‘अजान’ पर अंग्रेजी फिल्मों का प्रभाव है। शॉट टेकिंग और स्टाइल में ये इंग्लिश फिल्मों का मुकाबला करती है, लेकिन बारी जब स्क्रीनप्ले की आती है तो मामला बिगड़ जाता है। स्क्रीनप्ले ऐसा लिखा गया है कि क्या हो रहा है, कैसे हो रहा है, क्यों हो रहा है, कुछ समझ में नहीं आता। सारे किरदार एक दौड़ते रहते हैं, देश बदलते रहते हैं, तकनीक को लेकर बातें होती रहती है, लेकिन पहली फ्रेम से आखिरी फ्रेम तक फिल्म दर्शकों पर अपनी पकड़ नहीं बना पाती।
एक डॉक्टर जो कि पूर्व सीआईए एजेंट है, एबोला नामक वायरस के जरिये तबाही मचाना चाहता है। उसके निशाने पर भारत है। इस वायरस को वह भारतीयों के बीच फैलाकर उन्हें मौत की नींद सुलाना चाहता है। रॉ में काम करने वाला आर्मी ऑफिसर अजान खान (सचिन जोशी) उसके खिलाफ लड़ता है और उसके मंसूबों को नाकामयाब करता है।
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इस छोटी-सी कहानी को स्क्रीनप्ले के जरिये कई देशों में फैलाया गया है, कई किरदार और तकनीक घुसाई गई है, लेकिन यह सब इतना कन्फ्यूजिंग है कि स्क्रीन पर जो तमाशा चलता है उसमें कोई दिलचस्पी नहीं जागती।
फिल्म की गति कुछ ज्यादा ही तेज हो गई है जिससे कन्टीन्यूटी भी प्रभावित हुई है। ऐसा लगता है मानो एक सीन से दूसरे सीन पर कूदा जा रहा हो। किरदारों के बीच के संबंधों को भी ठीक से जोड़ा नहीं गया है। अजान की प्रेम कहानी भी बिलकुल प्रभावित नहीं करती है और जो सपना वह बार-बार देखता है उसके बारे में भी विस्तृत रूप से कुछ बताया नहीं गया है।
फिल्म का क्लाइमेक्स सीन अजान की बुद्धि पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। वह एक ऊँची पहाड़ी पर दुश्मनों से घिर गया है। उसके साथ एक छोटी लड़की है, जिसके खून के जरिये इबोला नामक वायरस से लड़ा जा सकता है। अजान उस लड़की को पैराशूट के सहारे नीचे फेंक देता है और खुद दुश्मनों से लड़कर जान दे देता है, जबकि वह खुद लड़की को गोद में लेकर पैराशूट के जरिये नीचे छलांग लगा सकता था।
फिल्म की कहानी विश्वसनीय इसलिए भी नहीं लगती है क्योंकि फिल्म के हीरो सचिन जोशी में स्टारों वाली बात नहीं है। इस कहानी के लिए बड़ा स्टार चाहिए था। सचिन न दिखने में स्टार जैसे हैं और न ही उन्हें एक्टिंग आती है। शायद इसीलिए निर्देशक ने उन्हें बहुत कम संवाद बोलने के लिए दिए हैं। रविकिशन और आर्य बब्बर ने जमकर ओवर एक्टिंग की है। केंडिस बाउचर का रोल छोटा है, लेकिन वे प्रभावित करती हैं।
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निर्देशक के रूप में प्रशांत चड्ढा ने फिल्म को स्टाइलिश लुक दिया है। शॉट बेहतरीन तरीके से फिल्माए हैं, लेकिन फिल्म के हीरो के चयन और कहानी कहने के तरीके में वे बुरी तरह मार खा गए। तकनीकी रूप से फिल्म सशक्त है। विदेशी लोकेशन को बेहतरीन तरीके से फिल्माया गया है। फिल्म के स्टंट्स विशेष रूप से उल्लेखनीय है, लेकिन कमजोर स्क्रीनप्ले इन सभी विशेषताओं को बौना बना देता है।