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अग्निपथ : फिल्म समीक्षा

खून से लथपथ

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समय ताम्रकर

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बैनर : धर्मा प्रोडक्शन्स
निर्माता : करण जौहर, हीरू जौहर
निर्देशक : करण मल्होत्रा
संगीत : अजय गोगावले, अतुल गोगावले
कलाकार : रितिक रोशन, प्रियंका चोपड़ा, संजय दत्त, ऋषि कपूर, ओम पुरी, चेतन पंडित, आरीष भिवंडीवाला, कनिका तिवारी कैटरीना कैफ (मेहमान कलाकार)
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 20 रील * 2 घंटे 53 मिनट
रेटिंग : 3/5

अग्निपथ (1990) का रीमेक सही समय पर रिलीज हुआ है। इस समय दर्शकों की रूचि में बदलाव आया है। 80 और 90 के दशक में जिस तरह की फिल्में बनती थीं, वैसी फिल्में पसंद की जा रही हैं। सिंघम, दबंग, वांटेड, बॉडीगार्ड इसका सबूत हैं। इन्हें हम ठेठ देसी फिल्म कह सकते हैं। सीधे हीरो और विलेन की लड़ाई इनमें होती है। पहली रील में ही पता चल जाता है कि हीरो का टारगेट है बदला लेना। ये भी पता रहता है कि वह इसमें कामयाब होगा। दिलचस्पी सिर्फ इसमें होती है कि कैसे?

मुकुल एस. आनंद निर्देशित फिल्म अग्निपथ (1990) फ्लॉप रही थी। अमिताभ बच्चन ने आवाज बदलकर संवाद डब किए थे, जो दर्शकों की समझ में ही नहीं आए और इसे फिल्म के पिटने का मुख्य कारण माना गया। किसी ‍फ्लॉप फिल्म का रीमेक बनना बिरला उदाहरण है।

दरअसल अमिताभ वाली अग्निपथ को बाद में टीवी पर देख दर्शकों ने काफी सराहा। करण जौहर को लगा कि उनके पिता यश जौहर की फिल्म के साथ दर्शकों ने ठीक इंसाफ नहीं किया, इसलिए उन्होंने एक बार और इस फिल्म को बनाया ताकि इसकी सफलता के जरिये वे साबित कर सकें कि उनके पिता द्वारा बनाई गई फिल्म उम्दा थी।

अग्निपथ (2012) एक बदले की कहानी है। इसमें थोड़े-बहुत बदलाव किए गए हैं, लेकिन फिल्म की मूल कहानी 1990 में रिलीज हुई फिल्म जैसी ही है। मांडवा में रहने वाला बालक विजय दीनानाथ चौहान (मास्टर आरीष भिवंडीवाला) की आंखों के सामने उसके सिद्धांतवादी पिता (चेतन पंडित) को कांचा चीना (संजय दत्त) बरगद के पेड़ से लटका कर मार डालता है क्योंकि कांचा के बुरे इरादों की राह में मास्टर रुकावट थे।

विजय अपनी मां (जरीना वहाब) के साथ मुंबई जा पहुंचता है, जहां उसकी मां एक बेटी को जन्म देती है। विजय का एक ही लक्ष्य रहता है कि किसी तरह अपने पिता की मौत का बदला लेना। वह गैंगस्टर रऊफ लाला (‍ऋषि कपूर) की शरण लेता है। अब विजय (रितिक रोशन) बड़ा हो चुका है। अपराध की दुनिया का बड़ा नाम है। रऊफ लाला के जरिये वह कांचा तक जा पहुंचता है और किस तरीके से बदला लेता है यह फिल्म का सार है।

फिल्म का स्क्रीनप्ले (इला बेदी और करण मल्होत्रा) बहुत ही ड्रामेटिक है। हर चीज को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है। बारिश, आग, त्योहार के बैकड्रॉप में कहानी को आगे बढ़ाया गया है। ये चीजें अच्छी इसलिए लगती हैं क्योंकि कहानी लार्जर देन लाइफ है और ड्रामे में दिलचस्पी बनी रहती है।

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बाल विजय और उसके पिता वाले हिस्से को लंबा फुटेज दिया गया है और यह हिस्सा बेहद ड्रामेटिक है। यहां पर दोनों लेखकों ने विजय के कैरेक्टर को बेहतरीन तरीके से दर्शकों के दिलो-दिमाग में बैठा दिया है।

इंटरवल के पहले वाला हिस्सा बेहद मजबूत है। इंटरवल के बाद फिल्म की गति सुस्त होती है। कुछ गाने और दृश्य रुकावट पैदा करते हैं, लेकिन इनकी संख्या कम है।

