Dharma Sangrah

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

बारह आना : मनोरंजन सिर्फ चार आना

Advertiesment
हमें फॉलो करें बारह आना

समय ताम्रकर

PR
बैनर : बांद्रा वेस्ट पिक्चर्स
निर्माता : राज एरासी, जियुलिया अचीली, राजा मेनन
कहानी-पटकथा-निर्देशन : राजा मेनन
कलाकार : नसीरुद्दीन शाह, विजय राज, अर्जुन माथुर, वायलेंटी प्लेसिडो, तनिष्ठा चटर्जी
रेटिंग : 2/5


अपराध की दुनिया में आदमी कदम अपने अपमान का बदला लेने या फिर जरूरतों को पूरा करने के लिए रखता है। इस एक लाइन की बात पर सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं। ‘बारह आना’ का नाम और जोड़ लीजिए। फिल्म के तीनों किरदारों (वॉचमैन, ड्राइवर और वेटर) की मजबूरी अनायास उन्हें अपराध की दुनिया से जोड़ देती है।

ड्राइवर (नसीरुद्दीन शाह) के शरीर की बदबू उसकी मालकिन को पसंद नहीं है और वह उसे अपमानित करने का बहाना ढूँढती रहती है। वॉचमैन (विजय राज) का गाँव में बच्चा बीमार है और उसके पास भेजने के लिए पैसे नहीं हैं। लाखों की गाड़ियों में घूमने वाले और एक बार में हजारों रुपए का खाना खाने वाले उसकी मदद करने में असमर्थ हैं। वेटर (अर्जुन माथुर) एक फिरंगी लड़की को चाहता है, इसलिए वह अपना बैंक बैलेंस बढ़ाना चाहता है क्योंकि लड़कियाँ प्यार के बजाय पैसों को अहमियत देती हैं।

सड़क किनारे लगे ठेले के पास बैठा वॉचमैन उदास है, तभी एक आदमी उस पर रौब जमाता है। वॉचमैन उसे एक तमाचा जमाता है और वो आदमी बेहोश हो जाता है। घबराकर वह उसे अपने घर ले आता है। उस आदमी के घर फोन लगाकर वह तीस हजार रुपए माँगता है। पैसे मिलते हैं और वह उसे छोड़ देता है।

कम मेहनत और अधिक पैसा का फॉर्मूला तीनों को जम जाता है। नसीर को अपनी मालकिन से बदला लेना है और तीनों उसका अपहरण कर लेते हैं। यह बेवकूफी उन पर भारी पड़ती है और तीनों पुलिस के हाथ लग जाते हैं।

फिल्म की जो भी कहानी है, उसमें कुछ भी नयापन नहीं है, लेकिन निर्देशक और लेखक राजा मेनन ने इसे स्क्रीन पर हलके-फुलके तरीके से पेश किया है। प्रस्तुतिकरण के जरिये उन्होंने दर्शक का ध्यान बँटाने की कोशिश की है, लेकिन बात नहीं बनी।

‘रियलिस्टिक कॉमेडी’ कहकर इसे प्रचारित किया जा रहा है, लेकिन हँसने के क्षण बहुत कम आते हैं। नसीर की मालकिन का अपहरण वाला प्रसंग बेवकूफी भरा लगता है। जब तीनों को यह बात मालूम रहती है कि वे पकड़े जाएँगे, फिर भी वे यह अपराध करते हैं।

अवधि कम होने के बावजूद फिल्म की गति बेहद धीमी लगती है। मध्यांतर के बाद ही फिल्म में थोड़ा रोमांच पैदा होता है, लेकिन अंत ‍में फिल्म कमजोर साबित होती है।

अर्जुन माथुर वेटर की भूमिका में मिसफिट लगे। नसीरुद्दीन शाह अंत के सिवाय पूरी फिल्म में चुप रहते हैं। सिर्फ शारीरिक हाव-भाव के जरिये उन्होंने अभिनय किया है। लेकिन अंत में जब वे संवाद बोलते हैं तो उनके किरदार का प्रभाव कम हो जाता है।

webdunia
PR
तनिष्ठा चटर्जी और वायलेंटी प्लेसिडो ने अपने-अपने किरदार बखूबी निभाए हैं, लेकिन अभिनय में बाजी मारते हैं विजय राज। वॉचमैन के किरदार को पूरी विश्वसनीयता के साथ उन्होंने अभिनीत किया है। कब धीमे बात करनी है, कब जोर से बोलना है जैसी कई छोटी बातों का ध्यान उन्होंने रखा है। उनके अभिनय के कारण ही फिल्म में थोड़ी दिलचस्पी बनी रहती है।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ‘बारह आना’ में अच्छी फिल्म बनने की संभावनाएँ थीं, जिनका पूरा उपयोग नहीं किया गया।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi