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वेलकम टू कराची ‍: फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

पाकिस्तान फिल्मकारों का प्रिय विषय रहा है। हिना से लेकर तो गदर, फिल्मिस्तान, तेरे बिन लादेन, वार छोड़ो ना यार, डी-डे और वेलकम टू कराची की कहानी इस देश के इर्दगिर्द घूमती है। इनमें से कुछ फिल्म गंभीर किस्म की हैं तो कुछ फिल्मों में दोनों देशों के संबंधों को लेकर कॉमेडी की गई है। सुनते हैं सलमान खान की आगामी फिल्म 'बजरंगी भाईजान' की कहानी में भी पाकिस्तान है।
 
बात की जाए वेलकम टू कराची की। इस फिल्म में किसी भी बात को गंभीरता से नहीं लिया गया है। हर दृश्य में दर्शकों को हंसाने की कोशिश की गई है, लेकिन मजाल है कि आप मुस्कुरा भी दें। पूरी फिल्म बेवकूफाना हरकतों से भरी हुई हैं और फिल्म खत्म होने के बाद दर्शकों के दिमाग में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्यों यह फिल्म बनाई गई है? अगर निर्माता वासु भगनानी अपने बेटे को बॉलीवुड में स्थापित करने के लिए यह कोशिश कर रहे हैं तो इस तरह की फिल्मों से जैकी भगनानी का  नफा नहीं बल्कि नुकसान ही होगा। दर्शकों को सजा भुगतना पड़ती है, सो अलग। 
कहानी है शम्मी (अरशद वारसी) और केदार पटेल (जैकी भगनानी) की। केदार, मिथेश पटेल (दलीप ताहिल) का बेटा है जो गुजरात में इवेंट मैनेजर है। शम्मी एक्स नेवी ऑफिसर है जिसने पनडुब्बी का संधि विच्छेद कर यह समझा कि पन (पानी) में इसे डूबो दो इसलिए उसे नौकरी से हटा दिया गया। केदार के साथ मिलकर शम्मी, मिथेश के लिए काम करता है। 
 
चार्टर्ड बोट पर शादी कराने का जिम्मा मिथेश, केदार तथा शम्मी को सौंपता है। ये दोनों बिना बारातियों के बोट लेकर निकल पड़ते हैं। तूफान आता है और ये पहुंच जाते हैं कराची। पाकिस्तान पहुंचते ही मुसीबतों का पहाड़ उन पर टूट पड़ता है। वहां से भागने का रास्ता नहीं सूझता। इसी दौरान आईएसआई, तालिबान, इंटेलीजेंस ब्यूरो, आतंकवादियों, लोकल गुंडों से उनका पाला पड़ता है। इन सब घटनाक्रमों से हंसाने की कोशिश की गई है, लेकिन सारे चुटकुले और संवाद इतने सपाट हैं कि हंसी आने के बजाय कोफ्त होती है। 
 
फिल्म की शुरुआत में ही यह अंदाजा लगाना आसान है कि आपके अगले कुछ घंटे मुश्किल से भरे हैं। पहले सीन से यह डर पैदा होता है और फिल्म खत्म होने पर आशंका सही साबित होती है। लेखक ने जो मन में आया वो लिख दिया। किसी भी बात का कोई ओर है न कोई छोर। लॉजिक की तो बात ही छोड़ दीजिए। कमियां बताने लग जाएं तो सुबह से शाम हो जाए। मनोरंजन का फिल्म में नामो-निशान नहीं है। एक-दो जगह हंसी आ जाए तो बड़ी बात है।
 
फिल्म कही से भी दर्शक को अपने से जोड़ नहीं पाती है। थोड़ी ही देर में परदे पर चल रही फिल्म से आपकी रूचि खत्म हो जाती है। इस दौरान आप झपकी ले सकते हैं या ब्रेक के लिए बाहर जा सकते हैं। फिल्म के ज्यादातर किरदार स्टीरियोटाइप हैं। गुजराती है तो हमेशा पैसे के बारे में ही सोचेगा। गरबे की ही बात करेगा। पाकिस्तान ऐसा दिखाया गया है मानो वहां हर कोई बंदूक लिए घूम रहा है और जान का प्यासा है। 
 
निर्देशक आशीष आर. मोहन ने इसके पहले 'खिलाड़ी 786' फिल्म बनाई थी, जिसमें दर्शकों के हंसने के लिए काफी मसाला था, लेकिन 'वेलकम टू कराची' में वे निराश करते हैं। उनका निर्देशन इस तरह का है मानो बिना ड्राइवर के कार चल रही हो। फिल्म पर उनका कोई नियंत्रण नहीं दिखा। 
 
जैकी भगनानी एक्टिंग कर रहे हैं ये साफ दिखाई देता है। अरशद वारसी अपनी कॉमिक टाइमिंग से थोड़ी राहत प्रदान करते हैं, लेकिन ज्यादातर दृश्यों में उन्हें भी समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या कर रहे हैं। लॉरेन गॉटलिएब का अभिनय बुरा और डांस अच्छा है। फिल्म में कुछ गाने भी हैं, जिनका होना कोई मायने नहीं रखता। वीएफएक्स ऐसे हुआ है कि कई दृश्य नकली लगते हैं। 
 
वेलकम टू कराची फिल्म से बेहतर इसका ट्रेलर है, जिसे देख काम चलाया जा सकता है। 
 
बैनर : पूजा एंटरटेनमेंट इंडिया लि. 
निर्माता : वासु भगनानी 
निर्देशक : आशीष आर. मोहन 
संगीत : जीत गांगुली, रोचक कोहली, अमजद नदीम
कलाकार : जैकी भगनानी, अरशद वारसी, लॉरेन गॉटलिएब
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 11 मिनट 45 सेकण्ड
रेटिंग : 1/5

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