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द डर्टी पिक्चर : फिल्म समीक्षा

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हमें फॉलो करें द डर्टी पिक्चर

समय ताम्रकर

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बैनर : बालाजी मोशन पिक्चर्स, एएलटी एंटरटेनमेंट
निर्माता : एकता कपूर, शोभा कपूर
निर्देशक : मिलन लथुरिया
संगीत : विशाल-शेखर
कलाकार : विद्या बालन, नसीरुद्दीन शाह, इमरान हाशमी, तुषार कपूर, राजेश शर्मा, अंजू महेन्द्रू
सेंसर सर्टिफिकेट : (ए) * 2 घंटे 23 मिनट
रेटिंग : 3.5/5

दक्षिण भारतीय अभिनेत्री सिल्क स्मिता 80 के दशक में बी-ग्रेड फिल्मों की सुपरस्टार थी। अपनी कामुक अदाओं और अंग प्रदर्शन के जरिये उन्होंने दर्शकों को दीवाना बना दिया था। उनकी जिंदगी में सब कुछ तेजी से घटा और 36 वर्ष की आयु में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।

सिल्क की जिंदगी से प्रेरित होकर ‘द डर्टी पिक्चर’ बनाई गई है जो सिल्क के जन्मदिन 2 दिसंबर को रिलीज हुई है। सिल्क से प्रेरित होने की वजह से फिल्म देखते समय यही लगता है कि हम सिल्क की जीवन-यात्रा देख रहे हैं।

‘द डर्टी पिक्चर’ बनाने वालों ने बड़ी चतुराई के साथ ऐसा विषय चुना है, जो हर तरह के दर्शक वर्ग को अपील करे। चूंकि सिल्क और बोल्डनेस एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं, इस कारण ‘द डर्टी पिक्चर’ के बोल्ड सीन में हल्कापन नहीं लगता। हालांकि कुछ अश्लील संवादों से बचा जा सकता था, जिसकी छूट फिल्म मेकर ने सिल्क के नाम पर ली है।

गांव में रहने वाली लड़की रेशमा पर सिनेमा इस कदर हावी था कि वह हीरोइन बनने घर से भागकर मद्रास चली जाती है। वहां जाकर उसे समझ में आता है कि उसके जैसी कई लड़कियां हैं जो एक चांस के लिए स्टुडियो के चक्कर लगा रही हैं।

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बड़ी मुश्किल से उसे एक फिल्म में काम मिलता है, जिसमें वह उत्तेजक डांस करती है। एक फिल्मकार की नजर उस पर पड़ती है और रेशमा का नया नाम वह सिल्क रख देता है। फिल्मों में सफलता पाने के लिए सिल्क अच्छा-बुरा नहीं सोचती। शरीर तक का इस्तेमाल करती है। वह एक आंधी की तरह है। जहां जाती है तूफान आ जाता है। बोल्ड इतनी कि जो प्रेमी उससे शादी करने वाला है उससे उसके बाप की उम्र पूछती है।

पुरुष बोल्ड हो तो इसे उसका गुण माना जाता है, लेकिन यही बात महिला पर लागू नहीं होती। पुरुष प्रधान समाज महिला की बोल्डनेस से भयभीत हो जाता है। जो सुपरस्टार रात सिल्क के साथ गुजारता है दिन के उजाले में उसके पास आने से डरता है।

सुपरस्टार बनी सिल्क को समझ में आ जाता है कि सभी पुरुष उसकी कमर पर हाथ रखना चाहते हैं। सिर पर कोई हाथ नहीं रखना चाहता। बिस्तर पर उसे सब ले जाना चाहते हैं घर कोई नहीं ले जाना चाहता।

सिल्क के जीवन में तीन पुरुष आते हैं। एक सिर्फ उसका शोषण करना चाहता है। दूसरा उसे अपनाने के लिए तैयार है, लेकिन सिल्क के बिंदासपन और अपने भाई से डरता है। अपने हिसाब से उसे बदलना चाहता है। तीसरा उससे नफरत करता है। उसे फिल्मों में आई गंदगी बताता है, लेकिन अंत में उसकी ओर आकर्षित होता है।