क्लाइमेक्स में फिर एक बार फिल्म गति पकड़ती है, हालांकि क्लाइमेक्स थोड़ा जल्दबाजी में निपटाया गया है।

(फिल्म समीक्षा का अगला हिस्सा पढ़ने के लिए अगले पृष्ठ पर क्लिक करें)


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फिल्म की खासियत है इसके कैरेक्टर। विजय चौहान, कांचा चीना, रऊफ लाला, एकनाथ गायतोंडे, शिक्षा, शांताराम, सूर्या को कुछ इस अंदाज में पेश किया गया है कि फिल्म मनोरंजक लगती है। खासतौर पर रऊफ लाला का किरदार जब ‍तक फिल्म में रहता है फिल्म का स्तर बहुत ऊंचा उठ जाता है।

निर्देशक करण मल्होत्रा ने मूल अग्निपथ से जो बदलाव किए हैं वो अखरते नहीं हैं। मिथुन चक्रवर्ती वाला किरदार याद नहीं आता। ऋषि कपूर वाला किरदार जो उन्होंने जोड़ा है वो बेहतरीन है। कांचा चीना का जो खौफ उन्होंने शुरुआती रील में पैदा किया है वो जबरदस्त है।

फिल्म को निर्देशक ने देसी कलेवर सुर्ख रंगों, तेज धूप, गणेश उत्सव और दही-हांडी से चढ़ाया है। लेकिन फिल्म के संवादों पर मेहनत नहीं की गई है। मूल अग्निपथ में अमिताभ द्वारा बोले गए संवाद फिल्म की जान थे। बार-बार अमिताभ अपना परिचय फिल्म देते थे जो इसमें मिसिंग है। उनका सूट भी याद आता है।

रितिक और प्रियंका का रोमांस वाला हिस्सा अधूरे मन से रखा गया है। कांचा और विजय के आमने-सामने वाले दृश्य ज्यादा होने थे। 1990 में मुंबई के निकट मांडवा पर कांचा का राज करने वाली बात थोड़ी हजम करना मुश्किल है। एक गाने में पृष्ठभूमि में बाल विजय, उसकी बहन और काली का फ्लेक्स बोर्ड नजर आता है। उस दौर में फ्लेक्स आ चुका था, इस पर संदेह है।

अग्निपथ (1990) में अमिताभ बच्चन का अभिनय फिल्म पर भारी था। कुर्सी पर बैठने का उनका अपना अंदाज था। उन्होंने अपने किरदार को त्रीवता के साथ पेश किया था। अमिताभ से रितिक की तुलना तो नहीं की जा सकती, लेकिन रितिक के यह बेहतरीन परफॉर्मेंसेस में से एक है। उन्हें कम संवाद दिए गए हैं और उनकी आंखों से बदले की आग की आंच को महसूस किया जा सकता है।

प्रियंका चोपड़ा का ठीक से उपयोग नहीं किया गया है। उनके दृश्य कमजोर हैं और उन्हें ज्यादा करने को कुछ नहीं था। संजय दत्त का स्टाइल सिंगल स्क्रीन दर्शकों को बेहद अच्छा लगेगा। उनकी शुद्ध हिंदी, गीता और महाभारत का उल्लेख उनके किरदार को दिलचस्प बनाता है। कांचा चीना के रूप में संजू बाबा बेहद जमे हैं और उन्हें इसी तरह अपनी उम्र के मुताबिक रोल करने चाहिए।

ऋषि कपूर ने विलेन के रूप में जो तेवर दिखाए हैं वो लाजवाब हैं। उनका कसाईपन उनके अभिनय में झलकता है। आरीष भिवंडीवाला, ओम पुरी, चेतन पंडित, कनिका तिवारी सहित सारे कलाकारों ने बेहतरीन एक्टिंग की है।

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फिल्म का संगीत अच्छा है। देवा श्री गणेशा, गुन गुन गुना, अभी मुझ में कहीं सुनने लायक हैं। चिकनी चमेली के लिए सिचुएशन अच्छी बनाई गई है और इस पर कैटरीना का बेहतरीन डांस है। किरण देओहंस और रवि के. चन्द्रन की सिनेमाटोग्राफी द्वारा हम लोकेशन्स को फील कर सकते हैं। फिल्म का एक्शन रा और खून-खराबे से भरा है।

अग्निपथ के जरिये उस दौर को याद किया गया है जब बाप का बदला, रोती हुई विधवा मां, बहन की इज्जत, खौफनाक विलेन और शक्तिशाली हीरो के इर्दगिर्द कहानी घूमती थी। अग्निपथ (2012) कोई महान फिल्म नहीं है, लेकिन उस दौर के हाई वोल्टेज रिवेंज ड्रामा को अच्छे से पेश किया गया है इसलिए एक बार देखी जा सकती है।

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