तीन पत्ती : बिगड़ा हुआ समीकरण
निर्माता : अंबिका हिंदूजा निर्देशक : लीना यादव संगीतकार : सलीम-सुलेमानकलाकार : अमिताभ बच्चन, सर बेन किंग्सले, आर माधवन, श्रद्धा कपूर, ध्रुव मेहमान कलाकार - रायमा सेन, अजय देवगन, महेश माँजरेकर, जैकी श्रॉफ, टीनू आनंद, रंजीत यू/ए * 2 घंटे 23 मिनटरेटिंग : 2/5एक उम्दा थ्रिलर और सस्पेंस फिल्म बनने के सारे तत्व अपराध, जुआ, तीन पत्ती का खेल, स्टुडेंट, कॉलेज कैम्पस, ब्लैकमेलिंग ‘तीन पत्ती’ में मौजूद हैं। अमिताभ बच्चन, बेन किंग्सले जैसे एक्टर्स हैं। बड़ा बजट है। इसके बावजूद डायरेक्टर लीना यादव ऐसी फिल्म नहीं बना पाई जो दर्शकों को इम्प्रेस कर पाए। खासतौर पर राइटिंग के मामले में फिल्म निराश करती है। कहानी है वेंकट (अमिताभ बच्चन) नामक जीनियस मेथेमेटेशियन की जो एक कॉलेज में प्रोफेसर है। प्रोबेबिलिटी (प्रायिकता) के सिद्धांतों के आधार पर वह एक दिन अनोखा फॉर्मूला खोज लेता है, जिसके आधार पर वह यह कह सकता है कि तीन पत्ती के खेल में विनर कौन होगा। प्रोफेसर शांतनु (माधवन) और कुछ स्टुडेंट्स उसके इस फॉर्मूले को रियल लाइफ में आजमाने के लिए कहते हैं। वे एक ऐसे अड्डे पर पहचान छिपाकर जाते हैं जहाँ तीन पत्ती का खेल अवैध तरीके से खेला जाता है। वेंकट की थ्योरी काम कर जाती है और वे खूब रुपए कमाते हैं।
वेंकट को पैसों का लालच नहीं है और वह अगले दिन तीन पत्ती खेलने से इंकार कर देता है। लेकिन उसे एक अज्ञात ब्लैकमेलर का फोन आता है। वेंकट को धमकी मिलती है उसे यह खेल जारी रखना पड़ेगा। जीती हुई आधी रकम ब्लैकमेलर को देना होगी वरना उसके किसी भी स्टुडेंट का मर्डर कर दिया जाएगा। न चाहते हुए भी वेंकट को यह खेल जारी रखना पड़ता है और वह उस ब्लैकमेलर की तलाश करता है। इधर उसके स्टुडेंट्स पर लालच हावी हो जाता है और अचानक अमीर बनने से वे तमाम बुराइयों से ग्रस्त हो जाते हैं। कैसे उस ब्लैकमेलर के चेहरे से नकाब हटता है यह फिल्म का सार है। मैथ्य और तीन पत्ती के खेल को आपस में जोड़ा गया है, लेकिन दर्शकों को यह स्पष्ट नहीं किया गया वेंकट कैसे यह जान लेता है कि बाजी कौन मारेगा। मन में वह कुछ केलकुलेशन्स करता है और विनर का नाम इशारे से अपने साथियों को बता देता है। यह कैसे हो रहा है, यह बताने की जहमत राइटर ने नहीं की, इससे कहानी में विश्वसनीयता नहीं पैदा होती। सिर्फ वेंकट को जीनियस बताने से ही काम पूरा नहीं हो जाता। वेंकट की थ्योरी को लेकर कुछ सीन का होना जरूरी था। तीन पत्ती की कई बाजियाँ फिल्म में दिखाई गई हैं, लेकिन उसमें रोमांच बिलकुल भी नहीं है। साथ ही लगातार एक जैसे कई सीन हैं, जिससे फिल्म एक समय के बाद दोहराव का शिकार हो जाती है और कहानी आगे नहीं बढ़ती। थ्रिलर फिल्म में स्पीड बहुत मायने रखती है, लेकिन फिल्म यहाँ पर भी मात खाती है।
लीना यादव ने जो बात कहने में ढाई घंटे का समय लगाया है, वो बात वे डेढ़ घंटे में भी कह सकती थीं। कई दृश्य ऐसे हैं जो फिल्म में नहीं भी होते तो भी काम चल जाता। जैसे शक्ति कपूर और अजय देवगन वाले दृश्य। वेंकट का किरदार अमिताभ ने बखूबी निभाया। बेन किंग्सले को वेस्ट किया गया है। अजय देवगन, जैकी श्रॉफ, रायमा सेन, रंजीत, महेश माँजरेकर, टीनू आनंद, शक्ति कपूर जैसे कई कलाकारों ने एक या दो सीन करना क्यों मंजूर किए, समझ से परे है। कुल मिलाकर ‘तीन पत्ती’ का समीकरण गड़बड़ है।