निर्देशक- मणिशंकर संगीत- कार्तिक राजा, प्रीतम चक्रवर्ती, शशि प्रीतम, संदीप चौटा कलाकर - समीर दत्तानी, सुनील शेट्टी, ओम पुरी, राहुल देव, जैकी श्रॉफइस संसार में कुछ लोग मुखौटे लगाने को मजबूर होते हैं। वे असल में होते कुछ और हैं, लेकिन लोगों के सामने खुद को पेश किसी और रूप में करते हैं। मुखबिर ऐसे ही युवक की कहानी है। उसने कई मुखौटे पहन रखे हैं। यह कहानी उन जिंदगियों की है, जिन्हें वह जीता है और उन मौतों की है, जिन्हें वह मरता है। फिल्म कुछ इस तरह शुरू होती है कि 19 साल का अनाथ कैलाश (समीर दत्तानी) अपराधियों के खिलाफ छापामारी की कार्रवाई में पुलिस के हत्थे चढ़ जाता है। हालाँकि वह बेकसूर है। इसका फायदा उठाते हुए एक पुलिस अधिकारी (ओम पुरी) उसे मुखबिर बनाकर अंडरवर्ल्ड की दुनिया में भेजता है। इस अधिकारी को कैलाश बाद में बाबूजी कहकर पुकारने लगता है। एक वारदात के दौरान, कैलाश को बचाने के चक्कर में बाबूजी मारे जाते हैं और फिर कैलाश बदला लेता है। मुखबिर एक एक्शन फिल्म है। यह कहानी है एक ऐसे हीरो की, जो खुद इसलिए अँधेरे में चला गया ताकि दूसरों को रोशनी मिल सके...ताकि दूसरे चैन से जिंदगी बिता सकें। यह दूसरों के लिए जीने वाले लोगों की कहानी है। यह भावनाओं से भरी फिल्म है। मणिशंकर के ही शब्दों में कहें तो फिल्म सुख और दु:ख की भावनात्मक यात्रा है, जहाँ आतंक का साया हमेशा मँडराता रहता है। फिल्म में समीर को अपना अभिनय दिखाने के कम ही अवसर मिले हैं। यह बात गले नहीं उतरती कि मुखबिरी करते समय वह अंडरवर्ल्ड के लोगों को मूर्ख कैसे बना जाता है।
फिल्म में ओम पुरी का रोल कुछ खास नजर नहीं आया। इसे लेकर मणिशंकर की निर्देशन क्षमता पर प्रश्नचिह्न भी लगाए जा रहे हैं। हालाँकि उनकी लिखी लगातार चौथी कहानी की तारीफ की जा रही है। इससे पहले उन्होंने 16 दिसंबर, रुद्राक्ष और टेंगो चार्ली फिल्मों की कहानियाँ लिखी थीं। फिल्म का संगीत प्रभावी नहीं है।
कुल मिलाकर फिल्म में वह सब शामिल करने की पूरी कोशिश की गई है, जो एक्शन-थ्रिलर में होना चाहिए।