निर्माता : रॉनी स्क्रूवाला
निर्देशक : उमेश शुक्ला
संगीत : साजिद-वाजिद
कलाकार : सोनू सूद, सोहा अली खान, कुणाल खेमू, परेश रावल, दीपल शॉ, जॉनी लीवर, असरानी
‘ढूँढते रह जाओगे’ के निर्देशक उमेश शुक्ला का एक ही उद्देश्य है कि किसी भी तरह से हँसाया जाए। हर दृश्य में लॉजिक को किनारे रखते हुए उन्होंने हास्य पैदा करने की कोशिश की है। जो लोग इस तरह के हास्य को पसंद करते हैं उन्हें ‘ढूँढते रह जाओगे’ में मजा आएगा, लेकिन जिन लोगों को यह हास्य बेवकूफी भरा लगता है, वे इस फिल्म में बोरियत महसूस करेंगे।
कहानी है आनंद (कुणाल खेमू) और राज (परेश रावल) की जो पैसा कमाने के लिए एक फ्लॉप फिल्म बनाने की योजना बनाते हैं। 21 फायनेंसर से वे पाँच-पाँच करोड़ रुपया लेते हैं और मात्र दस करोड़ में फिल्म बनाते हैं। वे चाहते हैं कि उनकी फिल्म फ्लॉप हो ताकि वे घाटा दिखाकर सारा पैसा हजम कर जाएँ, लेकिन फिल्म हिट हो जाती है।
फिल्म के पहले हिस्से में बोरियत भरे कई क्षण हैं। जॉनी लीवर के किरदार के आने के बाद फिल्म गति पकड़ती है। जॉनी ने फिल्म में कहानी लेखक की भूमिका निभाई है। शोले, दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएँगे, गदर और लगान जैसी फिल्मों की कहानी को तोड़-मोड़कर वे नई कहानी बना देते हैं। इस फिल्म के फिल्मांकन और फिल्म को देखते समय जरूर कुछ दृश्यों में हँसी आती है।
निर्देशक के रूप में उमेश शुक्ला ने जिन लोगों को ध्यान में रखकर फिल्म बनाई है, उसमें वे सफल कहे जा सकते हैं। सोहा अली खान, सोनू सूद, कुणाल खेमू, परेश रावल और जॉनी लीवर का अभिनय अच्छा है। साजिद-वाजिद का संगीत बेदम है।
कुल मिलाकर ‘ढूँढते रह जाओगे’ उन लोगों के लिए है जो दिमाग पर जोर लगाए बिना हँसना चाहते हैं।