फिल्म में सिल्क की कहानी मनोरंजक तरीके से पेश की गई है। फिल्म इंडस्ट्री को नजदीक से देखने का अवसर मिलता है। वह दौर पेश किया गया जब सिंगल स्क्रीन हुआ करते थे, चवन्नी क्लास में दर्शक गाना पसंद आने पर जेब में रखी चिल्लर फेंका करते थे। सिल्क की कलरफुल लाइफ के साथ-साथ उसके दर्द और उदासी को भी निर्देशन मिलन लथुरिया ने बेहतरीन तरीके से सामने रखा है।

मिलन ने वह दौर, और तमिल फिल्म इंडस्ट्री को बारीकी के साथ पेश किया है, साथ ही उन्होंने अपने कलाकारों से बेहतरीन काम लिया है। इमरान हाशमी और विद्या बालन की प्रेम कहानी को मैच्योरिटी के साथ हैंडल किया है।

‘सूफियाना’ और ‘ऊह ला ला’ गाने के लिए सही सिचुएनशन बनाई है। दूसरे हाफ में कुछ देर के लिए फिल्म मिलन के हाथ से छूटते हुए लगती है, खासतौर पर सिल्क और शकीला का पार्टी में डांस करने वाले प्रसंग से बचा जा सकता था।

रजत अरोरा की स्क्रिप्ट और मिलन का ट्रीटमेंट ऐसा है कि फिल्म मास और क्लास दोनों टाइप के दर्शकों को पसंद आएगी। रजत अरोरा के संवादों पर दर्शक कई जगह हंसते हैं तो कई जगह तालियां बजाते हैं। खासतौर पर सिल्क को पुरस्कृत करने वाले सीन में संवाद सुनने लायक हैं। नसीरुद्दीन शाह के लिए भी बेहतरीन लाइनें लिखी गई हैं।

विद्या बालन इस फिल्म की जान है। कई लोगों को कहना था कि गर्ल नेक्स्ट डोर इमेज वाली विद्या को सिल्क स्मिता के रोल में चुनना गलत कास्टिंग है। विद्या उन लोगों को गलत साबित करती हैं। उनके किरदार को जो बोल्डनेस चाहिए थी, ‍वो विद्या ने दी। कैमरे के सामने वे बोल्ड सीन और कम कपड़ों में बिलकुल नहीं झिझकी।

विद्या ने कई दृश्यों में कमाल का अभिनय किया है, ‍जैसे तुषार कपूर के साथ कार सीखने वाला सीन, सुपरस्टार नसीर की पत्नी से मुलाकात वाला सीन, इमरान हाशमी के साथ शराब पीने वाला सीन। सिल्क के दर्द और प्यार की तड़प उन्होंने जानदार अभिनय के साथ पेश किया है। वर्ष की बेस्ट एक्ट्रेस के पुरस्कार उन्हें निश्चित रूप से मिलेंगे।

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एक उम्रदराज सुपरस्टार, जो कि अभी भी कॉलेज स्टूडेंट के रोल करता है, में नसीरुद्दीन शाह का अभिनय देखने लायक है। सुपरस्टार के एटीट्यूड और लटके-झटके को नसीर ने बखूबी पेश किया है। इमरान हाशमी का रोल छोटा है और उन्होंने कमेंट्री ज्यादा की है। लेकिन अपनी इमेज से विपरीत उन्होंने रोल किया है और उनके किरदार में कई शेड्स हैं। अंत में उनका पात्र सहानुभूति बटोर लेता है। तुषार कपूर को जो रोल मिला है वो उन पर सूट करता है, इसलिए वे भी अच्छे लगते हैं।

सिल्क कहती है कि किसी ‍भी फिल्म को चलाने के लिए उसमें सबसे जरूरी तीन चीजें होती हैं- एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट। और यही चीज ‘द डर्टी पिक्चर’ में भी है।

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