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तेरा सुरूर : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

इस देश में सभी को स्वतंत्रता प्राप्त है और हिमेश रेशमिया भी एक्टिंग करने के लिए आजाद हैं। हालांकि जनता की अदालत कई बार अपना फैसला सुना चुकी है, लेकिन अच्छा भला संगीतकार का करियर छोड़ हिमेश अभिनय की दुनिया में पैर जमाने के लिए डटे हुए हैं। अपने ही एक हिट गाने के मुखड़े को उन्होंने फिल्म का नाम 'तेरा सुरूर' बना दिया है। कहने को तो फिल्म एक थ्रिलर है, लेकिन फिल्म में रोमांच जैसी कोई बात नहीं है। 106 मिनट की फिल्म भी आपको लंबी लग सकती है।
 
रघु (हिमेश रेशमिया) से उसकी गर्लफ्रेंड तारा (फराह करीमी) रूठ कर डबलिन (आयरलैंड) चली जाती है। वहां तारा के साथ षड्यंत्र होता है। ड्रग्स रखने के आरोप में पुलिस उसे गिरफ्तार कर सात साल के लिए जेल में डाल देती है। रघु डबलिन पहुंचता है जहां उसका मिशन है तारा को जेल से भगा कर ले जाना और उस इंसान को खोजना जिसने तारा को फंसाया है। इस मिशन में उसकी मदद एए खान (कबीर बेदी), राजवीर कौल (शेखर कपूर) और रॉबिन सेंटिनो (नसीरुद्दीन शाह) करते हैं। 
फिल्म की कहानी ठीक-ठाक है, लेकिन कहानी का प्रस्तुतिकरण रोमांच नहीं पैदा कर पाता क्योंकि स्क्रीनप्ले दोषपूर्ण है। शुरुआती 15 मिनट में निर्देशक ने कैरेक्टर को स्थापित किए बगैर फिल्म को इतनी तेजी से भगाया है कि सब कुछ नकली प्रतीत होता है। तारा से जुदाई का दर्द रघु के लिए असहनीय है, लेकिन उसका एक प्रतिशत दर्द भी दर्शक महसूस नहीं करते। इस जुदाई को लेकर निर्देशक ने कई सीन और गाने रचे हैं जो बेकार से प्रतीत होते हैं। 
 
तारा को जेल से भगाने के लिए रघु, रॉबिन की मदद लेता है जो कई जेल तोड़ कर भाग चुका है। रॉबिन उसकी मदद के लिए क्यों तैयार हो जाता है, समझ से परे है। 
 
फिल्म के लेखक और निर्देशक ने डबलिन को न जाने क्या समझ लिया है। फिल्म का नायक खुलेआम हत्याएं करता है। सड़कों पर गोलियां दागता है, लेकिन उसका कुछ नहीं बिगड़ता। तारा को फंसाने वाला कौन है? जब इस रहस्य पर से पर्दा उठता है तो निराशा ही हाथ लगती है। देशभक्ति के नाम पर भी एक-दो सीन हैं जो कहानी में बिलकुल फिट नहीं होते। कुछ अंग्रेजी संवादों के हिंदी में सबटाइटल दिए गए हैं, जिसमें ढेर गलतियां हैं। 
 
निर्देशक शॉन अरान्हा ने फिल्म को कूल और स्लिक लुक दिया है। बतौर अभिनेता हिमेश कितने कमजोर है इस बात से वे अच्छी तरह परिचित हैं, लिहाजा उन्होंने हिमेश को बहुत कम संवाद दिए हैं। ज्यादातर दृश्यों में उन्होंने हिमेश को मॉडलनुमा पोज़ देते हुए दिखाया है। स्क्रिप्ट और लीड कलाकार का उन्हें साथ नहीं मिला वरना फिल्म में थोड़ी गहराई आ जाती। 
 
हिमेश रेशमिया फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी साबित हुए हैं। लटका हुआ चेहरा लेकर वे पूरी फिल्म में घूमते रहे हैं। हर जगह उनके चेहरे पर एक ही भाव होने के कारण दर्शक बोर हो जाते हैं। संवाद अदायगी भी उनकी कमजोर है। फिल्म की हीरोइन फराह करीमी ने कमजोर अभिनय के मामले में हिमेश को कड़ी टक्कर दी है। 
 
नसीरुद्दीन शाह और शेखर कपूर ने इतने छोटे और महत्वहीन रोल क्यों किए हैं, समझ के परे हैं। कबीर बेदी के भी दो-तीन सीन हैं।
 
फिल्म का संगीत जरूर अच्छा है और कुछ गाने हिट भी हुए हैं। सिनेमाटोग्राफी, एडिटिंग, बैकग्राउंड म्युजिक बेहतरीन है। 
 
कुल मिलाकर 'तेरा सुरूर' का सुरूर नहीं चढ़ता।
 
बैनर : टी-सीरिज़ सुपर कैसेट्स इंडस्ट्री लि., एचआर म्युजिक
निर्माता : भूषण कुमार, विपिन रेशमिया, सोनिया कपूर  
निर्देशक : शॉन अरान्हा 
संगीत : हिमेश रेशमिया
कलाकार : हिमेश रेशमिया, फराह करीमी, कबीर बेदी, मोनिका डोगरा, नसीरुद्दीन शाह, शेखर कपूर 
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 1 घंटा 46 मिनट
रेटिंग : 2/5 

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