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गजनी : पैसा वसूल

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समय ताम्रकर

IFM
निर्माता : अल्लू अरविंद, मधु वर्मा
कथा-पटकथा-निर्देशक : ए.आर. मुरुगदास
गीतकार : प्रसून जोशी
संगीतकार : ए.आर. रहमान
कलाकार : आमिर खान, असीन, जिया खान, प्रदीप सिंह रावत

फिल्मों में बदला वर्षों पुराना विषय है। ‘शोले’, ‘करण अर्जुन’, ‘राम लखन’ जैसी हजारों फिल्में इस विषय पर बन चुकी हैं। माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी-प्रेमिका की मौत का बदला- हम फिल्मों में अनेक बार देख चुके हैं। दरअसल एक्शन फिल्म की नींव ही बदले पर टिकी रहती है।

मल्टीप्लेक्स के उदय के बाद इस आजमाए हुए विषय पर फिल्म बनना लगभग बंद हो गई, लेकिन आमिर खान अभिनीत एक्शन फिल्म ‘गजनी’ में इसे फिर सामने लाया गया है। इस एक्शन फिल्म के मुख्य किरदार को ‘शॉर्ट टर्म मेमोरी लॉस’ की बीमारी है, जो इसे एक नया एंगल देती है।

संजय सिंघानिया (आमिर खान) कोई भी बात पन्द्रह मिनट से ज्यादा याद नहीं रख पाता। सोचिए कि इस बीमारी से ग्रसित आदमी जब सुबह उठता है तो उसका दिमाग कोरे कागज की तरह रहता है। आँख खुलने के बाद उसके दिमाग में सबसे पहले यह विचार आता है कि मैं कहाँ हूँ? कौन हूँ। फिर धीरे-धीरे वह आसपास रखी चीजों पर लगे कागज के टुकड़ों को पढ़ता है और कुछ-कुछ उसे याद आता है। यह बात फिल्म को खास बनाती है।

कहानी है संजय सिंघानिया की, जो एयर वाइस सेल्यूलर फोन कंपनी का मालिक है। एक पत्रिका में वह कल्पना (असीन) नामक मॉडल का इंटरव्यू पढ़ता है, जो दावा करती है कि संजय उससे मिला था और उससे प्यार करता है। कल्पना को इस झूठ का सबक सिखाने संजय उसके घर जाता है, लेकिन वह खुद उससे प्यार कर बैठता है। दोनों की प्रेम कहानी आगे बढ़ती है, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। कुछ लड़कियों को कल्पना गुंडों से बचाती है। वे गुंडे कल्पना की हत्या कर देते हैं और संजय की भी निर्ममता से पिटाई करते हैं। सिर पर चोट की वजह से संजय शॉर्ट टर्म मेमोरी लॉस का शिकार हो जाता है। किस तरह से वह अपना बदला लेता है, यह फिल्म में रोमांचक तरीके से दिखाया गया है।

फिल्म की कहानी बड़ी सीधी-सादी लगती है, लेकिन स्क्रीनप्ले में इतने सारे उतार-चढ़ाव दिए गए हैं कि दर्शक सीट पर बँधा रहता है। हर फ्रेम उसकी उत्सुकता बढ़ाती है कि आगे क्या होगा। कहानी गुजरे समय और वर्तमान समय में कूदती-फाँदती रहती है। इस कहानी में कई गुत्थियाँ, कई अड़चनें संजय की राह में खड़ी गई हैं, जिन्हें संजय सुलझाता है। ‘गजनी’ में एक बहुत प्यारी-सी लव स्टोरी भी छिपी हुई है। इस वजह से फिल्म में लगातार राहत मिलती रहती है।

