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जय वीरू : बनती हैं ऐसी फिल्में भी...?

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अनहद

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निर्माता : श्याम बजाज
निर्देशक : पुनीत सिरा
संगीत : बप्पा लाहिरी
कलाकार : फरदीन खान, दीया मिर्जा, कुणाल खेमू, अंजना सुखानी, अरबाज खान


दुनिया में बहुत कुछ देख लेने वालों के मन में जाने-अनजाने एक शिकायत-सी पैदा हो जाती है। शिकायत यह कि दुनिया में अब ऐसा कुछ नहीं बचा, जो हमें हैरत में डाल सके। रहस्यमयता की वह काव्यात्मक अनुभूति खत्म हो जाती है। ऐसे लोगों को फिल्म "जय-वीरू" देखनी चाहिए। इस फिल्म को देखकर हैरत होती है कि अरे! ऐसी फिल्में अब भी बनती हैं।

इसे देखकर एक और मिसाल याद आती है। सुनते हैं किसी बच्चे को जब अपना पुराना जन्म याद आता है, तो वह बूढ़ों जैसा बर्ताव करने लगता है। शरीर बच्चा होता है और मन बूढ़ा। "जय-वीरू" में हीरो-हीरोइन नए हैं और कहानी, ट्रीटमेंट पुराना। हर शॉट से पहले आपको पता होता है कि अब क्या होने वाला है और आप सोचने लगते हैं कि अगर घर जाने के लिए उठ जाया जाए, तो क्या पार्किंग से गाड़ी आसानी से निकल पाएगी? क्या सिनेमाघर के गेट इस वक्त खुले होंगे? बंद हुए तो क्या गाड़ी निकालने के लिए गेट खोल दिए जाएँगे?

फिल्म के गाने समीर ने लिखे हैं। उनकी दिमागी और रचनात्मक गरीबी का हाल यह है कि उन्होंने चोली का काफिया साली से मिलाया है।
प्रसून जोशी एंड कंपनी फिल्मों में जो ताज़गी लेकर आई है, उसका नामोनिशान भी समीर के पास नहीं हैं। उनके लफ्ज़ बासी हो गए हैं और नई पीढ़ी की कोई समझ उन्हें नहीं है। फिल्म के निर्देशक पुनीत सिरा हैं, जो दुनिया के न जाने कौन-से सिरे पर रहते हैं। अगर मुंबई में रहते होते, तो उन्हें पता होता कि भोजपुरी फिल्मों तक में आजकल नई कहानी माँगी जा रही है।

जहाँ तक कुणाल खेमू का सवाल है, उनके खाते में एक बुरी फिल्म से बहुत फर्क नहीं पड़ता, पर फरदीन खान की तो एकदम लुटिया ही डूब चुकी है। वैसे भी फिरोज़ खान के बेटे वे नहीं होते, तो उन्हें एक भी फिल्म नहीं मिलती। सितारा-पिता अपने बेटे को फिल्मों में लाँच तो कर सकता है, पर उसे अभिनय नहीं सिखा सकता, दो-चार छः फिल्मों की बात और है, पर बतौर सितारा स्थापित तो सितारा-पुत्र भी अपने टेलेंट से ही होता है।

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सुनते हैं दिल्ली में हर साल बुरी फिल्मों को "केला अवॉर्ड" दिया जाता है, सो इस साल जितनी भी फिल्में आई हैं उनमें "जय-वीरू" केला अवॉर्ड के लिए एकदम फिट है। जिस तरह "स्लमडॉग..." पर बहुत सारे ऑस्कर बरसे हैं, उसी तरह इस पर भी बहुत-से केले बरस सकते हैं। इस साल केला अवॉर्ड के लिए इससे बेहतर फिल्म शायद ही बने। साल की तमाम बुरी फिल्मों को यह फिल्म कड़ी टक्कर देगी।

(नईदुनिया)


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