निर्देशक ए. मुरुगदास ने कहानी को बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत किया है। कब रोमांस दिखाना है, कब एक्शन दिखाना है और कब थ्रिल पैदा करना है, ये काम उन्होंने बखूबी किया है। बदले की कहानी तभी सफल होती है जब दर्शक के मन में भी खलनायक के प्रति नफरत पैदा हो। नायक के साथ वह भी बदला लेने के लिए आतुर हो और यह काम मुरुगदास ने बखूबी किया है। इसके लिए उन्होंने संजय और कल्पना की प्रेम कहानी को उम्दा तरीके से विकसित किया है। कल्पना के किरदार पर उन्होंने बहुत मेहनत की है। हमेशा हँसने वाली, मासूम, दूसरों की मदद करने वाली कल्पना को इतनी खूबसूरती के साथ पेश किया है कि सभी उसे चाहने लगते हैं। उसके बाद जब उसकी हत्या होती है तो दर्शक सन्न रह जाते हैं। उनकी पूरी सहानूभूति संजय के साथ हो जाती है और गजनी (विलेन) के प्रति नफरत से वे भर जाते हैं। फिल्म में हिंसा है, लेकिन उसके पीछे ठोस कारण भी है। कल्पना की हत्या और क्लाइमेक्स में आमिर का एक्शन अद्भुत है। कुछ कमियाँ भी हैं, लेकिन फिल्म की गति इतनी तेज रखी गई है कि दर्शक ज्यादा सोच नहीं पाता। खासतौर पर शुरुआत के आधे घंटे फिल्म की गति इतनी तेज है कि उससे तालमेल बैठाने में परेशानी होती है। ‘तारे जमीं पर’ के बाद आमिर ने यू टर्न लेते हुए एक शुद्ध कमर्शियल फिल्म में काम किया है। उन्हें संवाद कम दिए गए हैं, लेकिन बदले की आग से जलती हुई उनकी आँख सब कुछ बयाँ कर देती है। एक्शन दृश्यों में भी वे छाए रहे। उनकी एट पैक एब्स बॉडी का खूब प्रचार किया गया, लेकिन उन्होंने अपनी शर्ट कम उतारी। असीन ने ज्यादा बोलने वाली और मासूम लड़की का किरदार उम्दा तरीके से निभाया। खासकर रोमांटिक दृश्यों और उनकी हत्या वाले दृश्य में उनका अभिनय देखने लायक है। जिया खान का किरदार रोचक है जो पहले आमिर के लिए बाधाएँ खड़ी करता है और बाद में उसकी मदद करता है। गजनी के रूप में प्रदीपसिंह रावत के चेहरे से क्रूरता टपकती है। उनका किरदार सोने की मोटी चेन, अँगूठी और सफेद कपड़े पहना टिपिकल विलेन है, जो दस वर्ष पहले फिल्मों में दिखाई देता था और ‘ऐसा मारेंगे कि उसका नाखून भी नहीं मिलेगा’ जैसे संवाद बोलता है।
फिल्म के एक्शन में बंदूक नहीं है। ज्यादातर हैंड टू हैंड फाइटिंग है। लोहे की रॉड और चाकू का प्रयोग किया गया है और आमिर ने अपने मजबूत शरीर से ज्यादातर खलनायकों की हड्डियाँ चटकाई हैं। एक्शन दृश्यों में कहीं-कहीं दक्षिण भारतीय फिल्म वाला टच आ गया है, जिससे वे लाउड दिखे हैं।
फिल्म का संगीत ठीक है। ‘गुजारिश’ और ‘बहका’ उम्दा बन पड़े हैं, लेकिन कुछ गाने ऐसे हैं जैसे दक्षिण भारतीय भाषा से अनुवाद किए हुए हों। रवि चन्द्रन की सिनेमॉटोग्राफी उल्लेखनीय है।
जबर्दस्त एक्शन, प्यारा-सा रोमांस, धड़कनें बढ़ाने वाला थ्रिल, खूबसूरत लोकेशन पर फिल्माए गए गाने और तनाव से भरे ड्रामे की वजह से ‘गजनी’ एक पैसा वसूल फिल्म है।
रेटिंग : 3.5/5