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निर्देशक ए. मुरुगदास ने कहानी को बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत किया है। कब रोमांस दिखाना है, कब ‍एक्शन दिखाना है और कब थ्रिल पैदा करना है, ये काम उन्होंने बखूबी किया है। बदले की कहानी तभी सफल होती है जब दर्शक के मन में भी ‍खलनायक के प्रति नफरत पैदा हो। नायक के साथ वह भी बदला लेने के लिए आतुर हो और यह काम मुरुगदास ने बखूबी किया है। इसके लिए उन्होंने संजय और कल्पना की प्रेम कहानी को उम्दा तरीके से विकसित किया है। कल्पना ‍के किरदार पर उन्होंने बहुत मेहनत की है। हमेशा हँसने वाली, मासूम, दूसरों की मदद करने वाली कल्पना को इतनी खूबसूरती के साथ पेश किया है कि सभी उसे चाहने लगते हैं। उसके बाद जब उसकी हत्या होती है तो दर्शक सन्न रह जाते हैं। उनकी पूरी सहानूभूति संजय के साथ हो जाती है और गजनी (विलेन) के प्रति नफरत से वे भर जाते हैं।

फिल्म में हिंसा है, लेकिन उसके पीछे ठोस कारण भी है। कल्पना की हत्या और क्लाइमेक्स में आमिर का एक्शन अद्‍भुत है। कुछ कमियाँ भी हैं, लेकिन फिल्म की गति इतनी तेज रखी गई है कि दर्शक ज्यादा सोच नहीं पाता। खासतौर पर शुरुआत के आधे घंटे फिल्म की गति इतनी तेज है कि उससे तालमेल बैठाने में परेशानी होती है।

‘तारे जमीं पर’ के बाद आमिर ने यू टर्न लेते हुए एक शुद्ध कमर्शियल फिल्म में काम किया है। उन्हें संवाद कम दिए गए हैं, लेकिन बदले की आग से जलती हुई उनकी आँख सब कुछ बयाँ कर देती है। एक्शन दृश्यों में भी वे छाए रहे। उनकी एट पैक एब्स बॉडी का खूब प्रचार किया गया, लेकिन उन्होंने अपनी शर्ट कम उतारी।

असीन ने ज्यादा बोलने वाली और मासूम लड़की का किरदार उम्दा तरीके से निभाया। खासकर रोमांटिक दृश्यों और उनकी हत्या वाले दृश्य में उनका अभिनय देखने लायक है। जिया खान का किरदार रोचक है जो पहले आमिर के लिए बाधाएँ खड़ी करता है और बाद में उसकी मदद करता है। गजनी के रूप में प्रदीपसिंह रावत के चेहरे से क्रूरता टपकती है। उनका किरदार सोने की मोटी चेन, अँगूठी और सफेद कपड़े पहना टिपिकल विलेन है, जो दस वर्ष पहले फिल्मों में दिखाई देता था और ‘ऐसा मारेंगे कि उसका नाखून भी नहीं मिलेगा’ जैसे संवाद बोलता है।

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फिल्म के एक्शन में बंदूक नहीं है। ज्यादातर हैंड टू हैंड फाइटिंग है। लोहे की रॉड और चाकू का प्रयोग किया गया है और आमिर ने अपने मजबूत शरीर से ज्यादातर खलनायकों की हड्डियाँ चटकाई हैं। एक्शन दृश्यों में कहीं-कहीं दक्षिण भारतीय फिल्म वाला टच आ गया है, जिससे वे लाउड दिखे हैं।

फिल्म का संगीत ठीक है। ‘गुजारिश’ और ‘बहका’ उम्दा बन पड़े हैं, लेकिन कुछ गाने ऐसे हैं जैसे दक्षिण भारतीय भाषा से अनुवाद किए हुए हों। रवि चन्द्रन की सिनेमॉटोग्राफी उल्लेखनीय है।

जबर्दस्त एक्शन, प्यारा-सा रोमांस, धड़कनें बढ़ाने वाला थ्रिल, खूबसूरत लोकेशन पर फिल्माए गए गाने और तनाव से भरे ड्रामे की वजह से ‘गजनी’ एक पैसा वसूल फिल्म है।

रेटिंग : 3.5/5

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