बैनर : सार्थक मूवीज, ज़ेड 3 पिक्चर्स प्रोडक्शन कहानी-निर्देशक : मिलिन्द गडकर कलाकार : सुदीप, अमृता खानविलकर, एहसास चान्ना, नीरू सिंह, ज़ाकिर हुसैन * केवल वयस्कों के लिए * एक घंटा 52 मिनट रेटिंग : 1.5/5
कम लागत की होने की वजह से ‘फूँक’ का नाम सफल फिल्मों की सूची में शामिल हो गया और इस फिल्म का सीक्वल ‘फूँक 2’ बनाने का कारण रामगोपाल वर्मा को मिल गया।
इस फिल्म का निर्माण ही इसीलिए किया गया है ताकि ‘फूँक’ की सफलता का फायदा उठाया जाए। कुछ डरावने सीन फिल्मा लिए गए और उन्हें एक अधूरी कहानी में पिरोकर ‘फूँक 2’ का नाम दे दिया गया।
नि:संदेह कुछ दृश्य डराते हैं, लेकिन अच्छी कहानी का साथ इन्हें मिलता तो बात ही कुछ और होती। फिल्म का अंत इसका सबसे बड़ा माइनस पाइंट है। ऐसा लगता है कि अभी कहानी में कुछ बातें बाकी हैं, लेकिन ‘द एंड’ हो जाता है।
मधु की मौत के साथ ही ‘फूँक’ खत्म हुई थी, जिसने राजीव (सुदीप) की बेटी रक्षा (एहसास चान्ना) पर काला जादू कर दिया था। राजीव अब नई जगह पर रहने के लिए आ गया है। समुद्र किनारे और घने जंगल के बीच उसका घर है।
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रक्षा को एक दिन जंगल में गुड़िया मिलती है, जिसे वह घर ले आती है। इसके बाद पूरे परिवार के साथ रहस्मय और डरावनी घटनाएँ घटने लगती हैं। राजीव की पत्नी आरती (अमृता खानविलकर) के शरीर में मधु का भूत आ जाता है और वह पूरे परिवार को मार डालने की धमकी देता है।
राजीव को तांत्रिक मंजा (जाकिर हुसैन) की याद आती है, जिसने पिछली बार उसकी बेटी को मधु के काले जादू से बचाया था। वह उसके पास पहुँचे इसके पहले ही मंजा मारा जाता है।
इधर मधु का भूत आरती के अंदर प्रवेश कर राजीव की बहन, नौकरानी, गॉर्ड की हत्या कर देता है और रक्षा को मारना चाहता है। फिल्म के अंत में रक्षा को राजीव बचा लेता है और आरती के अंदर से भूत निकल जाता है। लेकिन वह कहाँ गया? राजीव के सामने क्यों नहीं आया? रक्षा को मारने का उसने दोबारा प्रयास क्यों नहीं किया? ऐसे ढेर सारे सवाल दर्शक के मन में उठते हैं जिनका जवाब नहीं दिया गया। साथ ही फिल्म का अंत इस तरह से किया गया है कि शैतानी ताकत की विजय का आभास होता है, जबकि सभी उसे पराजित होता देखना चाहते थे।
‘फूँक’ का निर्देशन रामगोपाल वर्मा ने किया था, जबकि सीक्वल को निर्देशित किया इस फिल्म के लेखक मिलिंद गडकर ने। मिलिंद पर रामगोपाल वर्मा का प्रभाव साफ नजर आता है।
कुछ डरावने और चौंकाने वाले दृश्य उन्होंने अच्छे फिल्माए हैं, लेकिन सारे दृश्यों के बारे में ये बात नहीं कही जा सकती, खासतौर पर मध्यांतर के पूर्व वाला हिस्सा बोरिंग है। कहानी इतनी धीमी गति से आगे बढ़ती है कि नींद आने लगती है। कुछ दृश्यों में निर्देशक की कमजोरी झलकती है।
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इंटरवल के बाद जब भूत की एंट्री होती है उसके बाद घटनाक्रम में तेजी आती है और कुछ रोंगटे खड़े कर देने वाले दृश्य देखने को मिलते हैं। लेकिन मिलिंद ने फिल्म का अंत बेहद घटिया और अधूरे तरीके से किया है। एक राइटर के रूप में वे निराश करते हैं।
एक्टिंग डिपार्टमेंट की बात की जाए तो सुदीप, अमृता और बाल कलाकारों ने अच्छा काम किया है। नीरू और अमित निराश करते हैं। कैमरा मूवमेंट रामगोपाल वर्मा की फिल्मों जैसा है। बैक ग्राउंड म्यूजिक के जरिये जरूरत से ज्यादा डराने की कोशिश की गई है।
आमतौर पर सीक्वल को एक कदम आगे होना चाहिए, लेकिन ‘फूँक 2’ ‘फूँक’ से दो कदम पीछे है।