‘बम बम बोले’ माजिद मजिदी की 1997 में बनी ‘चिल्ड्रन ऑफ हेवन’ का भारतीय संस्करण है। माजिद ने साधारण कहानी को इस खूबी से परदे पर पेश किया कि यह फिल्म विश्व सिनेमा में असाधारण मानी जाती है।
जिन लोगों ने ‘चिल्ड्रन ऑफ हेवन’ देखी है, उन्हें ‘बम बम बोले’ पसंद नहीं आएगी क्योंकि प्रियदर्शन उस फिल्म के निकट भी नहीं पहुँच पाए हैं। हकीकत तो ये है कि प्रियन अपने श्रेष्ठ स्तर तक भी नहीं पहुँच पाए हैं। जो इमोशन्स और रियलिटी ‘चिल्ड्रन ऑफ हेवन’ में नजर आती है वो ‘बम बम बोले’ में से नदारद है।
कहानी है पिनू (दर्शील सफारी) और रिमझिम (जिया) की जो अपने पिता खोगीराम (अतुल कुलकर्णी) और माँ (रितुपर्णा सेनगुप्ता) के साथ ऐसे इलाके में रहते हैं जहाँ आतंकवादियों का दबदबा है।
खोगीराम की आर्थिक हालत बहुत खराब है और किसी तरह उनके घर का खर्चा चलता है। वह अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में डालता है ताकि वे डॉक्टर या इंजीनियर बन सके।
रिमझिम के पास सैंडल की एकमात्र जोड़ी है, जिन्हें पिनू गुमा देता है। पिनू जानता है कि उसे डाँट पड़ेगी, लेकिन इससे भी ज्यादा उसे और उसकी बहन को इस बात की फिक्र है कि उनके पिता इस हालत में नहीं है कि नए जूते उन्हें दिला सके।
रिमझिम सुबह स्कूल जाती है इसलिए पिनू उसे अपने जूते दे देता है। उसकी छुट्टी होने के बाद वह जूते पहनकर रोजाना दौड़कर अपने स्कूल जाता है। उसे देरी से पहुँचने पर डाँट भी पड़ती है।
इसी बीच पिनू को पता चलता है कि इंटरस्कूल मैराथन होने वाली है, जिसमें एक इनाम एक जोड़ी जूते भी हैं। पिनू इसमें हिस्सा लेता है ताकि वह अपनी बहन के लिए जूते जीत सके।
अभावग्रस्त बच्चे किस तरह बहुत जल्दी परिपक्व हो जाते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से अपने माता-पिता का दु:ख-दर्द कम करने की कोशिश करते हैं यह बात इस कहानी में सूक्ष्मता से कही गई है। शाइनिंग इंडिया की चकाचौंध में खोए लोगों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि आज भी करोड़ों ऐसे बच्चे हैं जिनके लिए एक जोड़ी जूते या चप्पल सपना है।
आउट ऑफ फॉर्म प्रियदर्शन ने कहानी को इस तरह से पेश किया है कि ज्यादातर जगह बनावटीपन झलकता है। दोनों बच्चों की परेशानियों को दर्शक महसूस नहीं कर पाता। फिल्म को बेवजह लंबा किया गया है (खासतौर पर आतंकवाद वाला एंगल), जिससे दूसरे हॉफ में कहानी बेहद धीमी गति से आगे बढ़ती है। दो गानों को जबरदस्ती ठूँसा गया है।
फिल्म के सभी कलाकारों ने बेहतरीन काम किया है। अतुल कुलकर्णी ने एक आम आदमी की परेशानियों को अच्छी तरह पेश किया है, जबकि रितुपर्णा को ज्यादा अवसर नहीं मिले। दर्शील सफारी ने कठिन रोल को अच्छी तरह निभाया है और जिया वस्तानी की मासूमियत दिल को छूती है। फिल्म का संगीत निराशाजनक है।
‘बम बम बोले’ एक औसत फिल्म है, लेकिन प्रियदर्शन को इस बात के लिए बधाई दी जा सकती है कि उन्होंने दो बच्चों को केंद्र बनाकर फिल्म बनाने का साहस किया।