लगातार कॉमेडी फिल्म बनाने के बाद प्रियदर्शन ने स्वाद बदलते हुए एक्शन-थ्रिलर फिल्म ‘तेज’ बनाई है। फिल्म का मूल आइडिया हॉलीवुड फिल्मों से उड़ाया गया है, जिनमें जहाज में, ट्रेन में या बस में बम लगा दिया जाता है। स्पीड कम की जाए तो बम फट सकता है। इस आइडिए को देशी तड़के के साथ पेश किया गया है जिसमें एक आइटम नंबर और कुछ इमोशनल सीन हैं।
पूरी फिल्म इंग्लैंड में फिल्माई गई है और हमें ये मानना पड़ता है कि सभी की-पोस्ट पर भारतीय बैठे हुए हैं जो हिंदी बोलते हैं। आप इसे स्वीकार लें तो ही कुछ हद तक फिल्म का मजा ले सकते हैं। कुछ अंग्रेज भी हैं जिनके संवादों को हिंदी में डब कर दिया गया है।
तेज तीन ट्रेक पर चलती है। पहला ट्रेक है बम लगाने वाले आकाश राणा (अजय देवगन) का, जो लंदन से ग्लासगो जा रही ट्रेन में बम लगा देता है। ट्रेन की स्पीड 60 मील प्रति घंटे की रफ्तार से कम की जाएगी या रोक दी जाएगी तो बम फट जाएगा और उसमें बैठे यात्रियों की जान जा सकती है। वह 10 मिलियन यूरो की मांग करता है।
दूसरा ट्रेक है उसे पकड़ने के लिए निकले लंदन काउंटर टेररिज्म ऑफिसर अर्जुन खन्ना (अनिल कपूर) का जो कॉले डिटेल और पैसे देने के बहाने आकाश को गिरफ्तार करना चाहता है।
तीसरा ट्रेक है रेलवे ट्रेफिक कंट्रोलर संजय (बोमन ईरानी) का जो न केवल आकाश से लगातार बात करता रहता है बल्कि इस कोशिश में लगा हुआ है कि ट्रेन किसी तरह रोकी जाए। उसकी बेटी भी उसी ट्रेन में सफर कर रही है।
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ये तीनों ट्रेक समानांतर चलते रहते हैं और इनमें सबसे उम्दा है अर्जुन और आकाश वाली कहानी। चूहे-बिल्ली का खेल उनके बीच चलता रहता है और इस कारण ही फिल्म में रोचकता बनी रहती है। अर्जुन सीढ़ी-दर-सीढ़ी आकाश के नजदीक पहुंचता है।
‘तेज’ की सबसे बड़ी कमजोरी इसकी कहानी है। आकाश के बम लगाने के पीछे जो कारण बताया गया है वो अत्यंत ही कमजोर और बेतुका है। आकाश पिछले दरवाजे से इंग्लैंड में घुसता है और पकड़ा जाता है। इसका गुस्सा वह इस तरीके से निकालता है। आकाश के इस काम में उसके दो दोस्त मेघा (समीरा रेड्डी) और आदिल (जायद खान) उसकी मदद जान की बाजी लगाकर क्यों करते हैं, समझ से परे है जबकि सजा केवल आकाश को हुई थी। सिर्फ एक सीन के जरिये इसे जस्टिफाई करने की कोशिश की गई है जिसमें आकाश का एहसान मेघा मानती है।
निर्देशक प्रियदर्शन जानते हैं कि आकाश का बम लगाने के पीछे का कारण कमजोर है, इसलिए उन्होंने आधी से ज्यादा फिल्म तक इसे छिपाए रखा। फ्लेशबैक में छोटे-छोटे दृश्यों के जरिये उन्होंने यह राज खोला, तब तक दर्शक यह अंदाजा ही लगाते रहे कि आकाश ऐसा क्यों कर रहा है? साथ ही उन्होंने आकाश और अर्जुन की लुकाछिपी पर ही अपना सारा जोर लगाया ताकि फिल्म में रोचकता बनी रहे।
उनके द्वारा फिल्माए गए इमोशनल सीन फिल्म में मिसफिट लगते हैं और सिवाय फिल्म की लंबाई बढ़ाने के कोई असर नहीं छोड़ते। दस घंटे से भी कम समय में इतना बड़ा घटनाक्रम घटता है, लेकिन सारे किरदार बहुत रिलेक्स नजर आते हैं। समय से आगे निकलने का तनाव कहीं नजर नहीं आता है।
फिल्म का प्लस पाइंट हैं स्टंट सीन, हालांकि इस तरह के दृश्य हॉलीवुड में आम बात है, लेकिन हिंदी फिल्मों की दृष्टि से देखा जाए तो ये बेहतरीन हैं। बाइक पर सवार समीरा रेड्डी और उसके पीछे लगी पुलिस वाला चेजिंग सीन सबसे बेहतर है।
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दूसरा प्लस पाइंट है फिल्म के लीड एक्टर्स का शानदार अभिनय। अजय देवगन, अनिल कपूर और बोमन ईरानी ने अपने किरदार पूरी गंभीरता और परिपक्वता के साथ निभाए। जायद खान, समीरा रेड्डी और कंगना के लिए बहुत कम गुंजाइश थी और उन्हें ज्यादा स्कोप नहीं मिला। दक्षिण भारत के महान अभिनेता मोहनलाल ने पता नहीं क्या सोचकर इतना महत्वहीन रोल किया? मल्लिका शेरावत पर फिल्माया गया आइटम सांग बिना सिचुएशन के जोड़ा गया है।
तेज की कहानी में कई खामियां हैं, लेकिन तेज रफ्तार और कलाकारों की शानदार एक्टिंग की वजह से समय अच्छे से कट जाता है।