निर्देशक : फ्रांसिल लॉरेंस
कलाकार : विल स्मिथ, एलिस ब्रागा, डेश मिहोक
रेटिंग : 3/5
साइंस फिक्शन हॉलीवुड वालों का प्रिय विषय रहा है। कहीं ना कहीं उनके मन में नई तकनीक और उनका प्रयोग खौफ पैदा करता है। अनजान खतरों की वे कल्पनाएँ करते हैं, जिसमें मानव जाति समाप्त होने का डर रहता है। लेकिन अंत में मानव ही विजेता बनकर उभरता है।
इसी श्रेणी के अंतर्गत ‘आई एम लीजेंड’ का निर्माण किया गया है। यह फिल्म रिचर्ड मैथसन के उपन्यास पर आधारित है। भव्य बजट की इस फिल्म की कहानी में 2009 का समय दिखाया गया है। उस वक्त ‘केवी वायरस’ का हर तरफ खौफ है। इंसानों में यह इतनी तेजी से फैलता है कि मानव सभ्यता लगभग समाप्त होने की कगार पर पहुँच जाती है।
इस वायरस की चपेट में आने के बाद इंसान हैवान के रूप में बदल जाता है। रोशनी से खौफ खाने वाला यह हैवान रात के अंधेरे में बेहद शक्तिशाली हो जाता है। न्यूयार्क शहर को तत्काल खाली किया जाता है।
डॉ. रॉबर्ट नेवल (विल स्मिथ) पर इस वायरस का कोई असर नहीं होता। अपने परिवार को बिदा कर वह अकेला न्यूयार्क में रहने का निर्णय लेता है। वह अनुसंधान करना चाहता है ताकि मानव जाति को बचा सके।
पूरे न्यूयार्क में अकेले रहने वाले रॉबर्ट को लगने लगता है कि वह दुनिया में जीवित बचा एकमात्र मनुष्य है। फिर भी वह इस वायरस के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखता है इस उम्मीद में कि कहीं ना कहीं कोई मनुष्य जिंदा होगा और वह अपनी जाति को बचाने में कामयाब होगा। उसे इस वायरस के शिकार हैवानों से भी लड़ाई लड़नी पड़ती है।
फिल्म की पटकथा बीच के बीस मिनट को छोड़ एकदम चुस्त है। फिल्म में ज्यादा पात्र नहीं हैं और तीन चौथाई दृश्यों में तो विल स्मिथ अकेले दिखाई देते हैं। बातचीत करने के लिए उसके पास सिर्फ कुत्ता रहता है, लेकिन इसके बावजूद फिल्म बांध कर रखती है।
उजाड़ न्यूयार्क वाले दृश्य अद्भुत हैं। पूरे न्यूयार्क में जगह-जगह जंगली घास उग आई है। सड़कों पर कार बिखरी पड़ी हैं। शहर में एक ठहराव आ गया है। मानव के बिना एक शहर को देखना एक अनोखा नजारा पेश करता है।
दिन के समय विल स्मिथ न्यूयार्क में अकेला घूमता है और रात में हैवानों का राज हो जाता है। हैवानों द्वारा विल और उसके कुत्ते सैम पर आक्रमण के दृश्य शानदार हैं। स्पेशल इफेक्ट इतनी सफाई से फिल्माए गए हैं कि कहीं भी नकलीपन नहीं झलकता। फिल्म निर्माण में पैसा पानी की तरह बहाया गया है।
निर्देशक फ्रांसिस लॉरेंस ने डॉ. रॉबर्ट के अनुसंधान पर जोर देने के बजाय एक अकेले इंसान की मुश्किल को ज्यादा दिखाया है। किस तरह एक अकेला इंसान पुराने वीडियो टेप देखता है। शो-रुम पर जाकर कल्पनाएँ करता है। उन्होंने फिल्म के कथानक पर तकनीक को ज्यादा हावी होने से भी बचाया है।
पूरी फिल्म में लगभग पूरे समय कैमरा विल स्मिथ पर रहता है। बिना किसी अन्य पात्र के अकेले अभिनय करना मुश्किल है, लेकिन विल स्मिथ ने इसे बड़ी कुशलता से निभाया है। एलिस ब्रागा, डेश मिहोक और चार्ली टाहान का अभिनय भी उम्दा है। तकनीकी स्तर पर फिल्म बेहद सशक्त है। साइंस फिक्शन और हॉलीवुड की भव्य फिल्म देखने वालों को 100 मिनट की यह फिल्म पसंद आएगी।