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तितली : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

सूरज बड़जात्या की फिल्मों में ऐसा परिवार दिखाया जाता है जो तन-मन-धन से खुश है। किसी तरह का मनमुटाव नहीं और नैतिकता का पूरा ध्यान रखा जाता है। इस परिवार से एकदम विपरीत है कनु बहल की फिल्म 'तितली' का परिवार, जो अभावों में जी रहा है। इस परिवार के लिए जिंदगी बदसूरत है। अपने आपको जिंदा रखने के लिए उन्हें जद्दोजहद करना पड़ती है और वे जानवर बन जाते हैं। परदे पर उनके कारनामों को देख सिनेमाहॉल में बैठे आप डिस्टर्ब हो जाते हैं और उनकी मौजूदगी खतरे का अहसास कराती है। 
 
दिल्ली में रहने वाले तीन भाइयों में से सबसे छोटे का नाम तितली (शशांक अरोरा) है। उसकी मां को लड़की चाहिए थी, लेकिन जब तीसरी बार भी लड़का हो गया तो मां ने लड़की वाला नाम रख कर ही काम चला लिया। विक्रम (रणवीर शौरी) और बावला (अमित सियाल) उसके बड़े भाई हैं। छोटी-मोटी नौकरी से इनका गुजारा नहीं होता इसलिए ये दोनों भाई हाइवे पर लोगों को लूटते हैं। तितली भी कभी-कभी उनका साथ देता है, लेकिन वह इस नरक की जिंदगी से छुटकारा पाना चाहता है। 
 
जब दोनों भाइयों को इसकी भनक लगती है तो वे तितली की नीलू (शिवानी रघुवंशी) से शादी करा देते हैं ताकि तितली घर छोड़कर नहीं जाए। साथ ही उन्हें अपनी टीम में एक लड़की की भी जरूरत थी इसलिए वे नीलू को भी इसमें शामिल करते हैं, लेकिन नीलू इसके खिलाफ है। नीलू की यह शादी उसकी मर्जी से नहीं हुई है और वह प्रिंस को चाहती है। तितली और नीलू में एक डील होती है ताकि वे दोनों इस नारकीय जीवन से आजादी पा सके। 
कनु बहल और शरत कटारिया ने मिलकर यह कहानी लिखी है जो जिंदगी में बढ़ रही असमानता और आने वाले भयावह भविष्य की ओर इशारा करती है। समाज में अमीर-गरीब की खाई चौड़ी होती जा रही है और इसके दुष्परिणाम क्या होंगे इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इस चौड़ी खाई के कारण भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी बढ़ती जा रही है। चमचमाते शॉपिंग मॉल्स और दमकते हाइवे के नीचे की गंदगी सतह पर नहीं आई है, लेकिन यदि इस दिशा में सोचा नहीं गया तो यह कभी भी सतह पर आ सकती है। 
 
फिल्म में दिखाया गया है कि परिवार के ये लोग बुरे नहीं हैं बल्कि परिस्थितियां बुरी हैं जिसके कारण ये घिनौने होते जा रहे हैं। पैसों के लिए वे किसी का खून बहाने के लिए तैयार हो जाते हैं। पत्नी हाथ तुड़वाने और पति हाथ तोड़ने के लिए तैयार हो जाता है। पति अपने सामने पत्नी को दूसरे की बांहों में देखना भी कबूल कर लेता है। फिल्म में थूकने और उल्टी करने के दृश्यों से उपकाइयां आती हैं, लेकिन जिस तरीके से यह परिवार रहता है और हरकतें करता है उसको देख भी कुछ लोगों को उपकाइयां आ सकती हैं क्योंकि वे इन लोगों की जिंदगी से परिचित नहीं हैं। 
 
निर्देशक कनु बहल ने फिल्म को एकदम रियल रखा है और यह वास्तविकता ही आपको विचलित करती है। उन्होंने एक परिवार का जीवन आपके सामने उठा कर रख दिया है और दर्शकों को समझने के लिए काफी चीजें छोड़ दी हैं। फिल्म में बैकग्राउंड म्युजिक नहीं के बराबर है। वातावरण में आने वाली आवाजों को जगह दी गई है जिससे फिल्म की विश्वसनीयता और बढ़ गई है। सिंक साउंड का इस्तेमाल भी इसके लिए जिम्मेदार है।
 
कमी इस बात की लगती है कि फिल्म में एक भी सकारात्मक किरदार नहीं है। जिंदगी अभी इतनी बुरी भी नहीं हुई है कि कोई भला आदमी ही नहीं हो। हालांकि फिल्म के अंत में नीलू और तितली सारी बातों को भूला कर नई शुरुआत का फैसला करते हैं और फिल्म आशावादी संदेश के साथ खत्म होती है। 
 
कलाकारों का अभिनय उत्कृष्ट दर्जे का है। लगता ही नहीं कि कोई एक्टिंग कर रहा है। रणवीर शौरी को छोड़ बाकी कलाकार अपरिचित से हैं और यह स्क्रिप्ट की डिमांड भी थी। रणवीर शौरी, शशांक अरोरा, अमित सियाल, शिवानी रघुवंशी सहित सभी ने अपने किरदारों को बखूबी पकड़ा है। 
 
'तितली' जैसी फिल्म देखना हर किसी के बस की बात नहीं है क्योंकि सच कड़वा और कठोर होता है। 
 
बैनर : यशराज‍ फिल्म्स
निर्माता : दिबाकर बैनर्जी
निर्देशक : कनु बहल
कलाकार : शशांक अरोरा, रणवीर शौरी, अमित सियाल, शिवानी रघुवंशी, ललित बहल 
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 1 घंटा 57 मिनट
रेटिंग : 4/5

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