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डिटेक्टिव नानी : जासूस नानी की बोरिंग कहानी

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हमें फॉलो करें डिटेक्टिव नानी

अनहद

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निर्माता-निर्देशक : रोमिला मुखर्जी
संगीत : जॉली मुखर्जी, रोमिला मुखर्जी, शैलैन्द्र बर्वे
कलाकार : अवा मुखर्जी, ज़ैन खान, अंकुर नय्यर, हेमू अधिकारी


फिल्म 'डिटेक्टिव नानी' इस मायने में पारिवारिक फिल्म है कि लगता है इसमें एक ही परिवार ने काम किया है। रोमिला मुखर्जी डायरेक्टर हैं, संगीत जॉली मुखर्जी ने दिया है। पर्दे पर काम करने वालों में अवी मुखर्जी का नाम है। ज़रूर और भी मुखर्जी इसमें शामिल होंगे। फिल्म ऐसी बन गई है कि मुखर्जी परिवार आराम से देख सकता है। दूसरे परिवार इसे शायद ही झेल पाएँ, क्योंकि फिल्म में देखने जैसा कुछ है ही नहीं।

वैसे ये पारिवारिक फिल्म न होकर बाल फिल्म है। बाल फिल्म भी नहीं वृद्ध बाल फिल्म। ये एक अलग ही कैटेगरी है, जो सिर्फ इसी फिल्म पर लागू होती है। यह इसी पर लागू रह भी सकती है कि इसे देखने के बाद कोई दूसरा शायद ही ऐसी फिल्म बनाने की बुद्धिमानी करे। फिल्म बोरिंग है, बहुत बोरिंग है। इतनी बोरिंग है कि पूरे नौ घंटों की नींद के बाद यदि इसे देखा जाए, तो दो-तीन घंटे और सोया जा सकता है।

ये ऐसी अजीब बाल फिल्म है कि देखकर बाल नोचने का मन करता है। बाल फिल्म में बाल यानी बालक दिखते ही नहीं हैं। एक बूढ़ी नानी छाई रहती है... ठीक उसी तरह जैसे देवानंद की फिल्मों के हर फ्रेम में सिर्फ देवानंद ही नज़र आते हैं। अगर शुरू में ही आपको नींद न आ जाए तो बाद में कुछ बच्चे भी नज़र आते हैं। कहानी क्या है ये मत पूछिए। नाम में ही सिंगल लाइन स्टोरी छिपी है।

एक नानी है, जो तेज़ तर्रार है और जासूसी करती है। एक तो पहले ही हमारे यहाँ बाल फिल्में बनती नहीं हैं और बनती भी हैं तो ऐसी...। बहरहाल नानी अपने फ्लैट में अकेली रहती हैं। इसी बिल्डिंग में एक पड़ोसी हैं यादवजी। उनके यहाँ पुलिसिया भाषा में कहा जाए तो 'संदिग्ध गतिविधियाँ' होती हैं। इसी कहानी में बच्चों का अपहरण करने वाले एक गिरोह का भी जिक्र है। एक मर्डर मिस्ट्री भी इसमें है।

कोई पूछे कि बड़ों की हिंसक दुनिया में रहने वाले बच्चों की फिल्म में हत्या और अपहरण क्यों? पूछते हैं तो पूछते रहिए, कोई जवाब देने वाला नहीं है। हमारे यहाँ लीक पर बनी फिल्में तो खराब होती ही हैं कई बार लीक से हटकर बनी फिल्में और ज्यादा घटिया होती हैं।

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जासूसी का शौक रखने वाली नानी की इस फिल्म की सबसे बड़ी खामी धीमी रफ्तार है। दूसरी खामी यह कि इसमें कुछ भी नयापन नहीं है। वही केक काटते कोक चुसकते बच्चे हैं, जिनका काम केवल नानी से लाड़ कराना है।

गर्मी की छुट्टियों का फायदा उठाने की खातिर फिल्म की रिलीज़ टाइमिंग छुट्टियों वाली रखी गई है। अफसोस कि ये फिल्म किसी भी मसरफ की नहीं है।

(नईदुनिया)


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