पिक्चर्स प्रा.लि.
निर्माता : विनीत जैन, विशाल भारद्वाज
निर्देशक : मेघना गुलजार
संगीत : विशाल भारद्वाज 
कलाकार : इरफान खान, कोंकणा सेन शर्मा, सोहम शाह, नीरत कबी, तब्बू 
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 12 मिनट 20 सेकंड 
रेटिंग : 3.5/5 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

तलवार को आप पांच में से कितने अंक देंगे?