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दर्शकों का ‘किडनैप’

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हमें फॉलो करें किडनैप संजय दत्त संजय गढ़वी  मिनिषा लांबा धूम

समय ताम्रकर

IFM
निर्माता : श्री अष्टविनायक सिने विज़न लिमिटेड
निर्देशक : संजय गढ़वी
गीत : मयूर पुरी
संगीत : प्रीतम चक्रवर्ती
कलाकार : संजय दत्त, इमरान खान, मिनिषा लांबा, विद्या मालवदे, राहुल देव, रीमा लागू, सोफी चौधरी (विशेष भूमिका)
रेटिंग : 1.5/5


निर्देशक संजय गढ़वी के पास ‘किडनैप’ फिल्म की पटकथा पाँच वर्षों से थी। इस पटकथा पर उन्हें आदित्य चोपड़ा ने फिल्म नहीं बनाने दी और बदले में उनसे ‘धूम’ और ‘धूम 2’ का निर्देशन करवाया।

जब संजय ने यशराज फिल्म्स को छोड़ा तो आदित्य ने बड़ी आसानी से उन्हें ‘किडनैप’ की पटकथा भी दे दी। आदित्य चतुर व्यवसायी हैं, यदि उन्हें ‍’किडनैप’ की कहानी और पटकथा में दम नजर आता तो वे खुद इस पर पैसा लगाते। ‘किडनैप’ को थ्रिलर कहकर प्रचारित किया जा रहा है, लेकिन इसमें एक भी लम्हा ऐसा नहीं है जो किसी तरह से रोमांचित करे।

कहानी का मूल विचार अच्छा है कि अपहरणकर्ता ने अरबपति की बेटी का अपहरण कर लिया है और बदले में वह उससे वह कुछ काम करवाता है। हर काम में एक संकेत छिपा हुआ है, जो उसे अपनी बेटी के नजदीक पहुँचने में मदद करता है।

इस कहानी को परदे पर पेश करने के लिए एक उम्दा स्क्रीनप्ले की जरूरत थी और यही पर फिल्म बुरी तरह मार खा जाती है। लगता है कि निर्देशक और लेखक को इस कहानी से कुछ ज्यादा ही प्यार था, इसलिए उन्होंने इस पर किसी भी तरह फिल्म बना डाली।

विक्रांत रैना (संजय दत्त) एक रईस आदमी है। उसका अपनी पत्नी से तलाक हो चुका है। उसकी बेटी सोनिया (मिनिषा लांबा) का कबीर (इमरान खान) अपहरण कर लेता है। कबीर सिर्फ विक्रांत से ही बात करता है और उससे कुछ काम करवाता है। किस तरह विक्रांत, कबीर के पास पहुँचता है, यह फिल्म में बड़े ही हास्यास्पद तरीके से दिखाया गया है।

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शिबानी बाठीजा और संजय गढ़वी ने दर्शकों को मूर्ख समझने की भूल की है और कुछ ऐसे घटनाक्रम फिल्म में डाले हैं कि हैरानी होती है। विक्रांत से कबीर हजार का नोट चोरी करवाता है। सारी सुरक्षा को तोड़कर जिस तरह विक्रांत चोरी करता है, वह किसी भी दृष्टि से संभव नहीं है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि कबीर ने कब उस हजार के नोट पर संदेश लिखकर वहाँ छिपा दिया था।

विक्रांत के जरिए कबीर जेल से अपने दोस्त को छुड़वाता है। विक्रांत की पत्नी मानवाधिकार की कार्यकर्ता बन बड़ी आसानी से जेल में घुस जाती है। कबीर बड़ी आसानी से कैदी तक पहुँच जाता है। जेल में आग लगा देता है और पता नहीं कहाँ से उसे फायर ब्रिगेड के कर्मचारी की ड्रेस भी मिल जाती है और वो आग बुझाता है। अगर इतनी आसानी से कैदियों को छुड़वाना मु‍मकिन होता तो आज सारे कैदी जेल से बाहर होते।

कबीर क्यों बदला लेता है, उसको लेकर जो घटनाक्रम रचा गया है वो बेहद लचर है और फिल्म ‘जिंदा’ की याद दिलाता है। कबीर सात साल जेल में काटता है। पता नहीं उसे इतना वक्त कैसे मिल जाता है कि वह पढ़-लिखकर कम्प्यूर का मास्टर बन जाता है।

किडनैप के बाद सोनिया हर दृश्य में ड्रेस बदलती है। शायद उसके लिए यह ड्रेसेस कबीर ही लाया होगा। उसकी हर ड्रेस इतनी छोटी रहती है कि वह अपना पूरा शरीर भी ढँक नहीं पाती।

फिल्म के आखिर में सोनिया को भागने का अवसर मिलता है, लेकिन वह घायल कबीर के होश में आने का इंतजार करती है। वह बंदूक उसके इतने नजदीक से चलाने की कोशिश करती है ताकि कबीर उसे पकड़ सके। फिल्म की शुरुआत एक गाने से होती है, जिसका फिल्म से कोई लेना-देना नहीं है। फिल्म के क्लायमैक्स में संजय दत्त, इमरान खान पर गोली चलाते हैं और वो गिर पड़ता है। वह कैसे बचता है, इस बारे में कुछ नहीं बताया गया। संजय दत्त और उनकी पत्नी के बीच क्यों तलाक होता है, इसकी कोई ठोस वजह नहीं बताई गई। फिल्म का अंत भी बेहद खराब है।



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संजय गढ़वी की ‘धूम’ और ‘धूम 2’ भी सशक्त फिल्में नहीं थीं, लेकिन कुछ भाग्य का सहारा और कुछ स्टार्स के आकर्षण की वजह से वे फिल्में चल निकली। ‘किडनैप’ में उनकी पोल खुल गई। पूरी फिल्म बेहद लंबी और उबाऊ है।
संजय दत्त पूरे समय असहज दिखाई दिए। इमरान खान कुछ ज्यादा ही तने हुए नजर आए। उन्हें संवाद अदायगी पर ध्यान देना होगा। मिनिषा लांबा ने पूरी फिल्म में अंग प्रदर्शन किया है। राहुल देव का चरित्र ठूँसा हुआ है। विद्या मालवदे, मिनिषा की मम्मी कम बहन ज्यादा लगती है।

कुल मिलाकर ‘किडनैप’ को देख ऐसा लगता है कि दर्शकों का कुछ घंटों के लिए किडनैप हो गया हो।

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