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प्यार इम्पॉसिबल : फिल्म से प्यार, इम्पॉसिबल

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हमें फॉलो करें प्यार इम्पॉसिबल

समय ताम्रकर

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निर्माता : उदय चोपड़ा
निर्देशक : जुगल हंसराज
कथा-पटकथा-संवाद : उदय चोपड़ा
संगीत : सलीम-सुलैमान
कलाकार : प्रियंका चोपड़ा, उदय चोपड़ा, डीनो, अनुपखे
यू सर्टिफिकेट * दो घंटे 21 मिनट
रेटिंग : 1/5

ये बात 100 प्रतिशत पॉसिबल है कि यदि उदय चोपड़ा के अलावा किसी और ने ‘प्यार इम्पॉसिबल’ लिखी होती तो आदित्य चोपड़ा स्क्रिप्ट को रद्दी की टोकरी में डाल देते। लेकिन भाई की जिद के आगे संभवत: उन्हें झुकना पड़ा हो। ये सोचकर भी उन्होंने फिल्म बनाने की इजाजत दे दी हो कि इस फ्लॉप कहानी पर फिल्म बनाने के बाद उदय हीरो और लेखक बनने की जिद छोड़ देंगे। ये बात भी साबित हो गई है कि कहानी उदय ने ही लिखी होगी, किसी और की कहानी पर अपना नाम नहीं लगाया होगा क्योंकि ऐसी कहानी वे ही लिख सकते हैं।

उदय ने क्या लिखा है, आप भी पढि़ए। अभय (उदय चोपड़ा) एक ऐसा इंसान है, जिसे कोई लड़की शायद ही पसंद करे क्योंकि वह अत्यंत ही साधारण है। मन ही मन वह अलिशा (प्रियंका चोपड़ा) को चाहता है, जो कॉलेज की सबसे हॉट गर्ल है।

एक गाने के बाद कॉलेज की दुनिया खत्म और सब अपनी-अपनी राह पर। सात साल मेहनत कर अभय एक सॉफ्‍टवेयर बनाता है, जिसे वरुण (डीनो मोरिया) बड़ी आसानी से चुराकर सिंगापुर में एक कंपनी को बेचने जाता है जहाँ अलिशा काम करती है। अलिशा अब तलाकशुदा है और उसकी 6 साल की बेटी है।

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अभय भी सिंगापुर पहुँच जाता है। कुछ गलतफहमी होती है और अलिशा उसे नौकर समझ कर अपने घर में रख लेती है। इस नौकर से वह अपने दिल की सारी बात कहती है। उससे राय माँगती है। अंत में उसे पता चलता है कि अभय उसके कॉलेज में था उसे सात वर्ष से प्यार कर रहा है। दोनों एक हो जाते हैं और वरुण की चोरी पकड़ जाती है।

कहानी के अनुरूप, स्क्रीनप्ले और निर्देशन भी खराब है। स्क्रीनप्ले से उतार-चढ़ाव गायब है। सब कुछ बड़ी आसानी से होता है। सॉफ्टवेयर की चोरी और उससे वापस अपनी चीज पाने में जो रोमांच होना चाहिए था वो नदारद है। लव स्टोरी एकदम नीरस है। फिल्म की अंतिम रील तक हीरो का प्यार एकतरफा है। अंत में हीरोइन उस पर अचानक मेहरबान हो जाती है, क्यों, इसके पीछे कोई ठोस कारण नहीं है।

हीरोइन के घर नौकर बनकर हीरो बेहद खुश है। न तो वह अपना सॉफ्टवेयर पाने की कोशिश करता है और न हीरोइन का दिल जीतने की। इससे फिल्म बेहद धीमी और उबाऊ बन गई है।

फिल्म में किरदारों की कमी भी खलती है। कहानी प्रियंका, उदय और डीनो के इर्दगिर्द घूमती रहती है। उदय और डीनो जैसे अभिनेताओं को आप ज्यादा देर बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं।

कॉमेडी के नाम पर डाइनिंग टेबल पर खाना परोसने का एक लंबा दृश्य रखा गया है। सीन देखकर हँसी जरूर आती है, लेकिन निर्देशक और लेखक की कल्पना पर। निर्देशक के रूप में जुगल हंसराज कुछ कमाल नहीं दिखा पाए। सुभाष घई की तरह अपना चेहरा उन्होंने भी फिल्म में दिखाया है।

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एक आधुनिक लड़की का किरदार प्रियंका ने अच्छी तरह निभाया है, हालाँकि कुछ जगह वे ओवरएक्टिंग कर गई। उदय चोपड़ा ने पूरी कोशिश की, लेकिन बात नहीं बन पाई। डीनो मारियो ठीक-ठाक रहे। अनुपम खेर ने उदय चोपड़ा बनने की कोशिश कक्योंकि फिल्म में बाप-बेटे को एक जैसा दिखाया गया है।

फिल्म का लुक युथफुल है। सलीम-सुलैमान ने कुछ अच्छी धुनें बनाई हैं। ‘अलिशा’ और ‘टेन ऑन टेन’ अच्छे बन पड़े हैं, लेकिन फिल्म में इनकी प्लेसिंग ठीक से नहीं की गई है।

फिल्म अपने नाम के अनुरूप है। इससे प्यार इम्पॉसिबल है।

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